ब्लिट्ज ब्यूरो
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में अगले साल प्रस्तावित त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों को लेकर राजनीतिक और सामाजिक हलकों में हलचल तेज हो गई है। खासतौर पर सीटों के आरक्षण को लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में कयासबाजी का दौर शुरू हो चुका है। हर बार की तरह इस बार भी माना जा रहा है कि कई सीटों का आरक्षण बदलेगा और जो सीटें वर्तमान में किसी विशेष वर्ग के लिए आरक्षित हैं, वे आगामी चुनावों में किसी अन्य वर्ग को आवंटित की जा सकती हैं। पंचायती राज विभाग से मिली जानकारी के अनुसार सीटों के आरक्षण की प्रक्रिया अक्टूबर 2025 में शुरू होने की संभावना है। हालांकि, यह प्रक्रिया सीधे तौर पर पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन और उसकी अनुशंसा रिपोर्ट पर निर्भर होगी।
आरक्षण प्रक्रिया: हर बार नया समीकरण
उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव हर पांच साल में होते हैं। इनमें ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत (ब्लॉक स्तर) और जिला पंचायत के चुनाव शामिल होते हैं। इन चुनावों में सीटों का आरक्षण रोटेशन प्रणाली के आधार पर किया जाता है जिससे कि हर वर्ग को प्रतिनिधित्व का अवसर मिल सके। इसके अंतर्गत अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण निर्धारित किया जाता है। चूंकि पिछली बार आरक्षण का निर्धारण 2020-21 में हुआ था, ऐसे में अब रोटेशन प्रणाली के आधार पर सीटों का आरक्षण बदलेगा। यही कारण है कि कई क्षेत्रीय नेताओं, संभावित उम्मीदवारों और पंचायत स्तर के कार्यकर्ताओं ने पहले से ही जोड़-घटाव शुरू कर दिए हैं।
पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन है अहम
आरक्षण प्रक्रिया का सबसे संवेदनशील और जटिल पक्ष ओबीसी आरक्षण होता है। इसके लिए पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है। आयोग के गठन को लेकर सरकार की ओर से फिलहाल कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है लेकिन सूत्रों के अनुसार, अगर यह जुलाई या अगस्त 2025 में गठित होता है तो उसे रिपोर्ट तैयार करने और सिफारिशें देने में कम से कम तीन महीने का समय लगेगा। इसके बाद ही आरक्षण सूची को अंतिम रूप दिया जा सकेगा। एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, “सरकार की ओर से आयोग के गठन की प्रक्रिया पर मंथन चल रहा है। जैसे ही अंतिम निर्णय लिया जाएगा, आरक्षण की प्रक्रिया भी तय टाइमलाइन में शुरू हो जाएगी।”
क्या सरकार आयोग से पीछे हट सकती है
राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा भी गर्म है कि सरकार संभवतः आयोग के गठन से पीछे हट सकती है। इसकी प्रमुख वजह केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित जातीय जनगणना मानी जा रही है। यदि केंद्र स्तर पर जातिगत आंकड़े उपलब्ध होते हैं, तो राज्य सरकार उनके आधार पर भविष्य में आरक्षण तय कर सकती है। ऐसे में मौजूदा आयोग के गठन से बचना एक रणनीतिक निर्णय हो सकता है। हालांकि, विपक्षी दलों ने सरकार पर यह आरोप लगाना शुरू कर दिया है कि सरकार जानबूझकर पिछड़े वर्ग को आरक्षण से वंचित करना चाहती है। समाजवादी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “सरकार जानबूझकर पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन नहीं कर रही है ताकि आरक्षण प्रक्रिया लटक जाए और ओबीसी वर्ग की भागीदारी सीमित हो जाए।”
उम्मीदवारों की बेचैनी बढ़ी
आरक्षण सूची में फेरबदल के आसार से संभावित उम्मीदवारों में बेचैनी साफ देखी जा सकती है। जिन क्षेत्रों में पिछली बार ओपन सीट थी, वहां इस बार आरक्षण लगने की आशंका है और इसके उलट जिन क्षेत्रों में आरक्षण था, वे इस बार सामान्य हो सकती हैं।
यही कारण है कि उम्मीदवार अपने-अपने प्रभाव क्षेत्रों में जनसंपर्क और सामाजिक समीकरण बिठाने में अभी से जुट गए हैं। बलिया, अंबेडकर नगर, गोंडा, हरदोई, मैनपुरी जैसे जिलों में पंचायत चुनाव की गहमागहमी पहले से ही शुरू हो गई है। कई स्थानों पर पंचायत भवनों, ग्राम सचिवालय और प्राथमिक विद्यालयों में संभावित उम्मीदवारों की उपस्थिति बढ़ गई है।
महिलाएं भी रहेगी आरक्षण के दायरे में
त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था में 33 प्रतिशत आरक्षण महिलाओं के लिए भी निर्धारित है। यह आरक्षण भी रोटेशन के आधार पर तय होता है। इसलिए कई पुरुष उम्मीदवारों को आशंका है कि इस बार उनकी सीट महिला आरक्षित हो सकती है। वहीं दूसरी ओर, महिलाओं के लिए यह सुनहरा अवसर होगा कि वे नए क्षेत्रों से चुनाव मैदान में उतरें और प्रतिनिधित्व बढ़ाएं।
विभागीय तैयारियां
पंचायती राज विभाग ने आंतरिक स्तर पर तैयारियां शुरू कर दी हैं। जिलों से वर्ष 2021 के चुनावी आंकड़े मंगवाए गए हैं और संभावित रोटेशन के खाके तैयार किए जा रहे हैं।































