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डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अंकुश के लिए स्वायत्त निकाय जरूरी : सुप्रीम कोर्ट

Supreme Court
ब्लिट्ज ब्यूरो

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर अश्लील, आपत्तिजनक एवं अवैध सामग्री विनियमित करने के लिए तटस्थ, स्वतंत्र और स्वायत्त निकाय की जरूरत बताई है। शीर्ष अदालत ने कहा, किसी को तो इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी। ऑनलाइन प्रसारित हो रही अश्लील, अभद्र और संवेदनशील सामग्री तक पहुंच को नियंत्रित करने के लिए आधार आधारित आयु सत्यापन प्रणाली लागू की जा सकती है।
सीजेआई जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने अश्लील सामग्री से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि डिजिटल कंटेंट बनाने वालों एवं प्लेटफॉर्म को ऑनलाइन प्रकाशन की सटीकता और कानूनी मान्यता के लिए जवाबदेह बनाने के लिए स्वायत्त निकाय होना चाहिए। कोई निष्पक्ष, स्वायत्त निकाय और अथॉरिटी हो, जो प्लेटफॉर्म यूजर्स और राज्य के नियंत्रण से भी मुक्त हो। पीठ ने कहा, एक बार जब किसी डिजिटल प्लेटफॉर्म पर गंदा कंटेंट अपलोड हो जाता है, भले ही उसमें कुछ देशद्रोही कंटेंट हो, तो वह जल्द ही लाखों दर्शकों के बीच वायरल हो सकता है। पीठ ने अभिव्यक्ति की आजादी को निष्पक्षता के साथ संतुलित करने और समाज, मासूम लोगों और बच्चों को नुकसान से बचाने पर जोर दिया।
महज चेतावनी पर्याप्त नहीं
पीठ ने कहा, कंटेंट के पहले सिर्फ चेतावनी दिखाना पर्याप्त नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित हो कि नाबलिगों या संवेदनशील दर्शकों तक यह अनियंत्रित रूप से न पहुंचे।
जस्टिस बागची ने कहा कि अगर आप मोबाइल फोन ऑन करें और तुरंत ऐसा कंटेंट दिख जाए जिसे आप देखना नहीं चाहते, तब क्या? ऐसे में रोक और नियंत्रण जरूरी है। सीजेआई ने सुझाव दिया, चेतावनी के साथ दर्शकों की उम्र की पुष्टि भी की जानी चाहिए।
दिव्यांगों के अपमान पर एससी-एसटी
की तर्ज पर बनाएं कानून
दिव्यांगजनों का मजाक उड़ाने, अपमानजनक बयान देने वालों पर सख्त रवैया अपनाते हुए सीजेआई और जस्टिस बागची की पीठ ने कहा कि ऐसे लोगों के खिलाफ एससी-एसटी कानून जैसी व्यवस्था क्यों नहीं ला सकते। शीर्ष कोर्ट ने केंद्र से दिव्यांगों की गरिमा की रक्षा के लिए दंडनीय कानून बनाने की संभावना तलाशने को कहा। पीठ ने कहा, एससी-एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम में जातिसूचक अपशब्दों, भेदभाव, अपमान और हिंसा को अपराध माना गया है। ऐसे मामले गैर-जमानती होते हैं। दिव्यांगजनों के अपमान मामले में भी ऐसे ही सख्त कानून की जरूरत है। सॉलिसिटर जनरल मेड़ता ने कहा, हास्य किसी की गरिमा को कीमत पर नहीं हो सकता। प्रसारण मंत्रालय ने बताया, दिव्यांगजनों पर टिप्पणियों को रोकने के लिए दिशा-निर्देश बनाए जा रहे हैं।
इन्फ्लूएंसर करेंगे दिव्यांगों के लिए दो शो
पीठ ने भविष्य में अपने आचरण के प्रति सतर्क रहने का निर्देश देते हुए हास्य कलाकार समय रैना व अन्य इन्फ्लूएंसर को दिव्यांगजनों को सफलता की कहानियों पर हर महीने दो शो करने के निर्देश दिए। इस शो की कमाई का उपयोग दिव्यांगजनों, विशेष रूप से स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (एसएमए) से पीड़ित लोगों के इलाज में होगा।

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