ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल ही में एक रिपोर्ट में बताया है कि दुनियाभर में 2023 में 80 लाख से अधिक टीबी के केस मिले हैं। फिक्र की बात ये है कि डब्ल्यूएचओ ने साल 1995 से इसका ट्रैक रखना शुरू किया था और तब से लेकर अब तक किसी भी साल में दर्ज किए गए टीबी के ये सबसे ज्यादा मामले हैं।
ये आंकड़े भारत के लिए ज्यादा चिंता का विषय इसलिए हैं क्योंकि उन्मूलन अभियान के बावजूद टीबी के वैश्विक आंकड़ों के 25% मामले सिर्फ भारत में दर्ज किए गए हैं। साल 2023 में भारत में टीबी के कुल 25 लाख 37 हजार मामले दर्ज किए गए। इससे पहले साल 2022 में करीब 24 लाख 22 हजार मामले सामने आए थे। टीबी के कारण पूरी दुनिया में साल 2023 में लगभग 12 लाख 50 हजार लोगों की मौत हुई। जबकि भारत में 2023 में टीबी के कारण 3 लाख 20 हजार से अधिक लोगों की मौत हुई।
भारत ने साल 2025 तक टीबी डिजीज के उन्मूलन का लक्ष्य रखा था। सरकार ने फाइनेंशियल ईयर 2023 में इस काम के लिए 3400 करोड़ रुपए आवंटित किए थे। आज की तारीख में सभी सरकारी अस्पतालों में टीबी का इलाज मुफ्त है और पेशेंट्स को इलाज के दौरान हेल्दी डाइट के लिए हर महीने 1 हजार रुपए भी मिलते हैं। हालांकि हाल ही में आए विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के बाद टीबी उन्मूलन लक्ष्य की राह मुश्किल नजर आ रही है।
यह बीमारी क्यों और कैसे फैलती है?
टीबी एक संक्रामक बीमारी है। इसके बैक्टीरिया आमतौर पर फेफड़ों के टिश्यूज को प्रभावित करते हैं। हालांकि कई बार ये रीढ़ की हड्डी, ब्रेन या किडनी जैसे दूसरे ऑर्गन्स को भी प्रभावित कर सकते हैं।
टीबी क्यों होती है?
टीबी माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नाम के बैक्टीरिया के कारण होती है। ये बैक्टीरिया हवा के जरिए फैलते हैं और आमतौर पर फेफड़ों को संक्रमित करते हैं। टीबी एक संक्रामक बीमारी जरूर है, लेकिन यह बहुत आसानी से नहीं फैलती । जब कोई व्यक्ति संक्रमित व्यक्ति के आसपास लंबा समय बिताता है, तो वह भी इस बीमारी से प्रभावित हो सकता है।
टीबी कैसे फैलती है?
टीबी से संक्रमित व्यक्ति के खांसने, छींकने, बात करने, गाने या यहां तक कि हंसने के दौरान उसके मुंह से निकले जर्म्स आसपास के लोगों को संक्रमित कर सकते हैं। जिन लोगों को एक्टिव टीबी है, सिर्फ वे ही संक्रामक होते हैं।
इसकी खास बात ये है कि अगर हमारी सांस के जरिए शरीर में बैक्टीरिया चले गए हैं तो ज्यादातर लोगों का शरीर इन बैक्टीरिया से लड़ने और उन्हें बढ़ने से रोकने में सक्षम होता है। इन लोगों के शरीर में बैक्टीरिया निष्िक्रय होकर पड़े रहते हैं।
हालांकि ये शरीर में जीवित बने रहते हैं और बाद में कभी भी सक्रिय हो सकते हैं। इसे लेटेंट ट्यूबरकुलोसिस इंफेक्शन (एलटीबीआई) या गुप्त टीबी कहते हैं। अगर आगे चलकर इन लोगों का इम्यून सिस्टम कमजोर होता है तो ये बैक्टीरिया एक्टिव हो जाते हैं और हमला कर देते हैं।
टीबी के लक्षण क्या हैं?
जिन लोगों की टीबी एक्टिव नहीं है, उनमें किसी तरह के लक्षण नजर नहीं आते हैं। हालांकि इन लोगों की टीबी की स्क्रीनिंग होने पर बीमारी का पता लगाया जा सकता है।
एक्टिव टीबी वाले लोगों में कई लक्षण दिख सकते हैं
– टीबी के कई सामान्य लक्षण हैं, जो आमतौर पर फेफड़े इन्फेक्टेड होने पर सामने आते हैं। अगर टीबी के कारण दूसरे अंग भी प्रभावित हुए हैं तो इसके कारण अन्य लक्षण भी सामने आ सकते हैं।
– अगर टीबी से किडनी प्रभावित हुई है तो यूरिन में ब्लड आ सकता है और किडनी की फंक्शनिंग खराब हो सकती है।
– अगर टीबी रीढ़ की हड्डी को प्रभावित करती है तो पीठ में दर्द और अकड़न हो सकती है और मसल्स में ऐंठन हो सकती है।
– अगर टीबी ब्रेन तक फैल जाए तो मतली और उल्टी हो सकती है। कनफ्यूजन बना रहता है और चेतना (कॉन्शियसनेस) की हानि हो सकती है।
टीबी की डाइग्नोसिस के लिए
किस तरह के टेस्ट किए जाते हैं?
टीबी का पता लगाने के लिए दो तरह के स्क्रीनिंग टेस्ट होते हैं। मंटोक्स ट्यूबरकुलिन स्किन टेस्ट (टीएसटी) और ब्लड टेस्ट। इनमें स्किन और ब्लड का टेस्ट किया जाता है।
अगर कोई व्यक्ति स्क्रीनिंग में पॉजिटिव पाया जाता है तो टीबी के कारण फेफड़ों को हुए नुकसान का पता लगाया जाता है। लंग्स डैमेज के लेवल के आधार पर इलाज में मदद मिलती है और यह भी पता चलता है कि टीबी एक्टिव है या नहीं।