ब्लिट्ज ब्यूरो
बाकू। संयुक्त राष्ट्र की जलवायु वार्ता (कॉप-29) में वार्ताकार अब भी इस बात पर काम कर रहे हैं कि विकासशील देशों को तापमान में वृद्धि रोकने के लिए अमीर देश जलवायु वित्त के तौर पर कितना भुगतान करेंगे। इस बीच, जलवायु कार्यकर्ताओं ने दो सप्ताह की वार्ता के बावजूद कोई निष्कर्ष न निकलने पर प्रदर्शन किया। इसके साथ ही आगे की योजना भी बनाई।
मालूम हो कि बाकू में दुनियाभर से आए जलवायु कार्यकर्ता विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। जलवायु न्याय के लिए ‘वैश्विक कार्रवाई दिवस’ पर बाकू, अजरबैजान में प्रदर्शन की गूंज दुनिया भर के स्थानों पर होने की उम्मीद है। प्रदर्शनकारी कार्यकर्ताओं में इस बात को लेकर रोष है कि कई वार्ताओं के बाद भी धरती के तापमान को कम करने की दिशा में किसी ने भी ठोस पहल नहीं की है। विकसित देश अब भी विकासशील देशों को उनके नुकसान की भरपाई करने को तैयार नहीं है और धरती लगातार गर्म होती जा रही है।
कॉप 29 में वार्ताकारों के एक अपेक्षित सौदे पर लौटने की उम्मीद है, जिसका मूल्य गरीब देशों के लिए सैकड़ों अरब डॉलर हो सकता है लेकिन कोई ठोस समाधान निकलता दिखाई नहीं दे रहा है। कई लोग वैश्विक दक्षिण में हैं और पहले से ही जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाली मौसमी आपदाओं के महंगे दुष्प्रभावों को झेल रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इस क्षतिपूर्ति और स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन के लिए प्रति वर्ष 1 खरब डॉलर से अधिक रकम खर्च करने की आवश्यकता है, जिसे अधिकांश देश अपने दम पर वहन नहीं कर सकते हैं।
कई मोर्चों पर जलवायु वार्ता की आलोचना
एक सप्ताह की जलवायु वार्ता की कई मोर्चों पर आलोचना हुई है। पूर्व अमेरिकी उपराष्ट्रपति अल गोर सहित अन्य लोगों ने वार्ता में जीवाश्म ईंन्धन उद्योग और जीवाश्म ईंन्धन पर निर्भर देशों की बढ़ती उपस्थिति को लेकर चिंता जताई। उन्होंने एक पत्र पर में सुझाव दिया कि प्रक्रिया पर सिर्फ बातचीत से कोई हल नहीं निकलेगा।
अच्छा होगा कि इसे लागू करने की दिशा में काम किया जाए। एक विश्लेषण में बाकू वार्ता में उपस्थित लोगों की सूची में जीवाश्म ईंन्धन से जुड़े कम से कम 1,770 लोग पाए गए।
सम्मेलन के मुख्य वार्ताकार, याल्चिन राफियेव ने स्वीकार किया कि समझौते के लिए बातचीत बहुत धीमी गति से आगे बढ़ रही है, लेकिन उन्होंने आलोचनाओं को खारिज कर दिया।