ब्लिट्ज ब्यूरो
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि विवादित तथ्यों से जुड़े साक्ष्यों के परीक्षण का क्षेत्राधिकार ट्रायल कोर्ट को है, हाईकोर्ट को नहीं। इस टिप्पणी के साथ न्यायमूर्ति सरल श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति सुधांशु चौहान की खंडपीठ ने ट्रांसफॉर्मर में आग लगने से हुए नुकसान के लिए 55 लाख रुपये मुआवजे की मांग करने वाली रिट याचिका खारिज कर दी। कहा, आग का कारण और नुकसान की वास्तविक राशि जैसे मुद्दे विवादित तथ्यों से जुड़े हैं, जिनका फैसला साक्ष्यों के आधार पर ही किया जा सकता है।
गाजियाबाद निवासी मोहम्मद रफीक ने याचिका में दावा किया कि उसकी दुकान के सामने बिजली विभाग के ट्रांसफॉर्मर में आग लग गई, जो दुकान और गोदाम तक फैल गई। इससे उसे करीब 55 लाख रुपये का नुकसान हुआ। 22 मई 2025 को बिजली विभाग को मुआवजे के लिए प्रत्यावेदन भी दिया था पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।
इसके खिलाफ याची ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। दलील दी कि आग विभाग की लापरवाही से लगी। इससे उसको भारी आर्थिक नुकसान हुआ। ऐसे में कोर्ट से मांग की कि पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड के प्रबंध निदेशक को उसके प्रत्यावेदन पर निर्णय लेने और मुआवजा देने का निर्देश दिया जाए।
वहीं, पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम के अधिवक्ता प्रांजल मेहरोत्रा ने दलील दी कि आग लगने के कारण और नुकसान की मात्रा को लेकर स्पष्ट तथ्य रिकॉर्ड पर नहीं हैं। ऐसे विवादित मामलों में सीधे रिट के माध्यम से मुआवजा नहीं दिया जा सकता।
कोर्ट ने याचिका खारिज कर कहा कि यह तय करना कि आग ट्रांसफॉर्मर से लगी या नहीं और वास्तव में कितना नुकसान हुआ, यह विवादित तथ्य हैं। इनका निपटारा केवल साक्ष्यों की जांच के बाद ही संभव है। इसलिए रिट क्षेत्राधिकार में इस तरह की राहत नहीं दी जा सकती। हालांकि, कोर्ट ने याची को मुआवजे के लिए अन्य विधिक कार्यवाही करने की छूट प्रदान की है।

