ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। हाल ही में भारतीय सेना के लिए बनाए गए लाइट माउंटेन टैंक जोरावर का राजस्थान के रेगिस्तानी इलाके जैसलमेर में फील्ड ट्रायल किया गया था। शुरुआती ऑटोमोटिव ट्रायल्स में जोरावर ने अलग-अलग रेंज के टारगेट्स पर बिल्कुल सटीक निशाने साधे। इसके बाद लद्दाख के माइनस जीरो डिग्री तापमान में भी इसके ट्रायल किए जाएंगे। जोरावर के ट्रायल्स 2026 तक चलेंगे। इसके बाद उसका प्रोडक्शन शुरू किया जाएगा। जोरावर को डीआरडीओ और एलएंडटी ने ढाई साल की मेहनत के बाद तैयार किया है। जोरावर के साथ सबसे खास बात यह है कि यह टी-72 या टी-90 जितना भारी नहीं है। चीन के टाइप 15 लाइट टैंक की तुलना में बेहद हल्का है और इसका वजन मात्र 25 टन है। जबकि चीन के टैंक का वजन 35 टन है। सूत्रों ने बताया कि चीनी टैंक के मुकाबले इसका वजन कम रखने के पीछे कई वजह हैं।
ऑपरेशनल जरूरतों को रखा ध्यान
भारतीय सेना की प्रोविजनल स्टाफ क्वालिटेटिव रिक्वायरमेंट्स यूनिट ने चीन के टाइप 15 लाइट टैंक के मुकाबले के लिए हल्के टैंक की मांग की थी ताकि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) और अन्य सुपर हाई एल्टीट्यूड इलाकों में इसकी तैनाती की जा सके। वहीं इसका वजन चीनी टैंक के मुकाबले जानबूझ कर 25 टन रखा गया।
जबकि इस कैटेगरी के टैंकों का वजन 33-36 टन तक होता है। सैन्य सूत्रों ने बताया कि परंपरागत तौर पर टैंक की फायरपावर और आर्मर पर फोकस किया जाता है लेकिन जोरावर के मामले में ऐसा नहीं था। बल्कि इसमें परंपरागत जरूरतों के साथ ऑपरेशनल आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखा गया। जोरावर प्रोजेक्ट से जुड़े भारतीय सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, जोरावर को डिजाइन करते वक्त कई चीजों को ध्यान में रखा गया। उन्होंने बताया कि जोरावर को जिन इलाकों में तैनात किया जाना है, वहां के जमीनी हालात और मौसमी परिस्थितियां ही कुछ ऐसी हैं।
गलवां संघर्ष से पहले ही चीन ने तैनात कर दिए थे टाइप-15 टैंक
सूत्रों ने बताया कि जोरावर का वजन 25 टन रखने के पीछे यह भी थी कि भारतीय सेना को ऐसा टैंक चाहिए था, जिसकी तैनाती फटाफट की जा सके। खास तौर पर हाई एल्टीट्यूड एरिया। 2020 में भारत-चीन के बीच हुए गलवां संघर्ष के बाद कुछ ऐसे ही हालात थे। उस समय पूर्वी लद्दाख में 90 से ज्यादा टैंकों को तुरतफुरत एलएसी तैनात किया गया था, जिनमें टी-72 टैंक प्रमुख थे। उस समय 6 टी-90 टैंक भी तैनात किए गए थे। बाद में एलएसी पर टी-72 टैंकों की संख्या बढ़ कर 200 तक पहुंच गई थी। वहीं, चीन ने 2020 से पहले ही जेडटीक्यू टाइप-15 टैंक एलएसी पर तैनात कर दिए थे। चीन के पास ऐसे 500 टैंक हैं।
शुरुआत में भारतीय सेना को 59 जोरावर टैंक दिए जाएंगे। बाद में 295 अतिरिक्त टैंक खरीदे जाएंगे। जोरावर 105-मिमी राइफल गन और मल्टी-रेंजिंग सेंसर से लैस है। इसमें एक बेल रिमोट वेपन स्टेशन और सफरन पासेओ ऑप्टिक्स के साथ-साथ दो एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल भी शामिल हैं। टैंक में एक नई लाइट वेट राइफल, एक एक्टिव प्रोटेक्शन सिस्टम और एड-ऑन मॉड्यूलर आर्मर ब्लॉक भी है। इसमें कैमरे भी लगाए गए हैं। जोरावर टैंक को सेना के प्रोजेक्ट जोरावर के तहत डेवलप किया गया है।
वहीं, इन्हें चलाने के लिए सिर्फ तीन लोगों की जरूरत होगी। सेना ने चरणों में लगभग 354 हल्के टैंक हासिल करने की योजना बनाई है, जिसके बाद इसकी लगभग छह रेजिमेंट बनाई जाएंगी।