सुनील डंग पूर्व सदस्य, भारतीय प्रेस परिषद
आ ज तक अनेक फिल्मकारों और अभिनेताओं को दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। इन कलाकारों में से एक हैं धर्मेंद्र! वह एक ऐसे अद्भुत कलाकार हैं जो हर प्रकार के रोल में खुद को बखूबी फिट करने की क्षमता रखते हैं। गंभीर किरदार से लेकर शोले के वीरू तक; हर प्रकार के अभिनय को उन्होंने बड़ी ही खूबसूरती से निभाया है। निश्चित रूप से धर्मेंद्र एक महान भारतीय फिल्म अभिनेता और निर्माता हैं। उन्हें भारतीय सिनेमा के ‘ही-मैन’ के रूप में भी जाना जाता है जिनका करियर 60 साल से अधिक और 300 से ज्यादा फिल्मों तक फैला हुआ है।
धर्मेंद्र भारतीय सिनेमा में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं जो अपने दमदार आकर्षण, प्रभावशाली अभिनय कौशल और स्थायी अपील के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने आज तक हिंदी सिनेमा में किसी भी अन्य हीरो से अधिक हिट फिल्में दी हैं!! इनमें अब तक की कुछ सबसे प्रतिष्ठित हिंदी फिल्में भी शामिल हैं जैसे- शोले (1975), मेरा गाँव मेरा देश (1971), सीता और गीता (1972)यादों की बारात (1973), जुगनू (1973), फूल और पत्थर (1966), आँखें (1968), जीवन मृत्यु (1970), आई मिलन की बेला (1964) और काजल (1965) आदि। कुछ मीडिया रिपोर्ट की मानें तो अकेले हेमा मालिनी के साथ ही धर्मेंद्र ने करीब 35 से अधिक फिल्मों में काम किया है जिसमें से 20 से ज्यादा फिल्में हिट साबित हुईं। हेमा मालिनी और धर्मेंद्र 60 से 80 के दशक के ‘हिट मशीन’ कहे जाते थे। दोनों ने साथ में शराफत, तू हसीं मैं जवान, सीता और गीता, राजा जानी, जुगनू, दोस्त, पत्थर और पायल, प्रतिज्ञा, शोले, चरस, ड्रीम गर्ल और चाचा भतीजा जैसी कई ऐसी फिल्मों में काम किया जो सुपरहिट साबित हुई थीं। धर्मेंद्र ने अपने करियर में तकरीबन हर एक्ट्रेस के साथ काम किया है।
कुछ मीडिया रिपोर्ट की मानें तो धर्मेंद्र किसी अन्य से अधिक दादा साहब फाल्के पुरस्कार के हकदार माने जा सकते हैं। भारतीय सिनेमा के दिग्गज अभिनेता धर्मेंद्र अपने करिश्माई अभिनय के लिए भी जाने जाते हैं। उन्होंने कई सफल फिल्मों में काम किया है जिनमें चुपके-चुपके और प्रतिज्ञा जैसी फिल्मों को भुलाया नहीं जा सकता। बॉलीवुड में उनके महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद उन्हें कई प्रमुख फिल्म पुरस्कार नहीं मिल सके जिसके लिए कई कारकों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। उनमें से कुछ इसप्रकार हैं जिन पर गौर किया जा सकता है।
प्रतिस्पर्धा : भारतीय फिल्म उद्योग में हमेशा से ही प्रतिस्पर्धा रही है, जिसमें कई प्रतिभाशाली अभिनेता पुरस्कारों के लिए होड़ में होते हैं और धर्मेंद्र के दौर में अमिताभ बच्चन और राजेश खन्ना जैसे अन्य प्रमुखअभिनेता भी इस दौड़ में शामिल थे।
शैली पूर्वाग्रह : धर्मेन्द्र ने प्रायः व्यावसायिक फिल्मों में अभिनय किया, जिनमें एक्शन और रोमांस भी शामिल थे और पुरस्कार समितियों द्वारा अधिकतर ऐसी फ़िल्मों को पसंद किया जाता है जिनमें अधिक गंभीर या कलात्मक अभिनय हो।
