ब्लिट्ज ब्यूरो
मुंबई। देवेंद्र फडणवीस 2014 में मुख्यमंत्री बने थे। तब भी किसी को अनुमान नहीं था कि वह मुख्यमंत्री बनाए जाएंगे, जबकि उस वक्त रेस में एकनाथ खड़से जैसे दिग्गज नेता थे। पांच साल तक उन्होंने यादगार सरकार चलाई। बीच के दौर में विधानसभा में प्रतिपक्ष नेता रहे। राजनीति हालात ऐसे बने कि उन्हें उपमुख्यमंत्री बनना पड़ा और अब वे बंपर बहुमत के साथ एक बार फिर मुख्यमंत्री बन गए हैं।
नहीं था किसी को भी अंदाजा
2014 में देशभर में मोदी का जादू चल रहा था। लोकसभा चुनाव जीतने के बाद बीजेपी ने महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव जीता। पहली बार 122 सीटें। शिवसेना ने अलग चुनाव लड़ा। वह 63 सीट जीत सकी। भले ही दोनों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा लेकिन सरकार बनाने की बेला आई तो बीजेपी और शिवसेना ने मिलकर सरकार बनाने का निर्णय लिया। उस वक्त मुख्यमंत्री की रेस में पार्टी के वरिष्ठ नेता एकनाथ खड़से, सुधीर मुनगंटीवार, विनोद तावडे, पंकजा मुंडे जैसे कई सारे दिग्गज नेता थे लेकिन बीजेपी ने सरकार की कमान युवा देवेंद्र फडणवीस को सौंपी। पांच साल तक उन्होंने मजबूती के साथ सरकार चलाई। फडणवीस के पांच साल के कार्यकाल को इसलिए ऐतिहासिक माना गया क्योंकि मुख्यमंत्री रहते हुए फडणवीस ने महाराष्ट्र की प्रगति को गति दी। पिछड़े विदर्भ को आगे बढ़ाया। मुंबई, पुणे, नागपुर जैसे शहरों की बुनियादी सेवाओं को मजबूती दी। मेट्रो रेल, कोस्टल रोड, अटल सेतु, समृद्धि महामार्ग को आगे बढ़ाया।
नहीं लगने दी किसी को भनक
2019 के विधानसभा चुनाव में फडणवीस की मांग पर ही बीजेपी और शिवसेना ने गठबंधन कर चुनाव लड़ा। 2019 के विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान फडणवीस ने बार-बार दोहराया कि मैं फिर आउंगा। उनकी यह लाइन मेरा पानी उतरता देख, मेरे किनारे पर घर मत बसा लेना। मैं समंदर हूं, लौटकर वापस आऊंगा। उन्होंने अपने इस बयान को पिछले महीने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक वीडियो के साथ साझा किया था। वीडियो में उनके इस बयान को उनके आवाज के साथ बड़े-बड़े शब्दों में लिखा भी गया था लेकिन चुनाव नतीजे में बीजेपी की सीटें 122 से 105 पर आ गईं और शिवसेना ने 56 सीटें जीती। उस वक्त शिवसेना और बीजेपी के बीच अनबन हो गई। उस वक्त अजित पवार के साथ फडणवीस ने शपथ ग्रहण ली लेकिन चंद घंटों के बाद फडणवीस को इस्तीफा देना पड़ा। शिवसेना ने शरद पवार और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ली। फडणवीस विरोध पक्ष नेता बने। विधान परिषद और राज्यसभा चुनाव में उनकी सूझबूझ सत्ताधारी दल शिवसेना, शरद पवार और कांग्रेस पर भारी पड़ी। उसी दौरान ही शिवसेना में फूट पड़ गई। कहा जाता है उस शिवसेना की फूट को किसी को भनक तक नहीं लगने दी।
तब लगा था गलत संदेश जाएगा
शिवसेना में फूट के बाद राज्य में शिंदे की सरकार बनने जा रही थी। उस वक्त माना जा रहा था कि फडणवीस मुख्यमंत्री बनेंगे क्योंकि बीजेपी के 105 विधायक है और शिंदे के पास महज 40 विधायक है। शिंदे उपमुख्यमंत्री बनेंगे। लेकिन राजभवन से फडणवीस ने एकनाथ शिंदे के मुख्यमंत्री बनने का एलान किया। उस वक्त फडणवीस सरकार में शामिल नहीं होने वाले थे। लेकिन चंद मिनटों बाद बीजेपी हाईकमान ने फडणवीस को सरकार में शामिल होने के लिए कहा। उस वक्त भारी मन से फडणवीस ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
बाद में फडणवीस ने खुद स्वीकार किया कि उस वक्त वे सरकार में शामिल नहीं होना चाहते थे क्योंकि मुख्यमंत्री रहा व्यक्ति उपमुख्यमंत्री बनेगा तो गलत संदेश जाएगा। लोगों को ऐसा लगेगा कि फडणवीस सत्ता के लालची है। लेकिन अब लगता है कि हाईकमान का वह निर्णय सही था।
यूं समुंदर की तरह लौटकर आए
ढाई साल उपमुख्यमंत्री रहने के बाद फडणवीस ने हालिया विधानसभा चुनाव में मेहनत की। उन्होंने 65 से ज्यादा चुनावी सभाएं की। नतीजा सामने है। बीजेपी ने सभी रिकॉर्ड तोड़ते हुए 132 सीटें जीतकर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। एक बार फिर वह समंदर की तरह लौटकर आ गए हैं। फडणवीस ने सीएम फेस चुने जाने के बाद कहा कि इस जीत का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘एक है तो सेफ’ को है। फडणवीस ने कहा ‘मोदी है तो मुमकिन है’। फडणवीस के दोबारा सीएम चुने जाने के बाद उनका यह बयान कि ‘मेरा पानी उतरता देख मेरे किनारे पर घर मता बसा लेना, मैं समंदर हूं लौटकर आऊंगा’ फिर से वायरल हो रहा है।