ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस सूर्यकांत ने कहा है कि भारत अब केवल स्थापित मध्यस्थता केंद्रों की बराबरी करने का प्रयास नहीं कर रहा है, बल्कि सक्रिय रूप से इस बात की ”पुनर्कल्पना” कर रहा है कि एक गतिशील और बहुध्रुवीय कानूनी व्यवस्था में मध्यस्थता कैसी हो सकती है और होनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि मध्यस्थता का भविष्य न केवल अंतरराष्ट्रीय है, बल्कि भारतीय भी है। मध्यस्थता को अब एक गौण या वैकल्पिक तंत्र के रूप में नहीं देखा जाता, बल्कि यह विवादों के समाधान का एक पसंदीदा तरीका बनता जा रहा है। वह स्वीडन के गोथेनबर्ग में आयोजित ‘अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता की पुनर्कल्पना: एक वैश्विक मध्यस्थता स्थल के रूप में भारत का उदय’ विषय पर एक गोलमेज वार्ता में बोल रहे थे।
इन चुनौतियों का भी किया जिक्र
उन्होंने मध्यस्थता के निर्णयों को लागू करने की प्रक्रिया में आने वाली अड़चनों जैसी गंभीर चुनौतियों का भी जिक्र किया, जिनका देश को समाधान करना होगा। उन्होंने संस्थागत विकास को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक-निजी क्षेत्र की भागीदारी की भी वकालत की। लक्षित सुधारों, न्यायिक पुनर्संतुलन, संस्थागत विकास और मध्यस्थता के प्रति गहरी होती सांस्कृतिक प्रतिबद्धता के माध्यम से भारत एक ऐसा माडल गढ़ रहा है जो न केवल वैश्विक मानकों के अनुरूप है, बल्कि अपने विशिष्ट कानूनी और आर्थिक संदर्भ को भी प्रतिबिंबित करता है।































