ब्लिट्ज ब्यूरो
चंडीगढ़। पंजाब सरकार ने राज्य के सरकारी मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में दाखिला लेने वाले एमबीबीएस और बीडीएस छात्रों के लिए नई बॉन्ड पॉलिसी लागू करने का एलान किया है। ये पॉलिसी शैक्षणिक सत्र 2025-26 से लागू होगी।
नई व्यवस्था के तहत एमबीबीएस या बीडीएस की डिग्री पूरी करने के बाद छात्रों को कम से कम दो साल तक सरकारी अस्पतालों में सेवा देनी होगी, वरना उन्हें 20 लाख का बॉन्ड भरना होगा। हालांकि, ऑल इंडिया कोटा के तहत दाखिला लेने वाले छात्रों को सिर्फ एक साल की सेवा देनी होगी। पंजाब के मेडिकल शिक्षा विभाग के आदेश में कहा गया है, 20 लाख रुपये का सेवा बॉन्ड राज्य और ऑल इंडिया कोटे दोनों पर लागू होगा। राज्य कोटे के छात्रों के लिए सेवा अवधि दो साल और ऑल इंडिया कोटे के लिए एक साल होगी। जरूरत पड़ने पर सेवा अवधि को बढ़ाया भी जा सकता है।
पंजाब सरकार का क्या कहना है?
सरकार का कहना है कि यह कदम ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में डॉक्टरों की भारी कमी को दूर करने के लिए उठाया गया है। मौजूदा समय में 3847 स्वीकृत जीएमओ पदों में से 1,962 पद खाली हैं। हालांकि, राज्य की मेडिकल व्यवस्था पर भी सवाल उठ रहे हैं क्योंकि पंजाब में महज चार सरकारी मेडिकल कॉलेज हैं जो करीब 40% एमबीबीएस सीटें उपलब्ध कराते हैं, जबकि 60% सीटें निजी कॉलेजों में हैं। सरकार पहले ही अपने कार्यकाल में 16 नए मेडिकल कॉलेज खोलने का वादा कर चुकी है, लेकिन अब तक एक भी कॉलेज शुरू नहीं हो पाया।
राज्य के स्वास्थ्य और मेडिकल शिक्षा मंत्री डॉ. बलबीर सिंह ने इस पॉलिसी का बचाव करते हुए कहा, हमारे डॉक्टर सिर्फ कुछ महीनों के लिए सरकारी नौकरी करते हैं और फिर छोड़ देते हैं। यह नीति सुनिश्चित करेगी कि वे कम से कम दो साल सेवा करें। वे टैक्सपेयर्स के पैसे से पढ़ रहे हैं, उन्हें समाज को कुछ लौटाना चाहिए।
छात्रों-डॉक्टरों का विरोध तेज
इस पॉलिसी का विरोध भी जोर पकड़ता जा रहा है। मेडिकल स्टूडेंट्स एसोसिएशन (एमएसए) ने इसे बंधुआ मजदूरी बताया है और कहा कि इससे मेरिटोरियस छात्र पंजाब के सरकारी मेडिकल कॉलेजों से दूर हो जाएंगे। पटियाला के रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (आरडीए) के डॉ. मेहताब बल ने कहा, सरकार डॉक्टरों को आकर्षित करने में नाकाम रही है और अब योग्य छात्रों को सजा दे रही है। यह एक तरह की जबरन वसूली है। पंजाब सिविल मेडिकल सर्विसेज एसोसिएशन की प्रवक्ता डॉ. निधि शर्मा अहलूवालिया ने कहा, एमबीबीएस के बाद पहले ही एक साल की इंटर्नशिप होती है। दो और साल की सेवा जबरदस्ती है। सरकार को डॉक्टरों के लिए माहौल सुधारना चाहिए, न कि छात्रों पर दबाव डालना चाहिए।































