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कोई न कर सका वो कमाल चंद्रयान-3 ने कर दिखाया

Chandrayaan-3 started again!
ब्लिट्ज ब्यूरो

नई दिल्ली। भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो (इसरो) का चंद्रयान-3 लगातार चांद से नई जानकारी साझा कर रहा है। हाल ही में मिशन में शामिल चंद्रा सरफेस थर्मोफिजिकल एक्सपेरिमेंट (चा-एसटीई) ने चंद्रमा के दक्षिणी हिस्से सतही तापमान मापा है। ये कदम इसलिए ऐतिहासिक है क्योंकि पहली बार है जब इस इलाके में सीधे जाकर तापमान संबंधी डेटा हासिल किया गया है। चंद्रयान-3 जब लॉन्च हुआ और कामयाबी के साथ चांद के दक्षिण ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग तो सारी दुनिया हैरान रह गई थी क्योंकि कोई भी ऐसा नहीं कर पाया था। बात वहीं तक सीमित नहीं है क्योंकि चंद्रयान आज तक भी ऐसा डेटा भेज रहा है जो चीन, रूस, अमेरिका जैसे देशों के अभियानों से भी नहीं मिल पाया।
कितना है चांद के दक्षिण क्षेत्र का तापमान
मशहूर वैज्ञानिक पत्रिका ‘नेचर कम्युनिकेशंस अर्थ एंड एनवायरनमेंट’ में छपी रिसर्च के मुताबिक ‘चा-एसटीई’ ने चांद की सतह का अधिकतम तापमान 355 केल्विन (82°C) दर्ज किया, जो पहले अनुमानित तापमान 330 केल्विन (57°C) से 25 केल्विन ज्यादा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह अंतर विक्रम लैंडर के सूर्यमुखी ढलान (6°C) पर उतरने की वजह से हुआ है।
इससे पहले कब मापा गया सीधे तापमान
इसरो की फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी के वैज्ञानिक के. दुर्गा प्रसाद ने बताया कि चांद पर पानी और बर्फ की खोज भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों और संभावित मानव बस्तियों के लिए महत्वपूर्ण है। अब तक चांद के तापमान को रिमोट सेंसिंग तकनीक से मापा जाता था। सीधा मापन सिर्फ अपोलो 15 और 17 मिशनों में हुआ था, लेकिन वे सिर्फ भूमध्यीय क्षेत्र तक सीमित थे. चंद्रयान-3 का ‘चा-एसटीई’ प्रयोग इस कमी को पूरा कर रहा है।
क्यों है तापमान में भारी अंतर
वैज्ञानिकों ने बताया कि चांद की मिट्टी (रेगोलिथ) की थर्मल कंडक्टिविटी बहुत कम होती है, जिससे सतह के कुछ ही सेंटीमीटर के अंदर तापमान में भारी अंतर पाया जाता है। ‘चा-एसटीई’ के आंकड़ों से चंद्रमा की सतह के थर्मल फीचर्स को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिलेगी।
इंसानों की बस्ती के लिए जानकारी बेहद अहम
‘चा-एसटीई’ के आंकड़ों के मुताबिक 14°C से ज्यादा ढलान वाले ध्रुवीय-उन्मुख इलाके पानी और बर्फ के लिए बेहतरीन हो सकते हैं। ये इलाके कम सोलर रेडिएशन हासिल करते हैं, जिससे वहां तापमान लंबे समय तक स्थिर रहता है।
यह जानकारी भविष्य में चांद पर पानी-बर्फ की खोज और इंसानों के बसने के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है।
रिसर्च में कौन-कौन शामिल
इस रिसर्च में के दुर्गा प्रसाद के साथ चंदन कुमार, अंबिली जी, कल्याण रेड्डी पी, संजीव के.मिश्रा, जन्मेजय कुमार, दिनकर प्रसाद वज्जा, आसिक, टिंकल लाडिया, अर्पित पटेल, मूर्ति एसवीएस, अमिताभ और पीआरएल के निदेशक अनिल भारद्वाज शामिल थे।

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