ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। भारत का अपना सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम नैविक इन दिनों एक मुश्किल दौर से गुजर रहा है। कई सैटेलाइट्स के एटॉमिक क्लॉक्स (परमाणु घड़ियां) खराब हो गए हैं और हाल ही में लॉन्च हुआ एनवीएस -02 भी असफल रहा। अब इसरो अपने ही बनाए रूबिडियम क्लॉक्स पर भरोसा कर रहा है, ताकि सिस्टम को फिर से मज़बूत किया जा सके और विदेशी तकनीक पर निर्भरता खत्म हो।
क्लॉक्स क्यों जरूरी हैं?
हर नेविगेशन सैटेलाइट में एटॉमिक क्लॉक होती है। ये घड़ी बहुत ही सटीक समय बताती है, जिससे जीपीएस की तरह जमीन पर मौजूद मोबाइल या डिवाइस सही लोकेशन निकाल पाते हैं। शुरुआत में नैविक सैटेलाइट्स पर स्विट्ज़रलैंड की कंपनी स्पेक्ट्रा टाइम की क्लॉक्स लगाई गई थीं
लेकिन 2016 से दिक्क तें शुरू हुईं। आईआरएनएसएस-1ए सैटेलाइट की तीनों क्लॉक्स बंद हो गईं और वह बेकार हो गया। 2018 तक 24 में से 9 क्लॉक्स खराब हो चुकी थीं। इस वजह से पूरे सिस्टम की क्षमता घट गई। इसरो को कई बार नए सैटेलाइट भेजने पड़े। 2017 में आईआरएनएसएस-1एच का लॉन्च फेल हो गया। 2018 में आईआरएनएसएस-1I से थोड़ी राहत मिली, पर क्लॉक्स की खराबी का साया बना रहा।
देशी घड़ियों की जीत
इन परेशानियों के बाद इसरो ने खुद अपनी इंडियन रुबिडियम एटोमिक फ्रीक्वेंसी स्टैंडर्ड क्लॉक्स बनाई। मई 2023 में लॉन्च हुए एनवीएस-01 सैटेलाइट में पहली बार ये देशी क्लॉक लगाई गई।
ये प्रयोग पूरी तरह सफल रहा। अब नाविक का नया एल1 सिग्नल भी चालू है, जो सीधे स्मार्टफोन और दूसरी डिवाइस में इस्तेमाल हो सकता है। इसरो का कहना है कि ये घड़ियां दुनिया के मानकों जितनी सटीक हैं और रोज़ाना सिर्फ नैनो सेकंड के हिस्सों जितना ही अंतर आता है।
बेजोड़ प्रयास
29 जनवरी 2025 को इसरो ने एनवीएस-02 लॉन्च किया लेकिन इंजन वॉल्व की खराबी के कारण यह सही कक्षा तक नहीं पहुंच सका और बेकार हो गया। अब नाविक के पास सिर्फ चार सैटेलाइट (आईआरएनएसएस-1बी, आईआरएनएसएस-1एफ, आईआरएनएसएस-1I और एनवीएस-01) ही पूरी तरह काम कर रहे हैं। बाकी कुछ पुराने सैटेलाइट सिर्फ मैसेज भेजने में इस्तेमाल होते हैं और एक सैटेलाइट को हटा दिया गया है जबकि मजबूत कवरेज के लिए कम से कम 7 सैटेलाइट चाहिए। सरकार का कहना है कि एनवीएस-03 इस साल (2025) के आखिर तक लॉन्च होगा और उसके बाद हर छह महीने पर नए सैटेलाइट भेजे जाएंगे। इन सभी में कई देशी रूबिडियम क्लॉक्स और नया एल1 सिग्नल होगा।
नाविक क्यों जरूरी है?
नाविक सिर्फ टेक्नोलॉजी का सवाल नहीं है, ये भारत की रणनीतिक सुरक्षा के लिए भी अहम है। अगर कभी जीपीएस या दूसरे विदेशी सिस्टम तक पहुंच रोक दी जाए, तो नाविक भारत का अपना विकल्प है।
यह जीपीएस जितना ग्लोबल नहीं है, लेकिन भारत और इसके आसपास 1500 किमी के दायरे में काम करता है। यह खासकर रक्षा, हवाई यात्रा, समुद्री सुरक्षा, आपदा प्रबंधन और मोबाइल नेटवर्क जैसे क्षेत्रों में बेहद उपयोगी है।
ब्लिट्ज विजन
फिलहाल सिर्फ चार सक्रिय सैटेलाइट्स पर सिस्टम चल रहा है। अगर इनमें से एक भी खराब हुआ तो पूरे सिस्टम की सटीकता और भरोसा कम हो सकता है।
स्मार्टफोन कंपनियां जैसे एप्पल और कई एंड्रॉयड ब्रांड पहले ही नाविक को सपोर्ट देने लगी हैं लेकिन आगे की सफलता इसी पर निर्भर करेगी कि सिस्टम बिना रुकावट चलता रहे।
इसरो के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘अब हर नए सैटेलाइट में पांच रूबिडियम क्लॉक्स लगाए जाएंगे। जो गलती पहले हुई, उसे दोहराया नहीं जाएगा।’