ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट के तत्कालीन जज जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास से बोरियों में पाई गई अधजली नोटों की गड्डियों की जांच के लिए गठित समिति ने 55 गवाहों के बयान के आधार जज वर्मा के खिलाफ ठोस सबूत जुटाए और उन्हें हटाने की सिफारिश की है। 64 पन्नों की रिपोर्ट में समिति ने जस्टिस वर्मा की बेगुनाही की दलीलों को सिरे से खारिज कर दिया। समिति ने कहा कि अग्निकांड के अगले दिन तड़के कोठी से अधजले नोटों की सफाई कर दी गई। इससे पता चलता है कि काफी अधिक तादाद में भारतीय करेंसी जज की कोठी के स्टोर रूम में थी।
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के तीन न्यायाधीशों की समिति गठित की थी। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस जीएस संधावालिया और कर्नाटक हाई कोर्ट की जज जस्टिस अनु शिवरमन ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि जस्टिस वर्मा के घरेलू स्टाफ ने अपने मालिक के पक्ष में बयान दिए, लेकिन अग्निशमन और दिल्ली पुलिस के स्वतंत्र गवाहों के बयान से साफ है कि जज के सरकारी आवास पर 4-5 बोरियों में नोटों की गड्डियां थीं। परस्पर विरोधी बयानों का विश्लेषण करने के बाद समिति ने घरेलू कर्मचारियों का झूठ पकड़ लिया। समिति ने जस्टिस वर्मा के भी बयान दर्ज किए और पाया कि उनकी दलीलें सच्चाई से परे हैं।
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति ने 10 दिनों तक मामले की पड़ताल की।
जांच समिति ने कहा कि जज के निजी सचिव ने आग लगने की घटना की जानकारी फायर बिग्रेड को दी और उसके बाद वह रात भर जज की कोठी पर रहे और सुबह उन्हीं की निगरानी में सफाई अभियान चलाया गया। रात में लगभग एक बजे उनकी जस्टिस वर्मा से लम्बी बात हुई। जांच में यह भी पता लगा कि जज के निवास पर नियुक्त घरेलू स्टाफ काफी लम्बे समय से उनके साथ है। कुछ सेवक उनके साथ उनके वकालत के दौर से हैं। उन्होंने जज के खिलाफ एक शब्द तक नहीं बोला लेकिन पुलिस और फायर बिग्रेड के कर्मचारियों के बयान से सच सामने आ गया।
जांच समिति ने यह भी पाया कि जिस स्टोर में आग लगी थी, उसमें शराब रखने के लिए बना कैबिनेट भी था। चूंकि अल्कोहल में बहुत तेजी से आग फैलती है, लिहाजा पूरे स्टोर में आग फैली। तीनों न्यायाधीशों ने जस्टिस वर्मा की इस दलील को सिरे से खारिज कर दिया कि स्टोर रूम खुला रहता था और उसमें कोई भी आ जा सकता था।
जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि स्टोर रूम पर जज और उनके परिजन का पूर्ण कब्जा था। यह उनकी निगरानी में रहता था। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जस्टिस वर्मा और उनके परिवार के सदस्यों का उस स्टोर रूम पर गुप्त या सक्रिय नियंत्रण था, जहां से बड़ी मात्रा में अधजली नकदी मिली थी।































