दीपक द्विवेदी
भा रत में आधुनिक अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉ विक्रम साराभाई थे। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का प्राथमिक उद्देश्य राष्ट्रीय हित में अंतरिक्ष तकनीक एवं उसके अनुप्रयोगों का विकास करना है। भारत ने जब अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत की थी तो कई विकसित देशों ने इसका मजाक बनाया था परंतु भारत ने अपने कम बजट में भी उच्च अंतरिक्ष तकनीक को हासिल करने में सफलता प्राप्त की और आज वह श्रेष्ठ अंतरिक्ष तकनीक वाले देशों की कतार में शामिल है। आज भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अपनी एक महत्वपूर्ण पहचान बनाई है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने इस दिशा में कई ऐतिहासिक उपलब्धियां हासिल की हैं जो न केवल भारत के वैज्ञानिक और तकनीकी क्षमता का प्रतीक हैं बल्कि वैश्विक अंतरिक्ष समुदाय में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका को भी दर्शाती हैं।
इसरो की स्थापना 1969 में हुई थी और 1975 में ‘आर्यभट्ट’ उपग्रह के प्रक्षेपण के साथ भारत ने अंतरिक्ष में अपनी यात्रा की शुरुआत की। इसके बाद, 1980 में भारत ने अपने पहले स्वदेशी रॉकेट ‘एसएलवी-3’ के माध्यम से ‘रोहिणी’ उपग्रह को प्रक्षेपित किया। यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था जिसने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ी छलांग लगाई। भारत ने कई प्रकार के उपग्रह प्रक्षेपित किए हैं जिनमें संचार, मौसम विज्ञान, पृथ्वी अवलोकन और नेविगेशन के लिए उपग्रह शामिल हैं। 2008 में ‘चंद्रयान-1’ मिशन के साथ भारत ने चंद्रमा की सतह पर पानी की उपस्थिति की खोज की जो वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण खोज थी। इसके बाद, 2013 में ‘मंगलयान’ (मार्स ऑर्बिटर मिशन) के सफल प्रक्षेपण ने भारत को विश्व का पहला देश बना दिया जिसने अपने पहले ही प्रयास में मंगल की कक्षा में पहुंचने का गौरव प्राप्त किया।
चंद्रयान-3 और सूर्य का अध्ययन करने के लिए ‘आदित्य-एल1’ मिशन की सफलता भारत की महत्वपूर्ण उपलब्धियों में शामिल हैं। इसके अलावा, इसरो ने आगामी वर्षों में और भी कई महत्वाकांक्षी परियोजनाओं की योजना बनाई है जिनमें अंतरिक्ष में नए प्रयोग, गहरे अंतरिक्ष अन्वेषण और सौरमंडल के अन्य ग्रहों का अध्ययन शामिल है। इसरो ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी महत्वपूर्ण सहयोग किया है। विभिन्न देशों के साथ मिलकर उपग्रह प्रक्षेपण और अंतरिक्ष अनुसंधान में सहयोग किया गया है। इसके अलावा, इसरो ने अन्य देशों के उपग्रहों को प्रक्षेपित करने के लिए अपनी प्रक्षेपण सेवाएं भी प्रदान की हैं जिससे भारत की अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में विश्वसनीयता और प्रतिष्ठा बढ़ी है। अंतरिक्ष क्षेत्र की भारत की उपलब्धियों ने अंतरिक्ष विज्ञान में अग्रणी कहे जाने वाले अमेरिका और रूस जैसे देशों को भी चौंकाया है।
भारत की अंतरिक्ष में भूमिका न केवल देश के वैज्ञानिक और तकनीकी विकास का प्रतीक है बल्कि यह भारत की आत्मनिर्भरता और वैश्विक नेतृत्व की क्षमता को भी दर्शाती है।
इसरो की भविष्य की योजनाओं में ‘गगनयान’ मानव अंतरिक्ष मिशन पर तेजी से काम चल रहा है। स्पेस स्टेशन के लिए भारत के गगनयानयात्री जल्द ही उड़ान भरेंगे। उनकी पहले चरण की ट्रेनिंग पूरी हो गई है और अब तो इसरो ने यह भी खुलासा कर दिया है कि वह एक नहीं, दो स्पेस स्टेशन बनाएगा। इनमें एक धरती का चक्कर लगाएगा तो दूसरा चंद्रमा की परिक्रमा कर उसके रहस्य खंगालेगा। धरती की ऑर्बिट में चक्क र लगाने वाला स्पेस स्टेशन आईएसएस और चीन के तियागोंग स्पेस स्टेशन के बाद दुनिया का तीसरा स्पेस स्टेशन होगा और भारत अकेले ये कारनामा करने वाला विश्व का दूसरा देश बन जाएगा जबकि मून स्पेस स्टेशन बनाने वाला भारत पहला देश होगा। चंद्रयान-3 को चांद के साउथ पोल पर उतारकर इतिहास रचने वाला भारत अब स्पेस रिसर्च में सभी को पीछे छोड़ने के लिए तैयार है। हाल ही अपनी स्वदेशी हबल को विकसित कर नासा और यूरोपियन स्पेस एजेंसी को चुनौती देने वाले भारत ने अब अपने स्पेस स्टेशन पर काम शुरू कर दिया है। यह मिशन खास इसलिए भी है क्योंकि 2030 में इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को डिस्ट्रॉय कर दिया जाएगा। ऐसे में भारत का स्पेस स्टेशन स्पेस रिसर्च में बड़ी भूमिका निभा सकता है। इसके अलावा भारत 2040 तक मून स्पेस स्टेशन बनाने की तैयारी में भी है। भारत इस मिशन पर चरणबद्ध तरीके से काम करेगा।
मून स्पेस स्टेशन से पहले इसरो चंद्रयान-4 मिशन भी लांच करेगा। इसके लिए 2028 की समय सीमा तय की गई है। इसमें स्पेस यान को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरकर वहां से नमूने लेकर वापस लौटना है। इसके बाद भारत चांद पर पहला मानव मिशन भी लांच करने की योजना बना रहा है। पहला मानव चंद्र मिशन और चंद्र स्पेस स्टेशन लगभग एक ही समय लांच किया जाएगा। मानव मंगल मिशन का बेस हो सकता है ये स्पेस स्टेशन। इसरो की उपलब्धियां हर भारतीय के लिए गर्व का विषय हैं और भविष्य में भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान में और भी महत्वपूर्ण योगदान की उम्मीद है।