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सुप्रीम कोर्ट ने तलाक-ए-हसन को रद करने का दिया संकेत

Supreme Court hints at annulment of Talaq-e-Hasan
ब्लिट्ज ब्यूरो

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मुस्लिम समाज में प्रचलित तलाक-ए-हसन की वैधता पर सवाल खड़े किए हैं। कोर्ट ने संकेत दिया कि वह तलाक-ए-हसन को रद करने पर विचार कर सकता है। यह एक ऐसी प्रथा है जिसके तहत एक मुस्लिम पुरुष तीन महीने तक हर महीने में एक बार “तलाक” शब्द कहकर अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि क्या 2025 में एक सभ्य समाज में महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाली ऐसी प्रथा को अनुमति दी जानी। कोर्ट के मुताबिक तीन तलाक के बाद अब तलाक-ए-हसन को रद करने पर विचार किया जा सकता है।
कानूनी पहलू
जस्टिस सूर्य कांत, जस्टिस उज्ज्वल भुइयां और जस्टिस एन कोटेश्वर सिंह की तीन-न्यायाधीशों की बेंच ने संकेत दिया कि वह इस प्रथा को असंवैधानिक घोषित करने पर गंभीरता से विचार कर सकती है और इसके कानूनी पहलुओं को देखते हुए इसे 5-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेजने पर भी विचार कर रही है। इसके लिए बेंच ने संबंधित पक्षों से विचार के लिए उठने वाले व्यापक प्रश्नों के साथ नोट प्रस्तुत करने को कहा।
कोर्ट ने क्या कहा
कोर्ट ने कहा कि एक बार जब आप हमें संक्षिप्त नोट दे देंगे तो हम मामले को 5 न्यायाधीशों की पीठ को सौंपने की वांछनीयता पर विचार करेंगे। हमें मोटे तौर पर वे प्रश्न बताइए जो उठ सकते हैं। फिर हम देखेंगे कि वे मुख्यतः कानूनी प्रकृति के हैं और न्यायालय को उनका समाधान करना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि चूंकि यह प्रथा बड़े पैमाने पर समाज को प्रभावित करती है, इसलिए न्यायालय को सुधारात्मक उपाय करने के लिए कदम उठाना पड़ सकता है।
‘अगर भेदभावपूर्ण प्रथाएं हैं, तो
कोर्ट को दखल देना होगा’
जस्टिस सूर्य कांत ने कहा कि जब कोई प्रथा बड़े पैमाने पर समाज को प्रभावित करती है, तो कोर्ट को सुधारात्मक उपाय करने के लिए हस्तक्षेप करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि अगर घोर भेदभावपूर्ण प्रथाएं हैं, तो कोर्ट को दखल देना होगा। उन्होंने कहा कि इसमें पूरा समाज शामिल है। कुछ सुधारात्मक उपाय किए जाने चाहिए। यदि घोर भेदभावपूर्ण व्यवहार हो रहा है, तो न्यायालय को हस्तक्षेप करना होगा’।
प्रथा की प्रासंगिकता पर सवाल उठाते हुए बेंच ने कहा ‘ यह किस तरह की चीज है? आप 2025 में इसे कैसे बढ़ावा दे रहे हैं?. हम चाहे जो भी सर्वश्रेष्ठ धार्मिक प्रथा अपनाएं, क्या आप इसकी अनुमति देते हैं? क्या इसी तरह एक महिला की गरिमा बरकरार रखी जाएगी?

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