गुलशन वर्मा
नई दिल्ली। भारत और चीन के बीच सीमा विवाद, व्यापार असंतुलन और भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा जैसे मुद्दे लंबे समय से मौजूद हैं। ये मुद्दे दोनों देशों के बीच अविश्वास पैदा करते रहे हैं। इसके बावजूद, ब्रिक्स, जी-20 और एससीओ जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर दोनों देश कई क्षेत्रों एक दूसरे का साथ देते हैं।
भारत व चीन के बीच सीमा विवाद के कारण लगातार तनाव रहा है। 1962 का युद्ध और उसके बाद हुई झड़पों से तनाव जारी है। 2017 में डोकलाम संकट और 2020 में गलवान में हुए संघर्ष ने भरोसे की खाई और चौड़ी कर दी। पूर्वी लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में आज भी दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने डटी हैं।
कई मुद्दों पर साथ भी
1. ब्रिक्स : ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका का यह समूह विकासशील देशों की आवाज उठाने का मंच है। 2023 में ब्रिक्स का विस्तार हुआ और इसमें नए सदस्य भी शामिल हुए।
2. जी-20: भारत की अध्यक्षता में हुई जी-20 शिखर बैठक में चीन की भागीदारी ने दिखाया कि वैश्विक आर्थिक मुद्दों पर दोनों देश एक-दूसरे के बिना नहीं रह सकते।
3. एससीओ: शंघाई सहयोग संगठन में भारत और चीन, रूस व मध्य एशियाई देशों संग मिलकर आतंकवाद से जुड़े मुद्दों पर सहयोग करते हैं।
हाल की पांच प्रमुख द्विपक्षीय बैठकें
1 जून, 2025 : चीन के किंगदाओ में एससीओ रक्षा मंत्रियों की बैठक। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और उनके चीनी समकक्ष डॉन्ग जुन के बीच बैठक हुई। सीमा पर तनाव कम करने और विश्वास बहाली को प्राथमिकता पर सहमति बनी।
12 मार्च, 2025: सीमा मामलों पर कार्यकारी तंत्र के 33वें दौर में सीमा सहयोग और कैलाश मानसरोवर यात्रा की फिर से शुरुआत पर चर्चा हुई। पूर्व समझौतों पर अमल जारी रखने और अगली बैठक की योजना बनाई गई।
3 दिसंबर, 2024: विशेष प्रतिनिधियों की बैठक आयोजित की गई। एनएसए अजीत डोभाल की चीन यात्रा के दौरान विदेश मामलों के मंत्री वांग यी से बैठक हुई। सीमा विवादों के स्थायी समाधान और द्विपक्षीय भरोसे की बहाली पर चर्चा हुई।
4 अक्तूबर, 2024 को रूस के कजान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से इतर द्विपक्षीय बैठक हुई। 2020 के लद्दाख संघर्ष के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच पहली बैठक हुई।
15 सितंबर, 2023 को नई दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन का आयोजन हुआ। राष्ट्रपति शी जिनपिंग अनुपस्थित रहे। प्रधानमंत्री ली कियांग ने चीन का प्रतिनिधित्व किया। भारत संग सकारात्मक वार्ता बढ़ाने पर सहमति बनी।
भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा
एशिया में प्रभाव और नेतृत्व की होड़ तनाव का अहम कारण है।
चीन बीआरआई के जरिए एशिया-अफ्रीका-यूरोप में दखल बढ़ा रहा है। भारत इसका विरोध करता है क्योंकि यह पीओके से होकर गुजरता है। भारत का अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया संग क्वाड में शामिल होना चीन को खटकता है।
चीन का पाक को सैन्य देना भारत के लिए सीधी चुनौती है।
चुनौतीपूर्ण बाजार
पिछले 20 वर्षों में भारत-चीन का व्यापार कई गुना बढ़ा है।
भारत, चीन से इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी, केमिकल्स, कंज्यूमर गुड्स आयात करता है।
भारत का चीन के लिए निर्यात सीमित है, जिससे भारी व्यापार घाटा पैदा होता है।
वित्त वर्ष 2023-24 में यह घाटा करीब 85 अरब डॉलर रहा।
भारतीय उत्पादों के लिए चीन का बाजार अब भी चुनौतीपूर्ण है।