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सुसंगत निर्णय

Supreme Court
दीपक द्विवेदी

इसमें कोई दोराय नहीं कि अदालत के फैसले से वक्फ प्रबंधन को मजबूती मिली है और अदालत ने भी वक्फ बोर्ड पर जो भरोसा जताया है, उस पर उसे भी खरा उतरना चाहिए

वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार 15 सितंबर को अपना अंतरिम फैसला सुनाया। सर्वोच्च अदालत ने वक्फ कानून पर रोक नहीं लगाई लेकिन कुछ धाराओं पर जरूर रोक लगा दी है। चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की दो सदस्यीय बेंच ने कहा कि संसद द्वारा पारित कानून की संवैधानिकता का अनुमान हमेशा उसके पक्ष में होता है लेकिन कुछ प्रावधानों पर अंतरिम सुरक्षा की आवश्यकता है। जमीयत उलमा-ए-हिंद के मौलाना अरशद मदनी से लेकर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, शिया मौलाना कल्बे जव्वाद और कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी सहित तमाम मुस्लिम संगठन और उलेमाओं ने कोर्ट के फैसले का पहले स्वागत करते हुए कहा था कि यह मुस्लिम संपत्तियों पर सरकारी हस्तक्षेप रोकने का महत्वपूर्ण कदम है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मुस्लिम पक्षकारों ने स्वागत करते हुए अपनी जीत का एलान भी कर दिया लेकिन शाम होते-होते उनके बयानों में बदलाव आने लग गया। 128 पेज का जजमेंट सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड होने और पढ़ने के बाद वे इसकी आलोचना करने लग गए और उसे ही अब अपने खिलाफ बताने लगे हैं।
हालांकि वक्फ पर सुप्रीम कोर्ट का जो अंतरिम फैसला आया है, उससे सभी पक्ष खुश होने चाहिए क्योंकि इसमें दोनों पक्षों के लिहाज से एक संतुलित फैसला शीर्ष अदालत द्वारा दिया गया है। इस अंतरिम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को पूरी तरह रद करने से इनकार किया है लेकिन इसके कुछ प्रावधानों पर रोक लगाई है। कोर्ट ने वक्फ करने के लिए इस्लाम में पांच साल की न्यूनतम प्रैक्टिस की अनिवार्यता और वक्फ बोर्ड में अधिकतम गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या पर रोक लगाई है। सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ कानून के कुछ प्रावधानों पर आंशिक संशोधन और एक पर पूर्ण रोक भी लगाई है। सीजेआई गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने इस सर्वसम्मत अंतरिम निर्णय में साफ कहा है कि हम पूरे वक्फ कानून पर रोक नहीं लगा रहे हैं। हम नए कानून के कुछ प्रावधानों पर रोक लगा रहे हैं। सीजेआई ने यह भी कहा कि वक्फ बोर्ड में तीन से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं होने चाहिए। यानी पदेन और नामजद मिलाकर वक्फ बोर्ड में कुल 4 से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं होने चाहिए। सीजेआई ने कहा कि सिर्फ रेयरेस्ट ऑफ रेयर यानी दुर्लभतम स्थिति में ही समग्र कानून पर रोक का आदेश दिया जा सकता है।
इस अधिनियम के विरोधी इस कानून को पूरी तरह से खत्म करना चाहते थे, वहीं इसके समर्थक बचाव में डटे थे। वक्फ में सुधार की इस कोशिश पर खतरे के बादल मंडरा रहे थे। प्रथम तो यह कि सर्वोच्च न्यायालय ने इस संशोधन अधिनियम को पूरी तरह से गलत नहीं ठहराया है। मतलब, अधिनियम नए निर्देशों के साथ देश में लागू किया जा सकता है। दूसरी यह आशंका जताई जा रही थी कि वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों का वर्चस्व हो जाएगा, तो सर्वोच्च न्यायालय ने इसका भी उपाय कर दिया है। केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या चार से अधिक नहीं हो सकती जबकि राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या तीन से अधिक नहीं होगी।
महत्वपूर्ण बात यह है कि केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत करते हुए कहा कि यह लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत है। उन्होंने कहा कि एक्ट के प्रावधान पूरे मुस्लिम समुदाय के लिए लाभकारी हैं। वक्फ बोर्ड के जरिए संपत्ति पर कब्जा करने सहित होने वाले दुरुपयोग पर नए कानून से रोक लगेगी। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने भी कहा कि कोर्ट का यह फैसला न्याय, समानता और बंधुता के संवैधानिक मूल्यों की जीत है। अब उम्मीद है कि इस फैसले से वे आशंकाएं दूर हो जाएंगी, जो इस नए कानून को लेकर जताई जा रही थीं। सुप्रीम कोर्ट की ओर से किए गए संशोधन महत्वपूर्ण और जरूरी हैं। इनमें संविधान की भावनाओं का खयाल रखा गया है। वक्फ संशोधन अधिनियम के कई बिंदुओं पर विपक्ष को गहरी आपत्ति थी। इसे लेकर दोनों सदनों में और सड़क पर भी काफी हंगामा हुआ। इस मामले की गंभीरता और उसके असर को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट का फैसला जिम्मेदारी भरा है। याचिका में पूरे कानून को रद करने की मांग की गई थी, लेकिन शीर्ष अदालत ने इसे नहीं माना। इस मायने में सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक विवेक का इस्तेमाल किया और यह भी ध्यान रखा कि विधायिका के साथ सीमाओं का अतिक्रमण न हो। वक्फ के उचित प्रबंधन के लिए उसके दस्तावेजों का दुरुस्त होना भी जरूरी है और यह मांग काफी पहले से हो रही थी, जिस पर न्यायालय ने मुहर लगा दी है। दस्तावेजों के दुरुस्त होने पर अल्पसंख्यक समाज में भी पारदर्शिता बढ़ेगी और पूरे समाज को सम्मान मिलेगा। इसमें कोई दोराय नहीं कि अदालत के फैसले से वक्फ प्रबंधन को मजबूती मिली है और अदालत ने भी वक्फ बोर्ड पर जो भरोसा जताया है, उस पर उसे भी खरा उतरना चाहिए।

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