ब्लिट्ज ब्यूरो
कानपुर। अमेरिकी बाजार पर लंबे समय से निर्भर उत्तर प्रदेश के निर्यातक अब अपनी दिशा बदल रहे हैं। ट्रंप शासन के दौरान अमेरिका ने भारतीय उत्पादों पर 50 प्रतिशत तक टैरिफ बढ़ा दिया है। इससे यूपी के कालीन, हैंडीक्राफ्ट, लेदर और स्पोर्ट्स गुड्स निर्यातकों को बड़ा झटका लगा है।
अब प्रदेश के व्यापारी पूरी तरह अमेरिका पर निर्भर रहने के बजाय यूरोप और अफ्रीका के नए बाजारों में संभावनाएं तलाश रहे हैं। उनका मानना है कि अमेरिका में नीतियां अक्सर बदलती रहती हैं और वहां टैरिफ बढ़ने या नए नियम लागू होने से कारोबार पर सीधा असर पड़ता है। अतः अब व्यापारी उन जगहों की तलाश में हैं जहां लंबे समय तक स्थिरता के साथ व्यापार किया जा सके और भारतीय सामान की लगातार मांग बनी रहे। यूरोप और अफ्रीका इस लिहाज से सबसे बेहतर विकल्प के रूप में सामने आ रहे हैं।
कानपुर का चमड़ा उद्योग, बनारस की साड़ी और टेक्सटाइल, आगरा के जूता कारोबारी और मुरादाबाद का पीतल उद्योग अब जर्मनी, फ्रांस, नीदरलैंड्स और इटली जैसे यूरोपीय देशों में तेजी से अपने बाजार बना रहे हैं। यहां भारतीय उत्पादों को उच्च गुणवत्ता और परंपरागत डिज़ाइन की वजह से पसंद किया जाता है। यूरोप में खासतौर पर टेक्सटाइल, हैंडीक्राफ्ट और लेदर गुड्स की लगातार काफी मांग रहती है। कई कंपनियों ने यहां पर स्थायी ग्राहक भी बना लिए हैं। यूरोपीय बाजार की सबसे बड़ी खासियत यह है कि एक बार अगर कोई ब्रांड यहां स्थापित हो जाता है तो उसे लंबे समय तक बिजनेस मिलता रहता है।
अफ्रीका में बढ़ रही भारतीय पकड़
यूरोप के अलावा अफ्रीका को लेकर निर्यातक और भी ज्यादा आशावान हैं। नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रीका, केन्या और घाना जैसे देशों में तेजी से बढ़ता मध्यम वर्ग भारतीय उत्पादों के लिए बड़ी संभावनाएं पैदा कर रहा है। यहां भारतीय लेदर गुड्स, रेडीमेड गारमेंट्स, मशीनरी और घरेलू सामान की मांग बढ़ी है। अफ्रीका की बड़ी आबादी भारत से आने वाले सस्ते और टिकाऊ सामान को आसानी से स्वीकार कर रही है। यही वजह है कि यूपी के कारोबारी अब अफ्रीकी देशों में अपनी पैठ बनाने पर विशेष जोर दे रहे हैं।
सरकार को भी देना होगा ध्यान
फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन (एफआर्इईओ) के सहायक निदेशक आलोक श्रीवास्तव के अनुसार आने वाले समय में यूरोप और अफ्रीका भारत के लिए सबसे बड़े और स्थायी बाजार साबित होंगे। यूरोप पहले से ही हमारे लिए भरोसेमंद क्षेत्र है जहां गुणवत्ता और डिज़ाइन की सराहना होती है, वहीं अफ्रीका तेजी से उभर रहा है और वहां हमारी पकड़ मजबूत हो सकती है। ऐसा विश्वास है कि अगर निर्यातक क्वालिटी और समय पर डिलीवरी पर ध्यान देंगे तो उन्हें लंबे समय तक फायदा होगा। सरकार अगर शिपिंग लागत कम करे और व्यापार समझौतों को सरल बनाए तो भारत अगले पांच वर्षों में इन बाजारों में दोगुना निर्यात कर सकता है।
उम्मीदें हैं तो चुनौतियां भी कम नहीं
व्यापारियों का कहना है कि यूरोप और अफ्रीका में संभावनाएं तो बहुत हैं लेकिन इसके लिए सरकारी मदद मिलना भी जरूरी है। निर्यातकों को पैकेजिंग, इंटरनेशनल स्टैंडर्ड और लॉजिस्टिक की चुनौतियों से जूझना पड़ता है। शिपिंग खर्च बढ़ने से सामान की कीमत भी ज्यादा हो जाती है। अगर सरकार लॉजिस्टिक कॉरिडोर को मजबूत बनाए और नए व्यापार समझौते करे तो भारत इन क्षेत्रों में आसानी से बड़ी हिस्सेदारी ले सकता है।