ब्लिट्ज ब्यूरो
भोपाल। मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के पांढुर्णा में जाम नदी किनारे हुए सावरगांव और पांढुर्ना के बीच पारंपरिक पत्थरबाजी के खेल में 900 से अधिक लोग घायल हो गए जबकि 3 की हालत नाजुक बताई जाती है। इन्हें बेहतर इलाज के लिए नागपुर रेफर किया गया है। इस खेल में किसी का हाथ टूटा है तो किसी का पैर, किसी का सिर फूटा है तो किसी को चेहरे पर चोट आई है। बताया जाता है कि मेले में 700 से ज्यादा पुलिस जवान तैनात थे। धारा 144 भी लागू कर दी गई थी। मेले में घायलों के इलाज के लिए 6 अस्थायी स्वास्थ्य केंद्र बनाए गए थे। इनमें 58 डॉक्टर और 200 मेडिकल स्टाफ तैनात रहे।
इस बार विधायक भी शामिल
हैरानी की बात यह कि इस मेले में पांढुर्ना विधायक भी शामिल हुए। बताया जा रहा है कि इस खेल में हजारों लोग सूर्योदय से सूर्यास्त तक विपक्षी योद्धाओं पर पत्थर बरसाते हैं। इस हमले में किसी को सिर पर तो किसी के पांव और चेहरे पर चोटें आती हैं। इस बार भी बताया जाता है कि खेल में ऐसा ही हुआ। गोटमार परंपरा के बारे में सावरगांव निवासी सुरेश कावले का दावा है कि करीब 400 साल पहले इस परंपरा की शुरुआत हुई थी। तब से आज तक इस खेल में अनेक लोगों की मौत हो चुकी है।
आज किसी ने नहीं की शिकायत
पांढुर्णा थाना प्रभारी अजय मरकाम के मुताबिक, मौत और घायलों के मामले में आज तक किसी ने भी थाने में शिकायत नहीं की है। मेले से संबंधित कोई केस दर्ज नहीं हुआ।
एसपी सुंदर सिंह कनेशन ने कहा कि 700 से ज्यादा पुलिस जवान तैनात हैं। सीएसपी डीएसपी सहित खुद इस समय मौजूद रहे। खेल पर नजर रखने के लिए ड्रोन से भी निगरानी की गई। पुलिस अधिकारी दूरबीन से नजर बनाए रहे।
कलेक्टर अजय देव शर्मा ने बताया कि हमने लोगों को समझाइश दी है। हमने कहा है कि किसी को घायल करना या मारना लक्ष्य नहीं होना चाहिए। इसका उद्देश्य लोगों को डराना रहा है तो उसी तरीके से आयोजन होना चाहिए।
ऐसे होती है खेल की शुरुआत
पांढुर्णा की जाम नदी में चंडी माता की पूजा के बाद साबर गांव के लोग पलाश के कटे पेड़ को नदी के बीच लगाते हैं। इसके बाद दोनों पांढुर्णा और साबर गांव के लोगों के बीच गोटमार युद्ध शुरू हो जाता है। युद्ध में एक दूसरे पर पत्थर बरसाए जाते हैं। साबर गांव के लोग पलाश का पेड़ और झंडा नहीं निकालने देते। लोग गांव की लड़की मानकर इसकी रक्षा करते हैं तो दूसरी ओर पांढुर्णा के लोग पत्थरबाजी कर पलाश का पेड़ को कब्जे में लेने की कोशिश करते हैं।
2023 तक 13 की मौत
अंत में झंडे को तोड़ लेने के बाद दोनों पक्ष मिलकर चंडी मां की पूजा कर इस परंपरा को समाप्त करते हैं। गांव के लोग ही बताते हैं कि इस पत्थरबाजी में 2023 तक 13 लोगों की जान जा चुकी है। इनमें तीन लोग एक ही परिवार से थे। गोटमार में कई लोग तो हाथ-पैर, आंखें तक गंवा चुके हैं। इसके बावजूद लोग इसे हर साल दोगुने उत्साह से खेलते हैं। हालांकि अपनों को खोने वाले परिवार इसे शोक दिवस के रूप में मनाते हैं।
प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती
यह खेल प्रशासन के लिए भी एक बड़ी चुनौती बनता है। हर साल पुलिस एक हफ्ते पहले से गोटमार की तैयारी में जुट जाती है। प्रयास रहता है कि इसे सांकेतिक रूप से मनाया जाए। साल 2001 में तत्कालीन कलेक्टर ने पत्थर हटवाकर रबर या प्लास्टिक की गेंद डलवा दी थी लेकिन इसके बाद भी खेल हुआ। हर बार रोकने के प्रयास में खेल के साथ जमकर उत्पात भी होता है।
ढक दिया जाता है मंदिर
गोटमार मेले के तीन दिन तक जाम नदी के किनारे स्थापित मंदिर के भगवान राधा कृष्ण के मंदिर को बंद कर दिया जाता है। दरअसल, मंदिर को पत्थर से बचाने के लिए मंदिर समिति के लोग मंदिर को ढक देते हैं, ताकि मंदिर को नुकसान न हो सके। यही हाल जाम नदी के आसपास निवास करने वाले लोगों का है। उनके मकान को भी ढका जाता है।