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बार-बार निरर्थक याचिका लगाई, एक लाख जुर्माना

Repeatedly filed futile petition, fined one lakh
ब्लिट्ज ब्यूरो

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार निरर्थक केस दायर करने वाले याचिकाकर्ता पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया है और कहा है कि याचिकाकर्ता ने न्यायिक प्रणाली का दुरुपयोग किया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत तक पहुंच का अधिकार लोकतंत्र का मौलिक स्तंभ है लेकिन यह पूर्ण अधिकार नहीं है बल्कि इसे सावधानीपूर्वक इस्तेमाल किया जाना चाहिए। शीर्ष अदातल ने कहा कि न्यायिक प्रणाली के साथ खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में एक याचिकाकर्ता पर 1,00,000 का भारी जुर्माना लगाया, जिसने 11 वर्षों में बार-बार निरर्थक मुकदमे दायर किए। उसने बॉम्बे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट सहित 10 से अधिक बार विभिन्न मंचों पर मामले दायर किए। जस्टिस जे.के. महेश्वरी और जस्टिस राजेश बिंदल की बेंच ने याचिकाकर्ता की ऐसी हरकतों को न्यायिक प्रणाली का दुरुपयोग करार दिया।

जब याचिकाकर्ता अलग अलग फोरम पर बार-बार निराधार याचिकाएं दायर करते हैं और जानबूझकर कार्यवाही में देरी करते हैं, तो वे हमारी न्यायिक प्रणाली की नींव को कमजोर करते हैं। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने बार-बार बेबुनियाद याचिकाएं और अपीलें दायर कीं, जिनमें कोई आधार नहीं था। यह प्रयास न्यायिक प्रक्रिया को दूषित करने और अन्य मामलों के निपटारे में बाधा उत्पन्न करने का एक उदाहरण है।

याचिकाकर्ता को साल 2000 में बार-बार और लंबे समय तक बिना अनुमति अनुपस्थित रहने के कारण सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। याचिकाकर्ता ने अपीलें और याचिकाएं कई मंचों पर दायर कीं, जिनमें से सभी में उसकी बर्खास्तगी को सही ठहराया गया। केंद्रीय औद्योगिक न्यायाधिकरण, मुंबई और बॉम्बे हाईकोर्ट ने उसकी बर्खास्तगी को बरकरार रखा।

हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ समीक्षा याचिका और फिर सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिकाएं दायर की गईं, जिन्हें खारिज कर दिया गया। जब कोई राहत नहीं मिली, तो याचिकाकर्ता ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को शिकायतें भेजीं। 11 वर्षों के दौरान उसने कई याचिकाएं और समीक्षा याचिकाएं भेजी थीं।

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