ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली।भारत जैसे विकासशील देशों में बीमारियों का बोझ ज्यादा होने के कारण एंटीबायोटिक का अत्यधिक इस्तेमाल देखा गया है। एंटीबायोटिक के प्रति बढ़ती प्रतिरोधकता न केवल मौतों की संख्या बढ़ा सकती है, बल्कि इलाज की लागत को भी भारी रूप से बढ़ा सकती है। एक नए अध्ययन के अनुसार, इस वजह से हर साल इलाज पर होने वाला खर्च 66 अरब डॉलर से बढ़कर 2050 तक 159 अरब डॉलर हो सकता है।
एंटीबायोटिक रजिस्टेंस की समस्या तब पैदा होती है जब एंटीबायोटिक का गलत या जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल होता है। इसके चलते ‘सुपरबग्स’ यानी ऐसे बैक्टीरिया पैदा हो जाते हैं जिन पर आम दवाएं असर नहीं करतीं। इससे मरीजों को अस्पताल में ज्यादा दिन भर्ती रहना पड़ता है। इससे इलाज भी अधिक जटिल व महंगा हो जाता है। आम दवाओं से ठीक होने वाले मामलों की तुलना में ऐसे मामलों का इलाज लगभग दोगुना महंगा पड़ता है। थिंक टैंक ‘सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट’ के इस अध्ययन में बताया गया है कि इसका सबसे ज्यादा असर गरीब और मध्यम आय वाले देशों पर पड़ेगा। अध्ययन के प्रमुख एंथनी मैकडॉनेल के अनुसार, अगर एंटीबायोटिक प्रतिरोध की मौजूदा रफ्तार जारी रही, तो 2050 तक यह स्वास्थ्य सेवा पर सालाना 159 अरब डॉलर का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।