आस्था भट्टाचार्य
नई दिल्ली।भारत के कई पड़ोसी देश टेंशन देने वाले हैं। लिहाजा भारत लगातार अपनी सामरिक ताकत बढ़ा रहा है। इसी बीच रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) और भारतीय सेना ने सतह से हवा में मार करने वाली मध्यम दूरी की मिसाइल (एमआरएसएएम) का सफल परीक्षण किया है। मिसाइल के इस थल सेना के एडिशन के चार उड़ान परीक्षण किए गए हैं। चारों परीक्षण बेहद सटीक रहे और अपने लक्ष्य को ध्वस्त करने में कामयाब रहे।
यह परीक्षण पिछले सप्ताह ओडिशा तट के पास बंगाल की खाड़ी में स्थित डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम आइलैंड पर किए गए। आर्मी संस्करण की मिसाइल का फ्लाइट टेस्ट हाई स्पीड वाले हवाई टारगेट के खिलाफ किया गया। इस दौरान बड़ी सटीकता से मिसाइलों ने हवा में लक्ष्यों को निशाना बनाया और उन्हें नष्ट कर दिया। बिना किसी चूक के मिसाइलें सीधे निशाने पर लगीं।
साबित की एफिसिएंसी
इन परीक्षणों में चार लक्ष्यों को लंबी दूरी, छोटी दूरी, उच्च ऊंचाई और निम्न ऊंचाई पर सेट रखा गया। सभी पर मिसाइल ने सटीक निशाना लगाया। इस परीक्षण ने हथियार प्रणाली की ऑपरेशनल एफिसिएंसी को साबित किया है। ये फ्लाइट टेस्ट परिचालन स्थिति में हथियार प्रणाली के साथ किए गए थे। परीक्षणों के दौरान मिले उड़ान डेटा को रेंज उपकरणों जैसे कि रडार और इन्फ्रारेड ट्रैकिंग सिस्टम के जरिए सत्यापित किया गया, जो इंटीग्रेटेड टेस्ट रेंज, चांदीपुर की ओर से तैनात किए गए थे।
ये उड़ान परीक्षण डीआरडीओ के मार्गदर्शन में भारतीय सेना के पूर्वी और दक्षिणी कमांड से किए गए। इन परीक्षणों ने दोनों सेना कमांड्स की परिचालन क्षमता को प्रमाणित किया और दो रेजिमेंट्स में इन हथियार प्रणालियों के परिचालन की दिशा में रास्ता साफ किया।
भारतीय सेना के लिए बनाई गई है मिसाइल
मध्यम-दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली इस मिसाइल को संयुक्त रूप से डीआरडीओ और इजरायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज की ओर से भारतीय सेना के लिए बनाई गई है। मध्यम-दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली इस पूरी मिसाइल सिस्टम में मल्टी-फंक्शन रडार, कमांड पोस्ट, मोबाइल लॉन्चर प्रणाली और अन्य वाहन शामिल हैं।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस मिसाइल प्रणाली के सफल परीक्षण के लिए डीआरडीओ, भारतीय सेना और रक्षा उद्योगों को बधाई दी है।
वहीं, रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग के सचिव और डीआरडीओ के अध्यक्ष समीर वी. कामत ने भी सफल उड़ान परीक्षण में शामिल टीमों को बधाई दी। उन्होंने इसे भारतीय सेना की परिचालन क्षमता को विकसित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर बताया।