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ठाणे से भिवंडी सिर्फ 7 मिनट में!

Thane to Bhiwandi in just 7 minutes!
ब्लिट्ज ब्यूरो

मुंबई। ठाणे और भिवंडी के बीच यात्रा करने वालों को व्यस्त समय में आधे घंटे से पंद्रह मिनट तक का सफर तय करना पड़ता है। शहरवासी ट्रैफिक जाम से जूझ रहे हैं। इस समस्या के समाधान के लिए मुंबई महानगर प्रदेश विकास प्राधिकरण एक नई महत्वाकांक्षी परियोजना लेकर आया है। वसई क्रीक पर छह लेन का फ्लाईओवर बनाकर ठाणे और भिवंडी को सीधे जोड़ने की योजना तैयार की गई है। दावा किया जा रहा है कि इस पुल के बन जाने के बाद यह सफर सिर्फ 5 से 7 मिनट में पूरा हो जाएगा।
कहां बनेगा पुल?
यह पुल ठाणे के कोलशेत से शुरू होकर भिवंडी के कल्हेर तक जाएगा। वसई क्रीक पर बनने वाला यह पुल लगभग 2.2 किलोमीटर लंबा है और इस परियोजना की कुल अनुमानित लागत 430 करोड़ रुपये होगी। इस छह लेन वाले पुल के बनने से वर्तमान 45 मिनट का सफर कुछ ही मिनटों में सिमट जाएगा। गुरुवार को एमएमआरडीए ने इस परियोजना के लिए निविदा की घोषणा की और अगले तीन वर्षों में पुल का निर्माण पूरा करने का लक्ष्य रखा है।
तेज और सुविधाजनक कनेक्टिविटी
आने वाले सालों में भिवंडी में मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन का एक महत्वपूर्ण स्टेशन बनने जा रहा है। इसलिए भिवंडी से तेज और सुविधाजनक कनेक्टिविटी जरूरी हो गई है। कपड़ा व्यवसाय और औद्योगिक क्षेत्र के कारण भिवंडी श्रमिकों और व्यापारियों के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र है। ठाणे और मुंबई से बड़ी संख्या में श्रमिक वर्ग प्रतिदिन भिवंडी आता-जाता है।
यात्रा आसान होगी
वर्तमान में यात्रियों को कोलशेत और कल्हेर के बीच बालकुम नाका और पुराने काशेली पुल से होकर यात्रा करनी पड़ती है। यहां यातायात काफी व्यस्त रहता है और त्योहारों के मौसम में यह यात्रा 2 घंटे तक बढ़ जाती है। नया पुल बन जाने से यह व्यस्तता काफी कम हो जाएगी और भिवंडी के कपड़ा उद्योग को भी बढ़ावा मिलेगा। ठाणे जिले के पालक मंत्री और उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे व्यक्तिगत रूप से इस परियोजना पर नजर रख रहे हैं।
पहले कितनी आंकी थी लागत?
कुछ साल पहले इस पुल की प्रारंभिक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी। उस समय 1.64 किलोमीटर लंबे पुल के निर्माण की योजना थी और इस परियोजना की लागत लगभग 274 करोड़ रुपये आंकी गई थी। हालांकि जगह का चयन न होने के कारण काम में देरी हुई। अब जब सभी आवश्यक रिपोर्टें प्रस्तुत कर दी गई हैं, तो उम्मीद है कि यह बहुप्रतीक्षित परियोजना तीन सालों के भीतर पूरी हो जाएगी।

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