ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने चुनावों से पहले रेवड़ियां (मुफ्त चीजें) देने के राजनीतिक दलों के वादे पर कहा कि राष्ट्रीय विकास के लिए लोगों को मुख्यधारा में लाने के बजाय क्या हम परजीवियों का एक वर्ग नहीं बना रहे।
जस्टिस बीआर गवई और आगस्टीन जार्ज मसीह की पीठ ने यह भी कहा कि लोग काम करने को तैयार नहीं हैं, क्योंकि उन्हें मुफ्त राशन और पैसा मिल रहा है। जस्टिस गवई ने पूछा कि राष्ट्र के विकास में योगदान देकर उन्हें समाज की मुख्यधारा का हिस्सा बनाने के बजाय क्या हम परजीवियों का एक वर्ग नहीं बना रहे हैं?
दुर्भाग्यवश चुनाव से ठीक पहले घोषित की जाने वाली इन रेवडि़यों, जैसे लाडकी बहिन और अन्य योजनाओं के कारण लोग काम करने के लिए तैयार नहीं हैं।
न्यायालय शहरी क्षेत्रों में बेघर व्यक्तियों के आश्रय के अधिकार से संबंधित मामले की सुनवाई कर रहा था। अदालत ने कहा कि लोगों को बिना काम किए मुफ्त राशन और पैसा मिल रहा है। हम उनके प्रति आपकी चिंता की सराहना करते हैं, लेकिन क्या यह बेहतर नहीं होगा कि उन्हें समाज की मुख्यधारा का हिस्सा बनाया जाए और राष्ट्र के विकास में योगदान करने का मौका दिया जाए?
याचिकाकर्ता के वकील ने क्या कहा
याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि देश में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो काम न करना चाहे, यदि उसके पास काम हो। इस पर जस्टिस गवई ने कहा कि आपको केवल एकतरफा जानकारी है। मैं एक कृषक परिवार से आता हूं। महाराष्ट्र में चुनाव से पहले घोषित मुफ्त सुविधाओं के कारण किसानों को मजदूर नहीं मिल रहे हैं।
इस मुद्दे पर बहस नहीं
हालांकि, अदालत ने कहा कि वह इस मुद्दे पर बहस नहीं करना चाहती। न्यायालय ने कहा कि अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी समेत सभी लोग इस बात पर एकमत हैं कि बेघर लोगों को आश्रय प्रदान करने पर उचित ध्यान दिया जाना चाहिए लेकिन, साथ ही क्या इसे संतुलित नहीं किया जाना चाहिए?
बेघरों के मुद्दे पर नहीं दिया जा रहा ध्यान
वेंकटरमणी ने पीठ को बताया कि केंद्र सरकार शहरी गरीबी उन्मूलन मिशन को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में है। इसके तहत शहरी क्षेत्रों में बेघरों के लिए आश्रय की व्यवस्था समेत विभिन्न मुद्दों का समाधान किया जाएगा।
सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि बेघरों के मुद्दे पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है, क्योंकि यह प्राथमिकता में सबसे नीचे है।
याचिकाकर्ता ने जब यह दावा किया कि अधिकारियों ने केवल अमीरों के लिए दया दिखाई है, गरीबों के लिए नहीं, तो अदालत नाराज हो गई। जस्टिस गवई ने कहा कि इस अदालत में रामलीला मैदान वाला भाषण न दें और अनावश्यक आरोप न लगाएं। यहां राजनीतिक भाषण न दें।
कोर्टों को सियासी लड़ाई का स्थान नहीं बनने देंगे
हम अपने न्यायालयों को राजनीतिक लड़ाई का स्थान नहीं बनने देंगे। आप कैसे कह सकते हैं कि दया केवल अमीरों के लिए दिखाई जाती है? यहां तक कि सरकार के लिए भी, आप ऐसा कैसे कह सकते हैं? यह कहना अच्छी बात नहीं है कि सरकार ने गरीबों के लिए कुछ नहीं किया या उनके प्रति चिंता नहीं दिखाई।
एक याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि पीठ के समक्ष रखे गए विवरण के अनुसार, चार दिसंबर 2024 तक राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा कुल 2,557 आश्रय गृह स्वीकृत किए गए थे। 1.16 लाख बिस्तरों की क्षमता के साथ 1,995 आश्रय गृह चालू हैं। एक सर्वेक्षण से पता चला है कि अकेले दिल्ली में लगभग तीन लाख शहरी बेघर हैं।