ब्लिट्ज ब्यूरो
लखनऊ। प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार महिलाओं को काम देने के लिए कारखानों के उन ‘बंद दरवाजों’ को खोलने जा रही है जिन्हें असुरक्षित बताकर दशकों पहले बंद कर दिया गया था। सरकार यूपी कारखाना नियमावली 1950 में बदलाव कर 13 प्रतिबंधित या सीमित क्षेत्रों में भी महिलाओं के काम-काज का रास्ता बनाएगी। इसका ड्राफ्ट तैयार किया जा रहा है।
बार्कलेज़ की रिपोर्ट के मुताबिक 2030 को भारत की जीडीपी को दोगुना करने के लिए महिला वर्कफोर्स की हिस्सेदारी कम से कम डेढ़ गुना बढ़ानी होगी। यूपी कारखाना नियमावली के नियम 109 में उन कामों की सूची दी गई है जिन्हें खतरनाक श्रेणी का माना जाता है। इसमें महिलाओं को काम करने की या तो मनाही है या बहुत ही सीमित क्षेत्रों में ही उनको नियोजित किया जा सकता है। नजीर के तौर पर ब्रास सेक्टर को ही ले लें। मुरादाबाद को ‘पीतल नगरी’ कहा जाता है। यहां सालाना 6 हजार करोड़ से अधिक का निर्यात होता है, 1 लाख से अधिक लोग यहां इससे सीधे रोजगार से जुड़े हैं लेकिन इसमें महिलाओं की भागीदारी 10 फीसद से भी कम है। ज्यादातर उन्हें ‘स्क्रैप’ वर्क में ही लगाया जाता है क्योंकि ब्रॉस से जुड़े बहुत से काम प्रतिबंधित श्रेणी में हैं। इसी तरह अन्य क्षेत्रों में भी महिलाओं की भूमिका सीमित है।
शासन के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि समावेशी विकास के लिए महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना जरूरी है। कारखानों में भी काम-काज की स्थितियां बदली हैं। आधुनिक मशीनों व तकनीक के इस्तेमाल ने बहुत से काम सहज करते दिए हैं और संभावित खतरों को भी न्यूनतम कर दिया है। इसलिए, यह जरूरी है कि इन क्षेत्रों को महिलाओं के लिए खोला जाए। इससे पहले रात में महिलाओं को काम करने के लिए शासन से अनुमति की औपचारिकता को भी खत्म किया जा चुका है। उसके लिए बस महिला कर्मचारी की सहमति जरूर होगी।
इसी कड़ी में 13 अनुसूचियों में उल्लेखित कार्यक्षेत्रों में भी महिलाओं को काम की अनुमति देने के लिए नियम बनाए जा रहे हैं। मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह की अध्यक्षता में पिछले सप्ताह इसको लेकर बैठक हुई। इसमें महिला श्रमिकों को नियोजित करने की अनुमति, उनके सुरक्षा मानकों, कार्यस्थल पर सुविधाओं और समय-सारणी से जुड़े प्रावधानों पर विस्तृत विचार-विमर्श किया गया।