पुरस्कार रुझान : पुरस्कार समितियों की प्राथमिकताएँ समय के साथ बदलती रहती हैं। धर्मेंद्र के करियर के चरम पर, उनका ध्यान उन फिल्मों की ओर अधिक रहा होगा जो या तो समीक्षकों द्वारा प्रशंसित थीं या जिनमें मजबूत सामाजिक संदेश थे।
टाइपकास्टिंग : धर्मेन्द्र को अक्सर ऐसी भूमिकाओं में टाइपकास्ट किया जाता था जो उनकी मर्दाना छवि पर जोर देती थीं जिसे शायद उस तरह से बहुमुखी अभिनय के रूप में मान्यता नहीं मिली जिस तरह से अधिक नाटकीय भूमिकाओं को मान्यता दी जाती रही है।
पुरस्कारों से परे मान्यता : हालांकि धर्मेंद्र ने बहुत अधिक पुरस्कार नहीं जीते हैं, लेकिन उन्हें दर्शकों से अपार प्यार और सम्मान मिला है, जो फिल्म उद्योग में सफलता का एक महत्वपूर्ण पैमाना भी है।
अभी हाल ही में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के दिग्गज एक्टर मिथुन चक्रवर्ती को दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित करने का एलान किया गया है। इस एलान के बाद उनके घरवालों और फैंस के बीच खुशी की लहर दौड़ गई है लेकिन अब गुजरे जमाने की फेमस एक्ट्रेस ‘ड्रीम गर्ल’ हेमा मालिनी का एक चौंकाने वाला बयान सामने आया है जिसमें उनका दर्द छलकता नज़र आ रहा है।
धर्मेंद्र को मिलना चाहिए दादा साहब फाल्के अवॉर्ड…’
धर्मेंद्र की पत्नी और सांसद हेमा मालिनी ने कहा कि उनके पति और भाजपा के पूर्व संसद एवम प्रसिद्ध फिल्म स्टार धर्मेंद्र भी दादा साहब फाल्के पुरस्कार के हकदार हैं। हर साल यह पुरस्कार किसी कलाकार को दिया जाता है। मुझे लगता है कि धरम जी को भी यह पुरस्कार मिलना चाहिए। दरअसल, धरम जी को यह पुरस्कार 10-15 साल पहले ही मिल जाना चाहिए था। इस बार बॉलीवुड अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती को यह पुरस्कार मिला है। वह एक बहुत अच्छे अभिनेता और इंसान भी हैं।
मिथुन के लिए धर्मेंद्र के उद्गार
धर्मेंद्र ने (यमला पगला दीवाना के अभिनेता) मिथुन चक्रवर्ती को दादा साहब फाल्के पुरस्कार मिलने पर उनके लिए एक नोट लिखा।, “मेरे प्यारे छोटे भाई मिथुन, दादा साहब फाल्के के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए बधाई। सभी प्रियजनों और दोस्तों को मेरा प्यार। मेरे विनम्र बेटे, मैं भारत से बाहर हूँ। मैं तुम्हें गले लगाने के लिए व्यक्तिगत रूप से आऊँगा।
दादा साहब फाल्के पुरस्कार
धुंडिराज गोविंद फाल्के जिन्हें दादा साहब फाल्के (30 अप्रैल 1870 – 16 फ़रवरी 1944) के नाम से भी जाना जाता है, एक भारतीय निर्माता-निर्देशक-पटकथा लेखक थे। इन्हें भारतीय सिनेमा का जनक भी कहा जाता है। उनकी पहली फ़िल्म, राजा हरिश्चंद्र , 1913 में रिलीज़ हुई थी जो पहली भारतीय फ़िल्म थी और इसे अब भारत की पहली पूर्ण लंबाई वाली पौराणिक फ़ीचर फ़िल्म के रूप में जाना जाता है।
उन्होंने 1937 तक 19 साल के अपने करियर में 94 फ़ीचर-लेंथ फ़िल्में और 27 लघु फ़िल्में बनाईं जिनमें उनकी सबसे प्रसिद्ध फ़िल्में: मोहिनी भस्मासुर (1913), सत्यवान सावित्री (1914), लंका दहन (1917), श्री कृष्ण जन्म (1918) और कालिया मर्दन (1919) शामिल हैं। उनके सम्मान में भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कारों के तहत सर्वोच्च मानद पुरस्कार के रूप में दादा साहब फाल्के पुरस्कार की स्थापना की गई ।