ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। भारत में महिलाओं की हिस्टेरेक्टॉमी के केसेस तेजी से बढ़ रहे हैं। आम भाषा में इसे महिला की बच्चेदानी निकालने की सर्जरी कहते हैं। किन स्थितियों में महिलाओं की हिस्टेरेक्टॉमी की जाती है, आइए जानते हैं
40 के बाद महिलाओं के पीरियड्स रेगुलर नहीं रहते। कई महिलाओं को हैवी ब्लीडिंग होती है। बहुत ज्यादा ब्लीडिंग, एंडोमेट्रियोसिस, गर्भाशय में फाइब्रॉएड, गायनेकोलॉजिकल कैंसर जैसी समस्याओं के कारण कई महिलाओं का गर्भाशय निकालना पड़ता है।
महिलाओं का गर्भाशय निकालने के लिए की जाने वाली सर्जरी हिस्टेरेक्टॉमी किन स्थितियों में की जाती है इसके बारे में बता रही हैं गुरुग्राम के मदरहुड हॉस्पिटल की ओब्स्टेट्रिशियन और गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. कुसुम लता।
गर्भाशय में फाइब्रॉएड
फाइब्रॉएड आमतौर पर लगभग सभी महिलाओं के गर्भाशय में पाए जाते हैं। अगर महिला को फाइब्रॉएड से कोई तकलीफ नहीं हो रही या इसके लक्षण महसूस नहीं हो रहे, तो आमतौर पर इसके इलाज की जरूरत नहीं पड़ती लेकिन कुछ महिलाओं के यूट्रस में फाइब्रॉएड इतने बड़े हो जाते हैं कि इससे उन्हें तकलीफ होने लगती है।
अगर फाइब्रॉएड के कारण महिला को असहनीय दर्द हो या पीरियड्स में बहुत ज्यादा ब्लीडिंग हो तो सर्जरी की सलाह दी जाती है। जब दवाइयों से काम नहीं चल पाता तो महिला का यूट्रस को निकालना पड़ता है।
असामान्य रक्तस्राव
मेनोपॉज के दौरान कई महिलाओं को हैवी ब्लीडिंग होती है। कुछ महिलाओं को मेनोपॉज के बाद भी ब्लीडिंग होने लगती है। इस तरह की असामान्य ब्लीडिंग कैंसर के कारण हो सकती है। यदि महिला की उम्र 40 से ज्यादा है, उसके बच्चे बड़े हो चुके हैं, अब वह बेबी प्लान नहीं करना चाहती, तो ऐसी स्थिति में गर्भाशय में किसी भी तरह की असामान्यता के चलते उसे हिस्टेरेक्टॉमी करने को कहा जाता है।
पीरियड्स के दौरान गर्भाशय से ही ब्लीडिंग होती है। अगर महिला का गर्भाशय निकाल दिया गया है तो उसे पीरियड्स नहीं होते। इसे ‘सर्जिकल मेनोपॉज’ कहते हैं लेकिन ओवरी के कारण उसके हार्मोन अपना काम करते रहते हैं। जिन महिलाओं की ओवरी में सिस्ट हो या कैंसर हो, ऐसी महिलाओं का गर्भाशय और अंडाशय दोनों निकाल दिए जाते हैं। ऐसी महिलाओं के हार्मोन्स बनना बंद हो जाते हैं। इसके कारण उनमें मेनोपॉज के लक्षण जैसे हॉट फ्लैश, मूड स्विंग, नींद न आना, मोटापा जैसे संकेत जल्दी नजर आने लगते हैं।
शरीर में एस्ट्रोजन हार्मोन न होने के कारण ऐसी महिलाओं में कैंसर और दिल की बीमारियां होने की संभावना बढ़ जाती है। ऐसी महिलाओं की हड्डियां जल्दी कमजोर होती हैं, जिसके कारण उन्हें ऑस्टियोपोरोसिस होने की संभावना भी बढ़ जाती है। ऐसी महिलाओं हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी दी जा सकती है, जिसे अब मेनोपॉजल हार्मोन थेरेपी कहते हैं।
हिस्टेरेक्टॉमी के कारण महिला के शरीर में एस्ट्रोजन की कमी हो जाती है। इससे महिला को ऑस्टियोपोरोसिस और हार्ट प्रॉब्लम होने की संभावना बढ़ जाती है। इसका असर महिला के फिजिकल रिलेशन पर भी पड़ता है। लिबिडो कम हो जाने के कारण महिला को फिजिकल रिलेशन बनाने की इच्छा नहीं होती।
यूटेरिन प्रोलैप्स
उम्र बढ़ने के साथ महिलाओं के गर्भाशय में बदलाव आने लगते हैं। 40 की उम्र के बाद कई महिलाओं को यूटेरिन प्रोलैप्स की समस्या होने लगती है। मेनोपॉज के बाद शरीर में एस्ट्रोजन हार्मोन की कमी के कारण पेल्विक फ्लोर की मसल्स और टिशू कमजोर हो जाते हैं। इसके कारण गर्भाशय बाहर की तरफ खिसकने लगता है।
इससे वजाइना पर दबाव बढ़ने लगता है। इसके कारण महिलाएं यूरिन नहीं रोक पातीं और उन्हें ब्लैडर लीकेज की तकलीफ होने लगती है। यदि स्थिति गंभीर हो तो महिला को हिस्टेरेक्टॉमी की सलाह दी जाती है।