ब्लिट्ज ब्यूरो
जयपुर। राजस्थान के शहरी विकास एवं आवास (यूडीएच) विभाग की ओर से जारी नए भूमि रजिस्ट्री नियम ने प्रदेश में तीखी प्रतिक्रिया को जन्म दे दिया है। विशेषज्ञों, वकीलों और विभागीय अधिकारियों का कहना है कि यह नियम बड़े बिल्डर्स को अप्रत्यक्ष लाभ पहुंचाता है, जबकि छोटे भू-मालिकों और किसानों के लिए बड़ी बाधाएं खड़ी करता है।
कन्वर्ज़न सर्टिफिकेट अनिवार्य, छोटे मालिकों पर बढ़ा बोझ
नए नियम के अनुसार अब किसी भी विक्रय विलेख (सेल डीड) का पंजीकरण तब तक संभव नहीं होगा, जब तक भूमि का कृषि से आवासीय या औद्योगिक उपयोग में परिवर्तन प्रमाणपत्र प्राप्त न हो। आलोचकों का कहना है कि साधारण किसान या छोटे भू-मालिकों के लिए जयपुर विकास प्राधिकरण (जेडीए) या अन्य एजेंसियों से ऐसा प्रमाणपत्र लेना अत्यंत कठिन है।
यूडीएच विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘इस नियम के बाद किसानों जैसे छोटे मालिकों को अपनी जमीन बेचने के लिए बड़े बिल्डर्स का सहारा लेना पड़ेगा। इससे भूमि लेन-देन में बड़े डेवलपर्स का प्रभाव और बढ़ेगा।’
जेडीए सीमा बढ़ने का भी असर, खरीदारों और प्लॉट मालिकों की चिंता
नियम ऐसे समय आया है जब जेडीए ने अपनी सीमा कई गांवों तक बढ़ा दी है। जिला कलेक्ट्रेट में कार्यरत अधिवक्ताओं का कहना है कि बिना कन्वर्ज़न वाले प्लॉट अब खरीदारों को आकर्षित नहीं करेंगे और रजिस्ट्री में अड़चनें बढ़ेंगी।
जिला रजिस्ट्री कार्यालय के अधिवक्ता हरलाल सिंह ने बताया, ‘जयपुर की 80% से अधिक कॉलोनियां हाउसिंग सोसाइटीज ने विकसित की हैं, जिनके पास कन्वर्ज़न सर्टिफिकेट नहीं थे। अब भी बड़ी संख्या में लोगों को जेडीए पट्टा नहीं मिला है—उनका क्या होगा?’
उन्होंने यह भी कहा कि यह नियम सुप्रीम कोर्ट के अप्रैल 2025 के आदेश के विपरीत है, जिसमें साफ कहा गया था कि रजिस्ट्रार को संपत्ति के टाइटल या भूमि की प्रकृति की जांच करने की जिम्मेदारी नहीं है।
विशेषज्ञों ने नियम को बताया
अधूरा और अस्पष्ट
पूर्व अतिरिक्त मुख्य नगर नियोजक चंद्र शेखर पाराशर ने नियम को ‘अधूरा’ बताते हुए कहा कि इससे सरकारी राजस्व तो बढ़ेगा, लेकिन जेडीए/यूडीएच के मास्टर प्लान और बाइलॉज का अनुपालन सुनिश्चित नहीं हो सकेगा। उन्होंने कहा कि शहरी विकास में सुव्यवस्थित ज़ोनिंग और डेवलपमेंट मानकों का पालन अनिवार्य किया जाना चाहिए।

