ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। अजरबैजान के बाकू में कॉप- 29 जलवायु सम्मेलन में भारत का जोर मजबूत जलवायु वित्त, जवाबदेही और जलवायु परिवर्तन से प्रभावित कमजोर समुदायों की सुरक्षा पर होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सम्मेलन में शामिल नहीं होंगे और इस बार पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव भी अनुपस्थित रह सकते हैं। भारत की तरफ से पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह 19 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करेंगे। सम्मेलन में भारत का मुख्य वक्तव्य 18-19 नवंबर को होना तय है।
भारत की प्रमुख तीन प्राथमिकताएं
सम्मेलन में भारत की मुख्य तीन प्राथमिकताएं जलवायु वित्त में जवाबदेही, कमजोर समुदायों की सुरक्षा और न्यायसंगत ऊर्जा परिवर्तन होंगी। पहली प्राथमिकता के तहत भारत विकसित देशों से अपने वित्तीय वादे पूरे करने का आग्रह करेगा। यह पैसा विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करने के लिए जरूरी है। दूसरी प्राथमिकता के तहत देश सम्मेलन में उन लोगों के लिए सुरक्षा बढ़ाने पर अपनी बात रखेगा जो जलवायु परिवर्तन के असर से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।
अरुणाभ घोष ने दी जानकारी
तीसरी प्राथमिकता के तहत देश आर्थिक विकास को ध्यान में रखते हुए एक संतुलित स्वच्छ ऊर्जा बदलाव की कोशिश करेगा। ऊर्जा, पर्यावरण एवं जल परिषद (सीईईडब्ल्यू) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ अरुणाभ घोष ने कहा कि कॉप-29 में वादों से आगे बढ़कर सबसे बड़े ऐतिहासिक प्रदूषक विकसित देशों को अपने उत्सर्जन में तेजी से कमी लानी चाहिए और कमजोर देशों को निरंतर और प्रभावी वित्तीय सहायता देनी चाहिए। उन्होंने कहा कि कॉप-28 में कई वादे हुए, लेकिन इसने विकसित देशों को छूट दे दी। कॉप-29 जवाबदेही के बारे में होना चाहिए।
बीते सालों के उलट भारत ने कॉप-29 में अपना पवेलियन न लगाने का फैसला लिया है। आमतौर पर पवेलियन वह जगह होती है जहां देश अपने जलवायु संबंधी प्रयासों, नीतियो और परियोजनायें प्रदर्शित करते हैं। यहां देश अपनी जलवायु रणनीतियों पर चर्चा, प्रदर्शनी और कार्यक्रम आयोजित कर सकते हैं।
वहीं इस मामले में भारत का पवेलियन न लगाने का फैसला कई बातों की तरफ इशारा करता है। हो सकता है कि यह बजट से जुड़ा फैसला हो, या फिर भारत कॉप-29 में बहुपक्षीय सहभागिता पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करना चाहता है, बजाय अपनी उपलब्धियों को अलग से प्रदर्शित करने के। इसके अलावा भारत संभवतः अपने पवेलियन के बजाय अन्य अंतरराष्ट्रीय पवेलियन में सहभागिता का विकल्प चुन सकता है।
यह फैसला इस तरफ भी इशारा करता है कि भारत को अपने आर्थिक विकास और ऊर्जा की जरूरतों के साथ जलवायु कार्रवाई को संतुलित करना होगा।
उत्सर्जन पेरिस समझौते के तहत है या नहीं इस साल की बातचीत का एक प्रमुख मुद्दा जलवायु वित्त के लिए नया सामूहिक मात्रात्मक लक्ष्य (एनसीक्यूजी) होगा। यह सालाना ट्रिलियन डॉलर में हो सकता है। कई विकासशील देशों का तर्क है कि जलवायु परिवर्तन का प्रभावी मुकाबला करने के विकासशील देशों के लिए इस स्तर की फंडिंग जरूरी है। सम्मेलन में 13 नवंबर को ग्लोबल कार्बन बजट की रिलीज से यह जानकारी मिलेगी कि वर्तमान उत्सर्जन पेरिस समझौते के लक्ष्यों के अनुसार किस हद तक मेल खा रहे हैं।
ट्रंप की जीत से बढ़ी चिंता
केन्या के जलवायु परिवर्तन दूत अली मोहम्मद ने कहा कि अफ्रीकी देशों को ऐसा वित्तपोषण चाहिए जो उनके कर्ज के बोझ को न बढ़ाए। इसके बजाय, कृषि, पानी, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे के लिए समर्थन की आवश्यकता है। सेंटर फॉर अमेरिकन प्रोग्रेस की डॉ फ्रांसिस कॉलन ने बताया कि हाल में डोनाल्ड ट्रंप के फिर से चुनाव जीतने की वजह से अमेरिका में जीवाश्म ईंधन को समर्थन देने वाली नीतियां आ सकती हैं। इससे अन्य देशों पर जलवायु के लिए अपने संकल्प को बढ़ाने का दबाव बढ़ गया है।
नीति विशेषज्ञ लिंडा ने दी जानकारी
यूरोपीय संघ की जलवायु नीति विशेषज्ञ लिंडा काल्चर ने इस बात पर जोर दिया कि यूरोप को जलवायु वित्त के लिए मजबूत समर्थन बनाए रखना चाहिए, खासकर अमेरिका के संभावित नीति बदलावों के मद्देनजर। एशिया सोसायटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट के ली शुओ ने कॉप- 29 को वैश्विक सहयोग की परीक्षा करार दिया। उन्हें उम्मीद है कि वित्तीय प्रतिबद्धताओं और नुकसान और इसकी फंडिंग के मामले में चीन और यूरोपीय संघ जलवायु कार्रवाई में नेतृत्व करेंगे।
तालिबान प्रतिनिधिमंडल भी
अफगानिस्तान में 2021 में शासन पर कब्जा करने के बाद तालिबान सरकार का प्रतिनिधिमंडल पहली बार कॉप सम्मेलन में हिस्सा लेगा। बाकू में होने वाले सम्मेलन में अफगानिस्तान को भी शामिल किया जा रहा है। हालांकि तालिबान के शासन को अब तक दुनिया की मान्यता नहीं मिली है।
अफगानिस्तान सरकार ने दी जानकारी
अफगानिस्तान सरकार की पर्यावरण संरक्षण एजेंसी ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट के जरिये बताया कि सरकार का एक तकनीकी प्रतिनिधिमंडल सम्मेलन में हिस्सा लेने बाकू गया है। एजेंसी के प्रमुख मतीउल हक खलिस ने बताया, यह प्रतिनिधिमंडल, सम्मेलन का इस्तेमाल जलवायु संरक्षण मामलों पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय से सहयोग बढ़ाने, अफगानिस्तान की जरूरतें सामने रखने और जलवायु परिवर्तन से संबंधित वित्त व्यवस्था तक अफगानिस्तान की पहुंच बनाने के बारे में चर्चा करने के रूप में करेगा।