ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि याचिका दायर करने में देरी एक अहम फैक्टर जरूर है, लेकिन सिर्फ इसके आधार पर किसी शख्स को संपत्ति के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेबी पारदीवाला की अगुवाई वाली बेंच ने भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में कथित अनियमितता से जुड़ी याचिका को 21 साल की देरी के बाद भी स्वीकार कर लिया।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि शीर्ष अदालत ने लगातार यह माना है कि संपत्ति का अधिकार संविधान में निहित है। निष्पक्षता और मनमानी से बचने के लिए प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का पालन किया जाना चाहिए, विशेष रूप से राज्य की ओर से अधिग्रहण के मामलों में।
शीर्ष अदालत में याचिका दाखिल करने में देरी को अहम माना है, लेकिन कहा कि संपत्ति के अधिकार की रक्षा के लिए इस देरी को हम माफ करते हैं। आर्टिकल 300ए में निहित संपत्ति के अधिकार की रक्षा करने की आवश्यकता पर देरी को प्राथमिकता नहीं दी जा सकती। कानूनी कार्यवाही में संतुलन बनाना जरूरी है। व्यक्तिगत संपत्ति की रक्षा और उसे मान्य करने का अधिकार केवल देरी और निष्क्रियता के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता। शहरी सुधार ट्रस्ट की ओर से दायर चार अपीलों को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। इन अपीलों में राजस्थान हाई कोर्ट के उस निर्णय को चुनौती दी गई थी, जिसने राजस्थान शहरी सुधार अधिनियम, 1959 (आरयूआई अधिनियम) के तहत भूमि मालिकों की जमीन के अधिग्रहण को रद कर दिया था।
राजस्थान के दो मामलों से जुड़ा है केस
यह मामला दो अलग-अलग भूमि अधिग्रहण से संबंधित है। जमीन राजस्थान के अलवर के नांगली कोटा भूमि और मूंगस्का में स्थित हैं। इन जमीनों का अधिग्रहण किया गया था। दोनों अधिग्रहण प्रक्रियाओं को भूमि मालिकों ने 1998 में राजस्थान हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट के सामने मसला था कि क्या भूमि अधिग्रहण के खिलाफ मालिकों की ओर से रिट याचिका दाखिल करने में देरी घातक थी? क्या आरयूआई अधिनियम की धारा 52(1) के तहत जारी अधिसूचनाएं प्रक्रियागत त्रुटियों के बावजूद वैध थीं? क्या नांगली कोटा भूमि के मुआवजे का निर्धारण कानूनी रूप से किया गया था? क्या आरयूआई अधिनियम की धारा 60ए का पालन अधिग्रहण की वैधता के लिए अनिवार्य था?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 52(2) के तहत नोटिस को न तो भूमि मालिकों को व्यक्तिगत रूप से दिया गया और न ही संपत्ति के पास किसी दिखने वाले स्थान पर चिपकाया गया। धारा 52(7) का उल्लंघन करते हुए मुआवजा जमा करने से पहले ही राज्य सरकार ने भूमि का कब्जा ले लिया और इसे अपीलकर्ता ट्रस्ट को ट्रांसफर कर दिया। नांगली कोटा भूमि के लिए मुआवजा धारा 60ए(3) और (4) से निर्धारित समयसीमा के भीतर भुगतान नहीं किया गया। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि धारा 60ए(3) और 60ए(4) के तहत मुआवजा निर्धारित करने और भुगतान करने के लिए निर्धारित समयसीमा का सख्ती से पालन अनिवार्य है। इन प्रावधानों का अनुपालन न करना आरयूआई अधिनियम के तहत अधिग्रहण को अमान्य कर देता है।