संजय द्विवेदी
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में ग्राम पंचायतों की संख्या में बड़ा बदलाव किया गया है। राज्य सरकार द्वारा कराए गए ग्राम पंचायतों के पुनर्गठन और शहरी क्षेत्रों के विस्तार के चलते अब अगले पंचायत चुनाव में 57694 ग्राम पंचायतों में ग्राम प्रधान चुने जाएंगे।
यह संख्या वर्ष 2021 में हुए चुनाव की तुलना में 501 कम है, जब प्रदेश में कुल 58195 ग्राम प्रधानों का निर्वाचन हुआ था। इस परिवर्तन के पीछे मुख्य कारण शहरी सीमा का विस्तार, नगरीकरण और प्रशासनिक पुनर्गठन है। इसके अंतर्गत जहां 512 ग्राम पंचायतों को समाप्त किया गया है, वहीं 11 नई ग्राम पंचायतों का गठन भी किया गया है।
सबसे अधिक पंचायत इन जिलों में समाप्त
राज्य सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, देवरिया, आजमगढ़ और प्रतापगढ़ जैसे जिले ग्राम पंचायतों के सबसे बड़े ह्रास का गवाह बने हैं। देवरिया जिले में सर्वाधिक 64 ग्राम पंचायतें समाप्त हुई हैं। आजमगढ़ में 49 पंचायतों को समाप्त किया गया। प्रतापगढ़ में 46 ग्राम पंचायतें अब मौजूद नहीं रहेंगी। इन जिलों में शहरी क्षेत्र का दायरा बढ़ने और कई ग्रामीण क्षेत्रों को नगर पालिका/नगर पंचायत में शामिल किए जाने की वजह से ग्राम पंचायतों का अस्तित्व समाप्त हुआ है।
अन्य प्रभावित जिले
इनके अतिरिक्त भी कई जिलों में पंचायतों की संख्या में कटौती हुई है:
अलीगढ़ – 16
अम्बेडकरनगर – 3
अमरोहा – 21
अयोध्या – 22
वहीं बस्ती जिले में कोर्ट के आदेश पर दो नई ग्राम पंचायतों का गठन किया गया है जिससे वहां पंचायत संख्या में आंशिक बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
ग्राम पंचायतों के पुनर्गठन के कारण राज्य सरकार ने यह निर्णय विभिन्न प्रशासनिक, भौगोलिक और विकास संबंधी कारणों को ध्यान में रखते हुए लिया है। इसके मुख्य कारणों में शामिल हैं:
शहरी सीमा का विस्तार : लगातार बढ़ते नगरीकरण और कस्बों के नगर पालिका/नगर पंचायत में बदलने के कारण उनके अधीन आने वाली ग्राम पंचायतों का स्वतः विलोपन हो गया।
जनसंख्या और जनगणना आधारित सुधार: जनसंख्या वृद्धि या घटने के आधार पर कई पंचायतों को आपस में जोड़ा गया या उन्हें नए रूप में पुनर्गठित किया गया।
प्रशासनिक सुविधा: ऐसे कई क्षेत्र जहां दो या अधिक पंचायतें बहुत कम आबादी के साथ अलग-अलग थीं उन्हें एकीकृत कर प्रशासनिक दृष्टिकोण से अधिक व्यवस्थित बनाया गया।
न्यायालय के निर्देश: बस्ती जैसे जिले में न्यायालय के आदेश से नई पंचायतों का गठन दर्शाता है कि स्थानीय विवादों और कानूनी प्रक्रियाओं का भी इस पर प्रभाव पड़ता है।
राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव
यह पंचायतों की संख्या में हुआ परिवर्तन सीधे तौर पर आगामी पंचायत चुनाव 2026 पर असर डालेगा। जिन क्षेत्रों में ग्राम पंचायतें समाप्त हुई हैं वहां के लोगों को अब नई पंचायतों के तहत प्रतिनिधित्व मिलेगा।
राजनीतिक रूप से यह भी देखा जा रहा है कि यह पुनर्गठन कुछ नेताओं के चुनावी समीकरणों को प्रभावित कर सकता है।
पंचायत चुनावों में सीटें कम होने से संभावित उम्मीदवारों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। कई सामाजिक संगठन इस बात की निगरानी कर रहे हैं कि कहीं कोई जातीय या भौगोलिक पक्षपात तो नहीं हुआ है।
समग्र विकास को ध्यान में रखते हुए लिया फैसला
राज्य पंचायती राज विभाग के अधिकारियों का कहना है कि यह बदलाव प्रशासनिक दक्षता और समग्र विकास को ध्यान में रखते हुए किया गया है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि “यह कोई अचानक लिया गया निर्णय नहीं है। प्रत्येक पंचायत के भूगोल, जनसंख्या, संसाधनों और विकास योजनाओं की समीक्षा के बाद यह निर्णय लिया गया है।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सभी ग्राम पंचायतों को आवश्यकतानुसार नई सीमांकन प्रक्रिया के अनुसार अधिसूचित किया गया है और पंचायत पोर्टल पर अपडेट भी किया गया है।
स्थानीय प्रतिक्रियाएँ
कई जिलों से मिली रिपोर्ट के अनुसार पंचायतें समाप्त होने से कुछ ग्रामवासियों में नाराजगी भी देखी जा रही है। उनका मानना है कि ग्राम स्तर पर निर्णय लेने की क्षमता कमजोर होगी और एक बड़ी पंचायत में उनकी आवाज दब सकती है। प्रतापगढ़ के एक गांव निवासी राम कहते हैं कि “हमारे गांव की अपनी पंचायत थी, अब उसे पास के बड़े गांव में मिला दिया गया है। वहां हमारा कोई प्रतिनिधित्व नहीं रहेगा।” वहीं कुछ स्थानों पर लोग इसे विकास का हिस्सा मान रहे हैं। आजमगढ़ की एक महिला ग्राम प्रधान ने कहा कि “अब अगर क्षेत्र शहरी हुआ है तो हमें नई योजनाएं और सुविधाएं मिलेंगी। ये बदलाव हमें अवसर दे सकते हैं, अगर सही से लागू किया जाए।”
आने वाले पंचायत चुनावों पर असर
यह बदलाव सीधे तौर पर पंचायत चुनावों की सीटों की संख्या, आरक्षण व्यवस्था और प्रशासनिक तैयारियों पर असर डालेगा। राज्य निर्वाचन आयोग को अब नई पंचायतों की सूची के अनुसार पुन: आरक्षण प्रक्रिया करनी होगी और मतदाता सूची का पुनर्निरीक्षण भी जरूरी हो जाएगा। इससे चुनाव की तैयारी समय से पहले करनी होगी ताकि कोई भ्रम न फैले और न्यायसंगत चुनाव सुनिश्चित हो सके।































