Site icon World's first weekly chronicle of development news

देश-दुनिया में रही धूम, गणपति जी अगले बरस जल्दी आना

There is a lot of excitement in the country and the world, Ganpati ji will come early next year.
ब्लिट्ज ब्यूरो

मुंबई। दस दिन देश-दुनिया में गणेशोत्सव की धूम रही। गण्ापति बप्पा के विसर्जन के साथ ही श्रद्धा, उल्लास, भक्ति, उत्साह के इस विराट पर्व का समापन हो गया। करोड़ों देशवासियों के साथ राजनीति, फिल्म, उद्योग, इकाेनॉमी से जुड़े दिग्गजों ने इस पर्व को ‘वैरी स्पेशल’ बनाया।
आइये जानते हैं भारत की धार्मिक, सामाजिक संस्कृति के दर्शन कराने वाली इस गौरवशाली परंपरा का शुभारंभ कब और कहां से हुआ।

पूरे भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों में बड़े धूमधाम से मनाए जाने वाले गणेशोत्सव की शुरुआत महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी पुणे से हुई थी। 10 दिनों तक चलने वाले गणेशोत्सव के दौरान पूरा शहर धार्मिक रंग में रंगा रहता है। गणेशोत्सव देश ही नहीं, पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। इस उत्सव की शुरूआत शिवाजी महाराज के बाल्यकाल में उनकी मां जीजाबाई द्वारा की गई थी। आगे चलकर पेशवाओं ने इस उत्सव को बढ़ाया और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने इसे राष्ट्रीय पहचान दिलाई। इस बार 7 सितंबर से गणेश चतुर्थी उत्सव मनाया गया। गणेश चतुर्थी को भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है।

गणेशोत्सव का समय
हिन्दू पंचांग के अनुसार यह उत्सव भाद्रपद माह की चतुर्थी से चतुर्दशी यानी दस दिनों तक चलता है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी भी कहते हैं।

हिन्दुओं के आदि आराध्य देव है ंगजानन
गणेश जी हिन्दुओं के आदि आराध्य देव हैं। हिन्दू धर्म में गजानन को एक विशिष्टि स्थान प्राप्त है। कोई भी धार्मिक उत्सव, यज्ञ, पूजन इत्यादि सत्कर्म हो या फिर विवाहोत्सव, निर्विघ्न कार्य सम्पन्न हो इसलिए शुभ के रूप में गणेश जी की पूजा सबसे पहले की जाती है। गणेश की प्रतिष्ठा सम्पूर्ण भारत में समान रूप में व्याप्त है। महाराष्ट्र में इन्हें मंगलकारी देवता के रूप में व मंगलमूर्ति के नाम से पूजा जाता है। दक्षिण भारत में इनकी विशेष लोकप्रियता ‘कला शिरोमणि’ के रूप में है। मैसूर तथा तंजौर के मंदिरों में गणेश की नृत्य-मुद्रा में अनेक मनमोहक प्रतिमाएं हैं।

– शिवाजी महाराज की मां जीजाबाई ने की थी शुरुआत
– लोकमान्य तिलक ने दिलाई राष्ट्रीय पहचान

सप्तवाहन शासकों के समय से है गणेशोत्सव की परंपरा
महाराष्ट्र में सातवाहन, राष्ट्र कूट, चालुक्य आदि राजाओं ने गणेशोत्सव की प्रथा चलायी थी। छत्रपति शिवाजी महाराज गणेशजी की उपासना करते थे। इतिहास में यह वर्णन मिलता है कि शिवाजी महाराज के बाल्यकाल में उनकी मां जीजाबाई ने पुणे के ग्रामदेवता कसबा गणपति की स्थापना की थी। तभी से यह परंपरा चली आ रही है।

