ब्लिट्ज ब्यूरो
जयपुर। मूल रूप से राजस्थान के पाली जिले की रहने वाली और दिल्ली में पली-बढ़ीं उम्मुल खेर की जिंदगी किसी उपन्यास के दर्द भरे अध्याय से कम नहीं है। गरीब परिवार में जन्मी उम्मुल बचपन से ही फ्रेजाइल बोन डिसऑर्डर से जूझ रही थीं। इस बीमारी से पीड़ित लोगों की हड्डियां बार-बार टूटती हैं। उनके शरीर की हड्डियां 17 बार टूटीं और 6 बार सर्जरी हुई, लेकिन उनकी हिम्मत कभी नहीं टूटी। वह बहुत छोटी थीं तो इस बीमारी के इलाज के लिए दिल्ली आईं। उनके पापा पहले से यहां रहते थे। उन्होंने निजामुद्दीन की झुग्गियों से अपनी जिंदगी की शुरुआत की। आर्थिक तंगी और गंभीर शारीरिक समस्याओं के बावजूद यूपीएससी की परीक्षा पास करके आईआरएस अधिकारी बनने तक का सफर तय किया।
उम्मुल बताती हैं कि जब उन्होंने होश संभाला तो पाया कि उनका परिवार झुग्गियों में रहता है और उनके पिता सड़क किनारे पटरी पर दुकान लगाते हैं जिसे पुलिस आए दिन हटा देती थी। इसकी वजह से घर में आय का कोई निश्चित सोर्स नहीं था। वह बताती हैं कि हड्डियों के कई फ्रैक्चर की वजह से 6-6 महीने तक प्लास्टर लगा रहता था। इस वजह से स्कूल जाना मुश्किल होता था। ऐसे में स्कूल वाले भी बुलाने का रिस्क नहीं लेते थे। इसके बाद भी उन्होंने कभी खुद को कमजोर महसूस नहीं किया। उन्हें अपने पैरों पर खड़े होने और परिवार की जिम्मेदारियों को उठाने के लिए छोटी उम्र में ही ट्यूशन पढ़ानी पड़ी जिससे घर का खर्च चलता था लेकिन उन्होंने पढ़ाई की ओर अपने सपनों की उड़ान जारी रखी। वह कहती हैं, ‘पापा का कोई पक्क ा काम नहीं था तो घर बहुत मुश्किल से चलता था। 12वीं की पढ़ाई के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी के गार्गी कॉलेज से साइकॉलजी ऑनर्स के साथ ग्रेजुएशन किया। इसके बाद जेएनयू से एमए की पढ़ाई की। फिर जेएनयू से ही इंटरनेशनल स्टडीज में एमफिल किया। इसके बाद जेएनयू में पीएचडी के लिए सिलेक्शन हुआ। अभी उसके लिए सिनॉप्सिस ही जमा किया था कि साल यूपीएससी के पहले ही अटेम्प्ट में आईआरएस अधिकारी बन गईं।’ वह बताती हैं, ‘यह मेरी मंजिल नहीं बल्कि इस सफर का एक पड़ाव है। लोगों को हमेशा अपनी जिंदगी के लिए बड़ा लक्ष्य बनाना चाहिए। जब आपका वक्त खराब चल रहा हो तब मंथन करना चाहिए कि हम आज अपनी जिंदगी की बेहतरी में क्या योगदान दे सकते हैं।’