ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। किसी अपराध के आरोपितों की संपत्ति बुलडोजर से ढहाने और समुदाय विशेष को निशाना बनाने के आरोप लगाने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कार्रवाई से पहले 10 से 15 दिन का नोटिस दिए जाने की बात कही है। कोर्ट ने कहा कि इतना समय दिया जाना चाहिए।
दो सदस्यीय पीठ में शामिल जस्टिस बीआर गवई ने यह भी कहा कि अवैध निर्माण के मामलों में कोर्ट को दखल देने में बहुत स्लो होना चाहिए और अगर स्टे लगाया गया है तो एक महीने के भीतर उसका निपटारा होना चाहिए। पीठ के दूसरे न्यायाधीश केवी विश्वनाथन ने भी कार्रवाई से पहले 15 दिन के नोटिस को जरूरी बताया, ताकि परिवार वैकल्पिक व्यवस्था कर सके। उन मामलों में भी, जिनमें नोटिस को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जाती, इतना समय मिलना चाहिए। महिलाओं-बच्चों का सड़क पर आना अच्छा नहीं। इस पर सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह केस टु केस तय होना चाहिए। यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि अवैध निर्माण को संरक्षण न मिले। जस्टिस गवई ने कहा हम अतिक्रमण को नहीं छुएंगे। यहां हम कोई उपचार देने को दिशानिर्देश तय नहीं कर रहे, बल्कि कानून में जो उपचार हैं, उन्हें लागू करने की बात कर रहे हैं।
सालिसिटर जनरल ने रजिस्टर्ड डाक से नोटिस भेजने का दिया सुझाव
सालिसिटर जनरल ने हालांकि सुझाव दिया कि किसी भी संपत्ति पर कार्रवाई से पहले 10 दिन का नोटिस रजिस्टर्ड डाक से भेजा जाना चाहिए। इससे यह विवाद समाप्त हो जाएगा कि नोटिस नहीं मिला या नहीं भेजा गया। अगर कोई नोटिस रिसीव नहीं करता है तो उसका भी प्रमाण रहेगा। उनके सुझाव पर पीठ ने कहा कि नोटिस में उल्लंघन किए गए कानून का भी स्पष्ट जिक्र होना चाहिए। जब एक याचिकाकर्ता ने नोटिस में दो गवाह होने का सुझाव दिया तो कोर्ट ने कहा कि जब सब फर्जी होगा तो गवाह भी फर्जी हो जाएंगे। सालिसिटर जनरल का सुझाव ठीक है कि नोटिस रजिस्टर्ड डाक से भेजा जाना चाहिए। जस्टिस विश्वनाथन ने नोटिस भेजने का ब्योरा आनलाइन दर्ज किए जाने का भी सुझाव दिया ताकि हर चीज का रिकार्ड रहे।































