ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि किसी मामले में अगर पीड़ित, शिकायतकर्ता या राज्य सरकार ने सजा बढ़ाने या नए आरोप में दोषी ठहराने की अपील नहीं की है, तो उच्च न्यायालय अपने आप से ऐसा नहीं कर सकता। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट ने नागराजन नाम के एक व्यक्ति की अपील पर सुनाया, जिसने मद्रास हाईकोर्ट के मदुरै बेंच के एक आदेश को चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने उसे आत्महत्या के लिए उकसाने (आईपीसी की धारा 306) का दोषी ठहराते हुए 5 साल की कड़ी सजा सुनाई थी।
क्या है पूरा मामला?
नागराजन पर आरोप था कि उसने अपनी महिला पड़ोसी के घर में घुसकर उसकी इज्जत से खिलवाड़ किया। यह घटना 11 जुलाई 2003 की है। अगले ही दिन महिला ने अपने बच्चे के साथ आत्महत्या कर ली थी। ट्रायल कोर्ट ने नागराजन को धारा 354 (महिला की गरिमा भंग करना) और धारा 448 (गलत इरादे से घर में घुसना) के तहत दोषी ठहराया था, लेकिन धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) से बरी कर दिया था। नागराजन ने खुद को दोषमुक्त कराने के लिए हाईकोर्ट में अपील की थी, लेकिन हाईकोर्ट ने उल्टा उसे आत्महत्या के लिए उकसाने का भी दोषी ठहरा दिया और सजा बढ़ा दी। इस पर नागराजन ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि, ‘अगर पीड़ित, शिकायतकर्ता या राज्य ने कोई अपील नहीं की है, तो हाईकोर्ट खुद से (सुओ मोटो) किसी आरोपी की सजा नहीं बढ़ा सकता और न ही उस पर नया आरोप जोड़ सकता है।’ पीठ ने यह भी कहा कि ‘जो व्यक्ति अपील करता है, उसे अपील के बाद पहले से अधिक सजा नहीं मिलनी चाहिए। यानी कोई व्यक्ति अपील करके अपनी स्थिति को और खराब नहीं कर सकता।’
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत हाईकोर्ट की तरफ से दी गई सजा को खारिज कर दिया। आईपीसी की धारा 354 और 448 के तहत जो सजा ट्रायल कोर्ट ने दी थी, उसे बनाए रखा। अदालत ने कहा कि आरोपी को उसी के अनुसार सजा दी जानी चाहिए, जिसके तहत वह दोषी ठहराया गया है और जिसकी अपील विधिवत हुई हो। नागराजन को ट्रायल कोर्ट की तरफ से दी गई सजा भुगतनी होगी और उसी के अनुसार जुर्माना भी भरना होगा।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने फैसले में कहा, ‘सीआरपीसी के अनुसार, सजा बढ़ाने का अधिकार तभी होता है जब राज्य, पीड़ित या शिकायतकर्ता अपील करें और आरोपी को अपना पक्ष रखने का अवसर दिया गया हो।’































