ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली।जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूं, तो सबसे पहले उन्हीं ‘खराब’ ग्रेडों का चेहरा नजर आता है और आज मैं उनका आभार मानता हूं क्योंकि जीवन ने मुझे सिखाया कि लचीलापन किताबों में नहीं, अपूर्णता की दरारों में पनपता है।
हमारे देश में हर साल सैकड़ों छात्र परीक्षा में असफल होने या किसी प्रतिष्ठित कॉलेज में दाखिला न मिल पाने के डर से आत्महत्या कर लेते हैं। ये आत्महत्याएं सिर्फ व्यक्तिगत नहीं, सामाजिक त्रासदियां हैं क्योंकि इनकी जड़ में वो गलत धारणा है कि ‘अच्छे नंबर ही अच्छी जिंदगी की गारंटी हैं।’ लेकिन मैं एक जिंदा मिसाल हूं कि ऐसा नहीं है।
मेरे स्कूल के दिन निराशाजनक थे , न पढ़ाई में तेज, न खेल में कुशल। दसवीं कक्षा के बोर्ड रिजल्ट ने तो जैसे मुहर ही लगा दी कि “ये लड़का कुछ नहीं कर सकता।” रिश्तेदारों की फुसफुसाहट, शिक्षकों की निराश निगाहें, सबने मुझे असफलता का प्रतीक बना दिया लेकिन अंदर कहीं एक शांत आग जल रही थी, ‘एक जिद, खुद को साबित करने की’। मैंने तय कर लिया था कि मेरी पहचान मेरे अंक नहीं तय करेंगे। मेरा सपना था एनडीए यानी नेशनल डिफेंस अकादमी। पहली कोशिश में नाकामी हाथ लगी, लेकिन मैंने हार नहीं मानी। दूसरी बार पास हुआ, इसलिए नहीं कि मैं अचानक होशियार हो गया था, बल्कि इसलिए कि मैंने खुद पर भरोसा करना सीख लिया था।
एनडीए में दाखिला तो मिल गया, पर सफर आसान नहीं था। पढ़ाई में लगातार संघर्ष रहा, लेकिन मैं कभी पीछे नहीं हटा। मैं रोज सुबह सबसे पहले उठता, हर अभ्यास में शामिल होता, हर कठिनाई को चुनौती समझकर अपनाता। यहीं मुझे एहसास हुआ, मेरी असली ताकत है मेरी दृढ़ता।
फिर एक दिन, फारेस्ट गंप जैसी जिंदगी की कहानी ने नया मोड़ लिया, एक प्रतिष्ठित स्पेशल फोर्स यूनिट में चयन हुआ। वहां मैंने पहली बार खुद को उत्कृष्टता की ऊंचाइयों पर पाया। जैसे कोई अदृश्य शक्ति मेरा मार्गदर्शन कर रही हो। वीरता पदक मिला, एक याद दिलाने वाला चिन्ह कि जब आप हार नहीं मानते, तो राह खुद-ब-खुद बन जाती है
यहीं एक और द्वंद्व शुरू हुआ, क्या हथियार उठाकर हमेशा समाधान मिलेगा? नगालैंड में ड्यूटी के दौरान मेरे भीतर एक असहज शांति पनपने लगी। मैं सोचने लगा, क्या मेरा रास्ता कुछ और है?
आखिरकार, मैंने सेना छोड़ दी और एक नई दिशा में कदम बढ़ाया ,संयुक्त राष्ट्र में एक सुरक्षा अधिकारी के रूप में। यहां भी चुनौतियां कम नहीं थीं, लेकिन एक बात साफ थी: अब बिना पढ़ाई और गहराई के, आगे बढ़ना मुश्किल था। इसलिए मैंने खुद को फिर से शिक्षित करना शुरू किया।
जब मैंने प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में आवेदन किया, तो दोस्तों ने मजाक उड़ाया , ‘तू ? आइवी लीग?’ लेकिन मैंने अपने निबंधों में सिर्फ उपलब्धियां नहीं, ‘संघर्ष की कहानियां’ लिखीं — मोमबत्ती की रौशनी में पढ़ाई की, टीमवर्क के जरिए खुद को साबित करने की और शायद इसी ने मुझे दाखिला दिला दिया।
इसके बाद 12 साल की सेना सेवा और 29 साल की संयुक्त राष्ट्र यात्रा, जो आज चीन में मेरे रेजिडेंट कोऑर्डिनेटर पद तक पहुंची है, ये सब किसी एक परीक्षा के नंबरों की वजह से नहीं, बल्कि बार-बार हारकर भी कोशिश करते रहने की वजह से संभव हुआ।
आज जब मैं युवाओं को देखता हूं जो एक परीक्षा के नतीजे को जीवन-मरण का प्रश्न बना लेते हैं, तो दिल टूटता है। इसलिए मैं कहना चाहता हूं:
आपका जीवन एक किताब है, कोई एक परीक्षा नहीं।
हर पन्ना एक नया अवसर है, और कोई ग्रेड आपकी क्षमता की परिभाषा नहीं हो सकता।
इसलिए यदि आपके नंबर कम आए हैं, या आप किसी कॉलेज में नहीं पहुंच पाए , तो समझिए, यह अंत नहीं है। यह कहानी की शुरुआत है और आपकी सबसे बड़ी जीतें शायद अगली कोशिश के बाद ही मिलेंगी।
लिखते रहिए, बढ़ते रहिए क्योंकि आपकी कहानी अब भी जारी है और उसे परिभाषित करेंगे आपके प्रयास, न कि आपके अंक।
जीवन में आगे बढ़ने की शक्ति दी चार चीजों ने
1. दृढ़ता: असफलता के बाद भी चलते रहना।
2. आत्मविश्वास: खुद की कीमत को समझना, दूसरों के आकलन से नहीं।
3. सचेतनता : तनाव में भी वर्तमान में रहना, अपनी सांसों को सुनना।
4. सकारात्मक आत्म-संवाद : “मैं अपनी गलतियों से कहीं ज्यादा हूं”— यह वाक्य मेरा संबल बना।