ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। अब आईआईटी मेडिकल इंजीनियर तैयार करेगा। देश में पहली बार डॉक्टर और संबद्ध स्वास्थ्य पेशेवरों के लिए आईआईटी दिल्ली ने मेडिसिन और इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम को जोड़कर हेल्थकेयर टेक्नोलॉजी में मास्टर ऑफ साइंस (रिसर्च) कोर्स तैयार किया है। इसमें मेडिकल, साइंस और इंजीनियरिंग के विशेषज्ञ एक साथ मिलकर मेडिकल डिवाइस और इंप्लांट के साथ तकनीक विकसित करने पर काम होगा।
खास बात यह है कि डॉक्टर इस विशेष कोर्स की पढ़ाई के साथ-साथ एम्स और सफदरजंग अस्पताल में जाकर मरीजों की जांच भी करेंगे। सेंटर फॉर बायोमेडिकल इंजीनियरिंग की हेड प्रोफेसर नीतू सिंह ने बताया कि देश में पहली बार मेडिसिन और इंजीनियरिंग के दो अलग-अलग विषयों को एक साथ जोड़कर विशेष कोर्स तैयार किया है। अभी तक आईआईटी में एमटेक इन बायोमेडिकल में एमएससी (साइंस) और बीटेक (इंजीनियरिंग) के पासआउट स्नातक दाखिला लेते हैं।
यह दोनों अलग-अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञ मेडिकल डिवाइस और इंप्लाट बनाने पर काम करते हैं लेकिन मेडिकल डिवाइस और इंप्लाट किस तरह से शरीर में बीमारी से निजात में काम करता है, उसकी जानकारी सिर्फ डॉक्टर को होती है। इसीलिए इस प्रोग्राम को बनाने की जरूरत महसूस हुई। इस नए यूनिक प्रोग्राम के तहत अब डॉक्टर, साइंस और इंजीनियर सब एक साथ मिलकर काम करेंगे।
शोध से होगा फायदा
इस कोर्स में डॉक्टर और स्वास्थ्य पेशेवरों को अलग-अलग बीमारियों की जांच, समाधान के लिए मेडिकल डिवाइस और इंप्लाट के साथ तकनीक पर काम करने का मौका मिलेगा। इसमें उन्हें अलग-अलग क्षेत्रों में शोध करना होगा। इस कोर्स से ही उनकी पीएचडी की जरूरतें पूरी हो जाएंगी। इस कोर्स में सबसे अलग पहलू यह है कि इसे एमबीबीएस के बाद सीधे कर सकते हैं।
डॉक्टरों की प्रैक्टिस का नहीं होगा नुकसान
प्रो. सिंह ने बताया कि देशभर के मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस डॉक्टर, अकादमिक और उद्योग के साथ सर्वे के आधार पर तैयार रिपोर्ट के बाद आईआईटी के विशेषज्ञों ने इस कोर्स को डिजाइन किया है। इस कोर्स में डॉक्टर दाखिला लेने के बाद अस्पताल में जाकर क्लीनिकल प्रैक्टिस भी जारी रख सकेंगे। वे पढ़ाई के अलावा एम्स दिल्ली और सफदरजंग अस्पताल में जाकर मरीजों की जांच करेंगे। इसके अलावा गर्मियों या अन्य अवकाश में भी उन्हें क्लीनिकल प्रैक्टिस का मौका मिलेगा।
पढ़ाई के साथ भत्ता व मरीजों की जांच पर वेतन
इन पाठ्यक्रमों में डॉक्टरों को प्रति महीना 50 हजार से 90 हजार रुपये भत्ता मिलेगा। इसके अलावा मरीजों की जांच के आधार पर तय वेतन भी अस्पताल से मिलेगा।