ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। हाल की कई रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि देश में महिलाओं में स्वरोजगार बढ़ा है। एक आंकड़े के अनुसार वित्त वर्ष 2023-24 में भारत में महिलाओं की श्रम शक्ति भागीदारी 37 प्रतिशत हो गई। यह बढ़त मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक दिखी है। ग्रामीण क्षेत्रों में इसका प्रमुख कारण महिलाओं के आत्मनिर्भर होने और किसी न किसी स्वयं सहायता समूह से जुड़ा होना समझा जाता है। इन स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को पिछले दस वर्षों में दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत सशक्त किया गया है।
अमरोहा का उदाहरण
उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले का गजरौला ब्लाक इन तथ्यों की पुष्टि कर रहा है। यहां पिछले दो वर्ष से ‘दीदी की दुकान’ पहल के अंतर्गत चयनित एसएचजी की महिलाओं को व्यवसाय एवं उद्यमशीलता में प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जिससे कई ‘उद्यमी दीदी’ अपनी दुकान चला रही हैं। बी-एबल फाउंडेशन की एक परियोजना के तहत इस प्रोजेक्ट की शुरुआत हुई थी, जिसमें उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के संगठित एसएचजी से इन महिलाओं को चुना गया। अन्य महिलाएं भी इस पहल का हिस्सा हैं, जो किसी एसएचजी से नहीं जुड़ी हुई हैं।
‘दीदी की दुकानों’ की खास बात यह है कि परचून और रोजमर्रा के राशन के सामान के साथ-साथ इनमें महिलाओं की जरूरतों से संबंधित वस्तुएं भी मिलती हैं। इन दुकानों में सैनेटरी नैपकिन भी उपलब्ध हैं, जिन्हें लड़कियां, महिलाएं बिना हिचक खरीदती हैं। इन दुकानों पर रंग बिरंगी चूड़ियां, राखियां, सिलाई-कढ़ाई आदि के सामान भी खूब मिलते हैं। एक दीदी की दुकान में फ्रिज होने से कोल्ड ड्रिंक्स, शरबत और डेरी का सामान है। कई दुकानों में गिफ्ट आइटम भी बिकते हैं। इन दुकानों को कुछ निजी कंपनियों ने अलमारी, रैक और काउंटर टेबल अपने कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व-सीएसआर के तहत उपलब्ध कराए हैं।
20 से 25 हजार रुपये तक आय
कई ‘उद्यमी दीदी’ महीने में 20 से 25 हजार रुपये कमा लेती हैं। दीदियों को इसके लिए प्रोत्साहित किया गया है कि वे हर प्रकार का सामान अपनी दुकानों पर रखें, ताकि गांव वालों को न तो साप्ताहिक हाट-बाजारों पर निर्भर रहना पड़े और न ही शहर पर।





























