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गुजरात में 3 फीट के गणेश बन गए डॉक्टर, वजन भी महज 20 किलो

3-foot tall Ganesha becomes a doctor in Gujarat, weighing just 20 kg
ब्लिट्ज ब्यूरो

अहमदाबाद। कहते हैं न कि कद नहीं किरदार बड़ा होना चाहिए। गुजरात के गणेश बरैया ने इसे साबित भी किया है। महज 3 फीट की लंबाई और 20 किलो वजन के गणेश अब डॉक्टर बन गए हैं। योग्यता के बावजूद कद कम होने की वजह से गणेश को सुप्रीम कोर्ट तक जंग लड़नी पड़ी लेकिन ऊंची से ऊंची बाधा को पार करते हुए गणेश अपने मंजिल तक पहुंच गए हैं। अब उन्हें मेडिकल ऑफिसर के रूप में तैनाती मिल गई है।
25 साल के बरैया जन्म से ही बौनेपन के शिकार हैं। उन्हें चलने-फिरने से संबंधित 72% विकलांगता है। चुनौती सिर्फ शरीर की कमजोरी नहीं आर्थिक किल्लत भी थी। भावनगर के गोरखी गांव में जन्मे गणेश 8 भाई बहन हैं।
शारीरिक रूप से गणेश जितने कमजोर थे, मानसिक रूप से उतने ही मजबूत और तेज। बचपन से ही पढ़ाई में मेधावी गणेश ने 12वीं में 87 फीसदी अंक लाकर सबको चौंका दिया था लेकिन यह शुरुआत भर थी। इसके बाद उन्होंने नीट की परीक्षा भी पास कर ली। लेकिन विकलांगताओं की वजह से 2018 में गुजरात सरकार ने उन्हें एमबीबीएस कोर्स में एडमिशन देने से इनकार कर दिया था।
कद की वजह से आई रुकावट से गणेश ने हार नहीं मानी। स्कूल के प्रिंसिपल की मदद से गणेश ने जिला कलेक्टर और शिक्षा मंत्री तक गुहार लगाई। इसके बाद वह अपनी समस्या लेकर गुजरात हाई कोर्ट पहुंचे। हाई कोर्ट से निराशा मिलने के बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। देश की सर्वोच्च अदालत ने उनके पक्ष में फैसला देते हुए एमबीबीएस में दाखिले का आदेश दिया। इसके बाद 2019 में उन्हें एमबीबीएस में दाखिला मिला।
डॉ. बरैया ने पिछले साल मीडिया के साथ अपनी कहानी साझा करते हुए कहा था, ’12वीं पास करने और एमबीबीएस में दाखिले के लिए नीट परीक्षा क्वालिफाई करने के बाद जब मैंने फॉर्म भरा तो मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की समिति ने मेरी लंबाई के आधार पर मुझे खारिज कर दिया। उनका कहना था कि मेरी कम लंबाई के कारण मैं आपातकालीन मामलों को संभाल नहीं पाऊंगा। फिर मैंने नीलकंठ विद्यापीठ के प्रिंसिपल डॉ. दलपत भाई कटारिया और रेवसीश सर्वैया से इस बारे में बात की और पूछा कि हम इसके लिए क्या कर सकते हैं।’ गणेश ने आगे कहा, ‘उन्होंने मुझे भावनगर कलेक्टर और गुजरात के शिक्षा मंत्री से मिलने को कहा। भावनगर कलेक्टर के निर्देश पर हमने यह केस गुजरात हाई कोर्ट ले जाने का फैसला किया। हमारे साथ दो अन्य उम्मीदवार भी थे जो दिव्यांग थे। हम हाई कोर्ट में केस हार गए, लेकिन फिर हमने सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को चुनौती देने का निश्चय किया।’

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