नई दिल्ली। टाइप वन डायबिटीज के शिकार मरीजों को पूरी जिंदगी इंसुलिन पर निर्भर रहना पड़ता है। अब राहत की बात यह है कि इन्हें आने वाले समय में इंसुलिन के इंजेक्शन से छुटकारा मिल सकता है। चीन के वैज्ञानिकों ने अपनी स्टडी में दावा किया है कि सेल ट्रांसप्लांट के जरिए टाइप वन डायबिटीज के एक मरीज को ठीक करने में सफलता मिली है जो भविष्य में टाइप वन के सभी मरीजों को इंसुलिन से छुटकारा दिला सकता है।
भविष्य की उम्मीद
भारतीय डॉक्टर भी इस स्टडी को भविष्य की एक उम्मीद मान रहे हैं। टाइप-1 डायबिटीज कुल डायबिटीज के मरीजों में 10 प्रतिशत टाइप वन के होते हैं। बॉडी में पेनक्रियाज के बीटा सेल के खिलाफ जब एंटीबॉडी बन जाती है तो इंसुलिन नहीं बनती। इससे टाइप-1 डायबिटीज आ घेरती है।
– सेल ट्रांसप्लांट के जरिए टाइप वन डायबिटीज के मरीज को ठीक करने में सफलता मिली है
कुल डायबिटीज के मरीजों में 10 प्रतिशत टाइप वन के होते हैं। इंसुलिन न बनने से बच्चे अचानक बीमार हो जाते हैं, उनका शुगर लेवल बढ़ जाता है। जब इलाज के लिए जाते हैं और जांच होती है तब उन्हें पहली बार पता चलता है कि टाइप वन डायबिटीज के मरीज हैं। चूंकि इनमें इंसुलिन बनता ही नहीं है, इसलिए पहले दिन से जिंदगी के आखिरी दिन तक इन बच्चों को इंसुलिन की इंजेक्शन लेना पड़ता है। नाश्ता, लंच और डिनर से पहले इन्हें इंसुलिन लेनी होती है और साथ में रात को लॉन्ग एक्टिव इंसुलिन भी लेनी पड़ता है।
टाइप-2 डायबिटीज
90 प्रतिशत टाइप टू डायबिटीज के मरीज हैं। इनमें डायबिटीज की वजह जेनेटिक होती है। ऐसे लोगों में पेनक्रियाज इंसुलिन कम बनाती है या वह जितना बनाती है, उतना कारगर नहीं होता है। इंसुलिन रेजिस्टेंस की वजह से इन लोगों में शुगर लेवल बढ़ जाता है। मतलब इनमें पूरी तरह से इंसुलिन बनना बंद नहीं होता है। इसलिए ऐसे लोगों को बड़ी उम्र में जाकर बीमारी का पता चलता है। इसको कंट्रोल करने के लिए पहले डाइट कंट्रोल किया जाता है, फिर एक्सरसाइज की सलाह दी जाती है, इसके बाद दवा दी जाती है।
स्टडी और दावा
चीन के वैज्ञानिकों ने टाइप-1 की एक 25 साल की महिला में सेल ट्रांसप्लांट किया। 30 मिनट के प्रोसेस के बाद अगले ढाई महीने के बाद महिला का शुगर लेवल स्वाभाविक तरीके से कंट्रोल होने लगा। महिला का एक साल तक फॉलोअप किया गया, जिसमें पाया गया कि बिना इंसुलिन लिए उसका शुगर लेवल कंट्रोल में है।
इस प्रकार हुई स्टडी
जाने माने डायबिटीज एक्सपर्ट डॉक्टर ए के झिंगन ने बताया कि इस प्रोसेस में वैज्ञानिकों ने केमिकल का प्रयोग कर लैब में प्रोग्राम तैयार किया है। प्लुरिपोटेंट इंसुलिन स्टेम सेल में बदलकर सीआईपीएससी आईलेट के रूप में इस्तेमाल किया। इसके लिए मरीज के टिशू सेल को निकालकर फिर से प्रोग्राम किया और उसे स्टेम सेल्स में बदलकर ट्रांसप्लांट कर दिया।
सराहनीय रिसर्च
आकाश हेल्थकेयर के डॉक्टर विक्रमजीत सिंह ने कहा कि चीन की स्टडी की सराहना की जानी चाहिए क्योंकि यह टाइप वन डायबिटीज के मरीजों के लिए एक उम्मीद की किरण प्रदान करता है, जिन्हें कई इंजेक्शन लगाने पड़ते हैं। लेकिन मैं यह भी कहना चाहूंगा कि स्टेम सेल ट्रांसप्लांट पर पहले से ही रिसर्च चल रहा है और अब तक इसके परिणाम बहुत अच्छे नहीं रहे हैं। इस पर विभिन्न वैज्ञानिकों द्वारा बड़े क्लिनिकल परीक्षण की जरूरत है। स्टेम सेल ट्रांसप्लांट एक महंगा इलाज है।
डायबिटीज की राजधानी है भारत
लोग डायबिटीज के शिकार होते हैं उन्हें किडनी फेल का खतरा होता है, आंखों की रोशनी कम हो सकती है, हार्ट अटैक आ सकता है, हार्ट की अन्य बीमारी हो सकती है। एक तरह से यह आपकी प्रोडक्टिविटी को ही कम कर देती है। जिसका असर न केवल पीड़ित परिवार के हालात पर होता है, बल्कि समाज व देश के आर्थिक स्थिति पर भी पड़ता है। आईसीएमआर की स्टडी के अनुसार पूरे देश में 11.4 परसेंट लोग डायबिटीज के मरीज हैं। वहीं, दिल्ली में हर 10वां व्यक्ति डायबिटीज का शिकार है। 1.42 अरब से ज्यादा आबादी वाले देश में इतनी बड़ी संख्या में डायबिटीज होने से आने वाले समय में किडनी और हार्ट की बीमारी से पीड़ितों की संख्या में बड़ा इजाफा हो सकता है और स्वास्थ्य सुविधाएं कम पड़ सकती हैं।