ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। माटी की गंध सात समुन्दर पार भी आ ही जाती है और इसकी सौंधी महक अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, इटली, जर्मनी, रूस समेत दुनिया के किसी देश में बैठे भारतीय को अपनी तरफ आकर्षित करती ही है। कुछ लोग होते हैं जो इस आकर्षण को समझ नहीं पाते और एक घटना समझ कर भूल जाते हैं, लेकिन दूसरी तरफ कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपनी मातृभूमि के किए कुछ न कुछ करने की धुन में ही लगे रहते और ऐसा कुछ अनोखा कर भी देते हैं जिसके लिए उनके अपने देश के लोग हमेशा के लिए उनके दीवाने हो जाते हैं। देश के लिए कुछ करने वालों की संख्या एक-दो में नहीं हजारों और लाखों में है और ये लाखों लोग किसी न किसी रूप में विदेश में कमाई अपनी संपत्ति का एक हिस्सा भारत में निवेश कर उसकी औद्योगिक क्षमता में वृद्धि कर राष्ट्र के विकास में सहयोग कर रहे हैं।
वर्ष 2009 से 2018 के बीच 10 वर्ष की अवधि में प्रवासी भारतीयों ने भारत में करीब 6 लाख 50 हजार मिलियन डालर से अधिक की धनराशि का भारत में निवेश किया। ऐसे प्रवासी भारतीयों में एक नाम स्वराज पॉल का भी बड़े गर्व के साथ लिया जाता है।
जब हम बात स्वराज पॉल की करते हैं तो यह जानकार आश्चर्य भी होता है कि स्वराज पॉल जहां तक पहुंचे, उसकी प्रेरणा उनको उनकी छोटी बेटी अम्बिका से मिली। अंबिका अब इस दुनिया में नहीं।
बच्ची की मौत से एकबारगी स्वराज पॉल बुरी तरह टूट गए थे, लेकिन फिर उन्होंने बेटी अम्बिका की याद को हमेशा के लिए ताजा रखने की दृष्टि से कुछ ऐसा करने की सोची ताकि उनकी बेटी अमर हो जाए और इस तरह बेटी अम्बिका के नाम से उन्होंने न केवल कारखाने खोले बल्कि स्कूल, कॉलेज और ऐसी ही अनेक संस्थाएं भी स्थापित कीं जो शिक्षा और सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण काम कर रही हैं। दान के लिए उनका दिल दरिया के समान था। हर क्षेत्र में खुलकर दान दिया और अन्य के लिए मिसाल कायम की। लंदन जू को दिए उनके दान की चर्चा गर्व और गौरव से की जाती है।
सियासी सफर
स्वराज पॉल 1996 में लेबर पार्टी के टिकट पर ‘हाउस ऑफ लॉर्ड्स’के सदस्य बने और बैरन पॉल की पदवी ग्रहण की। दिसम्बर 2008 में उन्हें ‘हाउस ऑफ लॉर्ड्स’का उपाध्यक्ष चुना गया और अक्टूबर 2009 में प्रिवी कौंसिल के लिए चुना गया। उन्हें इंग्लैंड के भूतपूर्व प्रधानमंत्री गॉर्डोन ब्राउन और उनकी पत्नी सारा का करीबी माना जाता था।
उनकी प्रारंभिक शिक्षा लाहौर के फॉरमैन क्रिश्चियन कॉलेज से हुई जिसके बाद उन्होंने जालंधर के दोआबा कॉलेज से भी शिक्षा ग्रहण की। उसके पश्चात उन्होंने बी.एस.सी, एम.एस.सी और इंजीनियरिंग की पढ़ाई अमेरिका के मशहूर मैसाचुसेट्स प्रौद्योगिकी संस्थान (एमआईटी) से की। मैसाचुसेट्स प्रौद्योगिकी संस्थान (एमआईटी) से निकलने बाद उन्होंने भारत में अपने पारिवारिक कंपनी ‘एपीजे-सुरेन्द्र ग्रुप’ में कार्य किया। इस कंपनी की स्थापना उनके पिता ने की थी और उस समय इसका संचालन स्वराज पॉल के दो बड़े भाई– सत्य पॉल और जीत पॉल कर रहे थे।
सन 1966 में वे यूनाइटेड किंगडम चले गए। उन्होंने ‘नेचुरल गैस ट्यूब्स’ की स्थापना की। इसके पश्चात उन्होंने एक के बाद एक कई स्टील निर्माण की इकाइयों का अधिग्रहण कर लिया। सन 1968 में उन्होंने कपारो ग्रुप की स्थापना की। कपारो ग्रुप वर्तमान में यूनाइटेड किंगडम के अग्रणी स्टील उत्पाद बनाने वालों में से एक है।
कपारो ग्रुप स्टील ट्यूब्स के साथ-साथ मर्चेंट बार्स और स्ट्रक्चरल भी बनता है। इसके अलावा वे दूसरे उद्योगों में प्रयुक्त होने वाले स्टील उत्पाद भी बनाते हैं। कपारो ग्रुप उत्तर अमेरिका, यूरोप, भारत और मध्य पूर्व आदि में लगभग 10 हजार लोगों को रोजगार प्रदान करता है।
कंपनी के प्रबंधन से अलग हुए
लार्ड पॉल ने 1996 में अपने आप को कंपनी के प्रबंधन से अलग कर लिया और उनके सबसे छोटे बेटे अंगद ग्रुप के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) बनाए गए। वह कहते थे कि आम लोगों की तरह वे भी लन्दन में सार्वजनिक यातायात का उपयोग करते रहे। 1960 के दशक से ही वे मध्य लन्दन के पोर्टलैंड प्लेस में रहते थे।
पीएम मोदी ने लॉर्ड स्वराज पॉल को दी श्रद्धांजलि
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉर्ड स्वराज पॉल के निधन पर गहरी संवेदना जताई है। उन्होंने एक्स पर लिखा, ‘श्री स्वराज पॉल जी के निधन से बहुत दुख हुआ। उद्योग, परोपकार और यूके में सार्वजनिक सेवा में उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा। भारत के साथ मजबूत रिश्तों के लिए उनकी कोशिशें भी अविस्मरणीय हैं। मुझे उनके साथ की गईं कई मुलाकातें याद आ रही हैं। उनके परिवार और चाहने वालों के प्रति मेरी संवेदनाएं। ओम शांति।’