नई दिल्ली। लाइफस्टाइल और आहार में गड़बड़ी के कारण कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ता जा रहा है। हड्डियों पर भी इसका नकारात्मक असर होता है, जिसके परिणामस्वरूप आर्थराइटिस और ऑस्टियोपोरोसिस जैसी दिक्क तें काफी आम हो गई हैं। हड्डियों में होने वाली किसी भी तरह की समस्या ‘क्वालिटी ऑफ लाइफ’ को प्रभावित करने वाली हो सकती है क्योंकि इसमें चलना-दौड़ना और दिनचर्या के सामान्य कार्य करना भी कठिन हो जाता है। ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या कई मामलों में ज्यादा चुनौतीपूर्ण मानी जाती है।
ऑस्टियोपोरोसिस की बीमारी आपकी हड्डियों को बहुत कमजोर कर देती है। आपकी हड्डियां सामान्य से कहीं ज्यादा पतली और कम घनत्व वाली हो जाती हैं, जिसके कारण इनके टूटने का खतरा भी काफी बढ़ जाता है। इस बीमारी की गंभीर स्थिति में हल्के से ठोकर, खांसने-छींकने के कारण भी फ्रैक्चर होने का खतरा हो सकता है। हड्डियों के स्वास्थ्य के बारे में वैश्विक जागरूकता बढ़ाने तथा ऑस्टियोपोरोसिस के निदान और उपचार के बारे में लोगों को शिक्षित करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 20 अक्तूबर को विश्व ऑस्टियोपोरोसिस दिवस मनाया जाता है।
ऑस्टियोपोरोसिस के बारे में जानिए
ऑस्टियोपोरोसिस आपकी हड्डियों को काफी कमजोर और भंगुर बना देती है। समय के साथ ये इतनी कमजोर हो जाती हैं कि गिरने या यहां तक कि झुकने या खांसने जैसे हल्के तनाव से भी इनके टूटने का खतरा रहता है। कूल्हे, कलाई या रीढ़ की हड्डी में ऑस्टियोपोरोसिस के कारण फ्रैक्चर के सबसे ज्यादा मामले देखे जाते हैं। असल में हमारी हड्डियां ऐसे ऊतकों से बनी होती हैं जो लगातार टूटती और बनती रहती हैं। ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या में हड्डियों की कोशिकाओं में क्षति तो होती है लेकिन नए सिरे से इसका निर्माण नहीं हो पाता है। इससे समय के साथ हड्डियां काफी खोखली और कमजोर हो जाती हैं।
क्यों होती है
उम्र बढ़ने के साथ हड्डियों में कमजोरी और इसके फ्रैक्चर का खतरा बढ़ जाता है। 50 की उम्र के बाद आपमें ऑस्टियोपोरोसिस होने का जोखिम भी बढ़ जाता है। जिन लोगों में हड्डियां खुद को फिर से विकसित करने और सुधारने की अपनी क्षमता खो देती हैं उनमें इस रोग के मामले सबसे ज्यादा देखे जाते रहे हैं।
ऑस्टियोपोरोसिस किसी को भी हो सकता है
50 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में इसका खतरा अधिक होता है। जिन लोगों के परिवार में पहले से किसी को ऑस्टियोपोरोसिस रहा है उनमें भी ये समस्या हो सकती है। महिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस होने की आशंका पुरुषों की तुलना में कहीं अधिक होती है।
ऑस्टियोपोरोसिस हो जाए तो क्या करें?
जिन लोगों को ऑस्टियोपोरोसिस की दिक्क त होती हैं उन्हें फ्रैक्चर से बचे रहने के लिए विशेष सावधानी बरतते रहने की आवश्यकता होती है। उपचार के दौरान मुख्य लक्ष्य हड्डियों के नुकसान को धीमा करना और हड्डियों के मौजूद ऊतकों को मजबूत बनाना होता है। इसके लिए डॉक्टर आपको कुछ दवाएं दे सकते हैं। विटामिन्स और मिनरल्स के सप्लीमेंट हड्डियों को मजबूत बनाने में मदद कर सकते हैं। डॉक्टर की सलाह पर कुछ प्रकार के व्यायाम को भी दिनचर्या में शामिल करना आपके लिए फायदेमंद हो सकता है।
ऑस्टियोपोरोसिस से बचाव के लिए क्या करें?
हड्डियों की दिक्कतों के लिए कैल्शियम की कमी को प्रमुख कारणों में से एक माना जाता है। ऑस्टियोपोरोसिस के विकास में भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। कैल्शियम की कमी हड्डियों के घनत्व को कम करने, हड्डियों को जल्दी क्षति पहुंचाने और फ्रैक्चर के जोखिमों को बढ़ाने वाली मानी जाती है। आहार में कैल्शियम और विटामिन डी वाली चीजों को शामिल करना, नियमित व्यायाम की आदत बनाना आपके लिए लाभकारी हो सकता है। सेंडेंटरी लाइफस्टाइल (शारीरिक निष्कि्रता) वाले लोगों में इसका जोखिम अधिक देखा जाता रहा है, इसलिए जरूरी है कि रोजाना कम से कम 30 मिनट के व्यायाम की आदत बनाएं।