ब्लिट्ज ब्यूरो
यह सत्र विजयोत्सव तभी बन पाएगा जब सत्ता और विपक्ष; दोनों अपनी-अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए सदन में सार्थक और सकारात्मक बहस का माहौल बनाने में कामयाब होंगे। विपक्ष को भी अपनी सिर्फ ‘विरोध के लिए विरोध’ की राजनीति को तिलांजलि देनी होगी ताकि जन-धन की बर्बादी बचे तथा संसद में परिणामपरक बहस हो, न कि हंगामा।
इस साल का मानसून सत्र 21 जुलाई से प्रारंभ हो गया है। यह सत्र 21 अगस्त तक चलने वाला है, लेकिन 12 से 18 अगस्त तक स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में कार्यवाही स्थगित रहेगी। सरकार और विपक्ष, दोनों ही इस सत्र के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। जहां एक तरफ इस सत्र के लिए सरकार कई अहम बिल पेश कर सकती है, तो वहीं विपक्ष तमाम मुद्दों पर सरकार को घेरने की तैयारी में है जैसा कि गत दो दिनों की संसद की कार्यवाही से स्पष्ट दिख रहा है। संसद में हंगामा और बहिष्कार जैसी चीजें देखने को मिल रही हैं जिनसे सिर्फ समय और जन-धन की बर्बादी ही होती नजर आ रही है। ऐसे में यह भी सवाल खड़ा होता है कि आखिर सरकार एक घंटे की कार्यवाही के लिए कितने रूपये खर्च करती है क्योंकि इसको चलाने में जो धन व्यय किया जाता है वह जनता का ही होता है जिसे करों के रूप में वसूला जाता है। खबरों की मानें तो संसद की प्रत्येक कार्यवाही पर करीब हर मिनट में ढाई लाख के खर्चे का अनुमान है। वहीं अगर घंटे के हिसाब से देखा जाए तो एक घंटे में करीब डेढ़ करोड़ रुपये का खर्चा आ जाता है। सामान्य तौर पर संसद सत्र 7 घंटे चलता है, ऐसे में लंच ब्रेक में एक घंटा हटा दें तो बचे 6 घंटे। इन छह घंटों में बहस और मुद्दों पर चर्चा तो होती ही है, साथ ही साथ विरोध और हल्ला भी होता है, जिसमें लाखों रुपये की बर्बादी होती है।
मॉनसून सत्र का पहला और दूसरा दिन दिन हंगामे की भेंट चढ़ गया। यह स्थिति तब हुई, जब सरकार कह चुकी थी कि वह चर्चा के लिए तैयार है। सत्र प्रारंभ होने के पहले सर्वदलीय बैठक में सरकार और विपक्ष के बीच जो सहमति बनती नजर आई थी, वह सत्र के पहले दिन के कुछ ही घंटों में नदारद हो गई। यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण ही कही जाएगी। इसमें कोई शक नहीं था कि इस सत्र में पहलगाम, ऑपरेशन सिंदूर, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दावों और बिहार में चल रही वोटर लिस्ट की समीक्षा को लेकर विपक्ष सरकार को घेरने का प्रयास करेगा। निश्चित रूप से ये सारे मुद्दे अहम हैं और सरकार भी इस बात को स्वीकार कर रही है। दोनों पक्ष सदन में सार्थक बहस के लिए तैयार दिख रहे थे पर पक्ष-विपक्ष में सहमति तब समाप्त हो गई जब विपक्ष ने यह मांग की कि सत्र के प्रारंभ में ही चर्चा हो जाए जबकि सरकार का कथन है कि पहले कार्य मंत्रणा समिति में उन विषयों को उठाया जाए जिन पर बात होनी है। जो मुद्दे तय होंगे, सरकार उन पर चर्चा को राजी है। इसलिए इन मुद्दों की गंभीरता के मद्देनजर राजनीतिक विरोध को दरकिनार कर देना चाहिए। सरकार और विपक्ष, दोनों को ही यह बात याद रखनी चाहिए कि वे जिन प्रश्नों को लेकर आमने-सामने हैं, उनकी वास्तविकता जानने का पहला हक पहले देश और उसकी जनता का है। यद्यपि सरकार ने पहले भी अनेक अवसरों पर अपना पक्ष रखा है पर पारदर्शी और विस्तार के साथ सारी बातें सामने आनी चाहिए। इससे पक्ष-विपक्ष; दोनों के प्रति जनता का विश्वास दृढ़ एवं लोकतंत्र और मजबूत होता है । संसद में मौजूद सरकार और विपक्ष के प्रतिनिधियों की जवाबदेही उस जनता के प्रति भी सर्वाधिक होती है जो इन्हें चुन कर संसद में भेजती है। इसलिए किसी भी सदन की कार्यवाही को हंगामे की भेंट नहीं चढ़ाया जाना चाहिए और यह सुनिश्चित करना दोनों पक्षों की जिम्मेदारी है कि सत्र के आने वाले दिन सकारात्मक और सार्थक रहें।
मानसून सत्र को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विजयोत्सव की तरह बताया है। इस संदर्भ में पीएम मोदी ने युद्ध के मैदान में पाकिस्तान के खिलाफ, नक्सलियों के विरुद्ध देश के भीतर चल रही लड़ाई और अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर मिली सफलताओं का जिक्र किया। पीएम मोदी का यह वक्तव्य यही दर्शाता है कि वर्तमान सत्र का एजेंडा क्या रहने वाला है। यह सत्र विजयोत्सव तभी बन पाएगा जब सत्ता और विपक्ष; दोनों अपनी-अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए सदन में सार्थक और सकारात्मक बहस का माहौल बनाने में कामयाब होंगे। विपक्ष को भी अपनी सिर्फ ‘विरोध के लिए विरोध’ की राजनीति को तिलांजलि देनी होगी ताकि जन-धन की बर्बादी बचे तथा संसद में परिणामपरक बहस हो, न कि हंगामा।