पेशवाओं ने दिया बढ़ावा
शिवाजी महाराजा के बाद पेशवा राजाओं ने गणेशोत्सव को बढ़ावा दिया। पेशवाओं के महल शनिवार वाड़ा में पुणे के लोग और पेशवाओं के सेवक काफी उत्साह के साथ हर साल गणेशोत्सव मनाते थे। इस उत्सव के दौरान ब्राह्मणों को महाभोज दिया जाता था और गरीबों में मिठाई और पैसे बांटे जाते थे। शनिवार वाड़ा पर कीर्तन, भजन तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता था। भजन-कीर्तन की यह परंपरा आज भी जारी है।

पहले सिर्फ घरों में होती थी गणेश पूजा
ब्रिटिश काल में लोग किसी भी सांस्कृतिक कार्यक्रम या उत्सव को साथ मिलकर या एक जगह इकट्ठा होकर नहीं मना सकते थे। लोग घरों में पूजा किया करते थे। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने पुणे में पहली बार सार्वजनिक रूप से गणेशोत्सव मनाया। आगे चलकर उनका यह प्रयास एक आंदोलन बना और स्वतंत्रता आंदोलन में इस गणेशोत्सव ने लोगों को एक जुट करने में अहम भूमिका निभाई।

There is a lot of excitement in the country and the world, Ganpati ji will come early next year.

तिलक ने दिया आंदोलन का स्वरुप
लोकमान्य तिलक ने उस दौरान गणेशोत्सव को जो स्वरूप दिया, उससे गजानन राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बन गए। पूजा को सार्वजनिक महोत्सव का रूप देते समय उसे केवल धार्मिक कर्मकांड तक ही सीमित नहीं रखा गया बल्कि गणेशोत्सव को आजादी की लड़ाई, छुआछूत दूर करने और समाज को संगठित करने तथा आम आदमी का ज्ञानवर्धन करने का जरिया भी बनाया गया और उसे एक आंदोलन का स्वरूप दिया। इस आंदोलन ने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

आजादी की जंग और गणेशोत्सव
वीर सावरकर तथा अन्य क्रांतिकारियों ने गणेशोत्सव का उपयोग आजादी की लड़ाई के लिए किया। महाराष्ट्र के नागपुर, वर्धा, अमरावती आदि शहरों में भी गणेशोत्सव ने आजादी का नया ही आंदोलन छेड़ दिया था। गणेशोत्सव में वीर सावकर, लोकमान्य तिलक, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, बैरिस्टर जयकर, रेंगलर परांजपे, पंडित मदन मोहन मालवीय, मौलिकचंद्र शर्मा, बैरिस्टर चक्रवर्ती, दादासाहेब खापर्डे और सरोजनी नायडू आदि लोगों को संबोधित करते थे। गणेशोत्सव स्वाधीनता की लड़ाई का एक मंच बन गया था।

गणेशोत्सव से घबराने लगे थे अंग्रेज
अंग्रेज भी गणेशोत्सव के बढ़ते स्वरुप से घबराने लगे थे। इस बारे में रोलेट समिति रिपोर्ट में भी चिंता जतायी गयी थी। रिपोर्ट में कहा गया था गणेशोत्सव के दौरान युवकों की टोलियां सड़कों पर घूम-घूम कर अंग्रेजी शासन विरोधी गीत गाती हैं और स्कूली बच्चे पर्चे बांटते हैं जिसमें अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हथियार उठाने और मराठों से शिवाजी की तरह विद्रोह करने का आह्वान होता है। साथ ही अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए धार्मिक संघर्ष को जरूरी बताया जाता है।

पूरे महाराष्ट्र में 50 हजार गणेश मंडल
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1893 में गणेशोत्सव का जो सार्वजनिक पौधारोपण किया था, वह अब विराट वट वृक्ष का रूप ले चुका है। वर्तमान में केवल महाराष्ट्र में ही 50 हजार से ज्यादा सार्वजनिक गणेश मंडल हैं। इसमें से अकेले पुणे में 5 हजार से ज्यादा गणेश मंडल है। इसके अलावा आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात में काफी संख्या में गणेशोत्सव मंडल है। इतना ही नहीं अब विदेशों में भी गणेशोत्सव मनाया जाता है।

Exit mobile version