ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। भारत ने भारत की निजी डिफेंस कंपनियों और स्टार्टअप के लिए दिल का दरवाजा खोल दिया है। दरअसल डीआरडीओ और सरकार भारत को डिफेंस का एक्सपोर्टर बनाना चाहते हैं। इसके लिए निजी कंपनियों का तेजी से आगे बढ़ना जरूरी है। इसलिए मदद के रूप में डीआरडीओ ने एक खतरनाक टेक्नोलॉजी (एमसीएचईडब्ल्यू-1 वॉरहेड तकनीक) शेयर करने का फैसला किया है। इससे अब हर कंपनी गोला बारूद बना सकेगी।
भारत के पास मौजूदा डिफेंस इक्विपमेंट रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन ने बनाया है, या तो फिर एचएएल ने बनाया है। इसके अलावा तीसरी स्वदेशी कंपनी के हथियार न के बराबर हैं। इन सरकारी कंपनियों की महत्ता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत में बनने वाले स्वदेशी 5वीं पीढ़ी के जेट को विकसित करने की जिम्मेदारी इन्हीं के कंधों पर हैं। ये दोनों कंपनियां हथियार निर्माण के साथ ही निजी कंपनियों के साथ तालमेल भी बैठाकर चलती हैं।
भारत सरकार ने हाल ही में डिफेंस सेक्टर में निजी कंपनियों को मौका देकर क्रांतिकारी काम किया है, जिससे भारत में तेजी से हथियारों का निर्माण हो सकेगा। वहीं सरकार के इस फैसले को बल देने के लिए डीआरडीओ ने एक बड़ा फैसला लिया है। डीआरडीओ भारतीय डिफेंस सेक्टर की निजी कंपनियों को टेक्नोलॉजी शेयर करने जा रहा है।
डीआरडीओ ने देश की कंपनियों से टेक्नोलॉजी ट्रांसफर (टीओटी) के लिए रुचि पत्र मांगा है। यह तकनीक मिसाइलों और बमों में इस्तेमाल होने वाले अत्याधुनिक हाई एक्सप्लोसिव वॉरहेड सिस्टम से जुड़ी है, जिन्हें पूरी तरह देश में विकसित किया गया है। इन तकनीकों को कड़े परीक्षणों और प्रयोगों के बाद तैयार किया गया है. इसका मकसद भारत को गोला-बारूद और हथियारों के मामले में आत्मनिर्भर बनाना है, ताकि विदेशों पर निर्भरता कम हो सके।
एमसीएच ई डब्ल्यू-1 वॉरहेड तकनीक
डीआरडीओ ने मिसाइलों के लिए एमसीएचईडब्ल्यू-1 वॉरहेड की तकनीक विकसित की है। यह एक प्री-फॉर्म्ड फ्रैगमेंटेशन वॉरहेड है, यानी विस्फोट के बाद इसके टुकड़े दूर तक जाकर दुश्मन को नुकसान पहुंचाते हैं। इसमें हाई स्पीड से फटने वाला विशेष विस्फोटक (एमसीएचई-202) इस्तेमाल किया गया है। इस तकनीक से नजदीक के इलाके में जोरदार धमाका होता है और दूर तक घातक टुकड़े पहुंचते हैं।
एमसीएचईडब्ल्यू
-2 तकनीक उन वॉरहेड्स के लिए है जो पहले लक्ष्य में घुसते हैं और फिर विस्फोट करते हैं, या फिर धमाके और टुकड़ों दोनों से नुकसान पहुंचाते हैं। इसमें ऐसे विस्फोटक लगाए गए हैं जो ज्यादा सुरक्षित हैं और झटकों से आसानी से नहीं फटते. इससे अलग-अलग युद्ध परिस्थितियों में दुश्मन को प्रभावी तरीके से नष्ट किया जा सकता है।
एमसीएचईडब्ल्यू-4 वॉरहेड
में तीन तरह के वॉरहेड शामिल हैं, जो ब्लास्ट और फ्रैगमेंटेशन पर आधारित हैं। इसकी पूरी हार्डवेयर तकनीक तैयार है और यह सेना की सख्त जरूरतों और मानकों पर खरी उतरती है। एमसीएचईडब्ल्यू-6 तकनीक बमों के लिए विकसित की गई है। इसमें प्री-फॉर्म्ड और पेनिट्रेशन-ब्लास्ट वॉरहेड शामिल हैं। इस सिस्टम में विस्फोट की पूरी श्रृंखला को देश में ही डिजाइन और विकसित किया गया है। ये सभी तकनीकें डीआरडीओ की हाई एनर्जी मैटीरियल्स रिसर्च लैबोरेटरी द्वारा विकसित की गई हैं। इनमें इस्तेमाल होने वाला कच्चा माल और मशीनें भारत में आसानी से उपलब्ध हैं, जिससे बड़े पैमाने पर उत्पादन संभव है। सभी सिस्टम अंतरराष्ट्रीय मानकों के बराबर साबित हुए हैं।

