ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। भारत और अमेरिका के बीच अब टैरिफ का लेकर तनातनी बनी हुई है। भारत ने अमेरिकी ‘दादागिरी’ को ठेंगा दिखा दिया है और साफ कर दिया है कि वह अपने हितों से कतई समझौता नहीं करेगा। साथ ही अब वह ट्रंप को झटका देने वाले कदम उठा रहा है। भारत अब अपने विदेशी मुद्रा भंडार में अमेरिकी ट्रेजरी बिल्स की बजाय सोना ज्यादा जमा कर रहा है। अमेरिकी ट्रेजरी विभाग और भारतीय रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़े बताते हैं कि भारत का अमेरिकी टी-बिल निवेश घटा है, जबकि सोने की हिस्सेदारी बढ़ी है। यह रुख उस वैश्विक प्रवृत्ति का हिस्सा है जिसमें कई देश अपने भंडार को डॉलर से परे विविधीकृत कर रहे हैं।
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, जून 2025 में भारत का अमेरिकी टी-बिल निवेश घटकर 227 अरब डॉलर रह गया, जो जून 2024 में 242 अरब डॉलर था। आरबीआई के मुताबिक इसी अवधि में भारत ने करीब 39.22 मीट्रिक टन सोना खरीदा। 27 जून 2025 तक भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में सोने का स्टॉक बढ़कर 879.98 मीट्रिक टन हो गया, जबकि पिछले साल 28 जून को यह 840.76 मीट्रिक टन था। भले ही भारत का अमेरिकी टी-बिल में निवेश घटा है, पर अब भी भारत अमेरिकी ट्रेजरी बिल्स में निवेश करने वाले शीर्ष 20 निवेशकों में शामिल है। इस मामले में सऊदी अरब और जर्मनी भी भारत से पीछे है।
बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस के अनुसार, “भारतीय रिजर्व में सोने की हिस्सेदारी लगातार बढ़ी है और विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों में भी विविधता आई है।” उन्होंने कहा कि यह रुख डॉलर के उतार-चढ़ाव और भू-राजनीतिक तनाव के चलते तेज हुआ है।
आईडीएफसी फर्स्ट बैंक की अर्थशास्त्री गौरा सेनगुप्ता ने कहा, “भारत की अमेरिकी टी-बिल होल्डिंग्स एक साल में 14.5 अरब डॉलर घटी हैं, जबकि सोने का हिस्सा बढ़ा है। यह दर्शाता है कि भारत अमेरिकी ट्रेजरी पर निर्भरता घटाकर जोखिम कम करना चाहता है। खासकर अमेरिकी वित्तीय स्थिति बिगड़ने से यील्ड्स ऊंची बनी हुई हैं।”
डॉलर पर कम होती पकड़
डोनाल्ड ट्रंप के पद संभालने से ठीक पहले अमेरिकी टी-बिल्स में भारत की हिस्सेदारी दिसंबर 2024 में सबसे निचले स्तर पर थी। इसी तरह, चीन (जो जापान और ब्रिटेन के बाद तीसरा सबसे बड़ा अमेरिकी टी-बिल धारक है) ने भी अपना निवेश घटाकर 756 अरब डॉलर (जून 2025) कर दिया, जो जून 2024 में 780 अरब डॉलर था। इसके विपरीत इजराइल ने इस एसेट क्लास में अपना निवेश तेजी से बढ़ाया।
भारत का यह कदम दर्शाता है कि वह अमेरिकी डॉलर के उतार-चढ़ाव और अमेरिकी अर्थव्यवस्था से जुड़े जोखिमों से बचने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार को सुरक्षित और विविध बना रहा है। सोने में बढ़ता निवेश भारत को ‘गोल्डन हेज’ उपलब्ध करा रहा है, जो बदलते वैश्विक वित्तीय परिदृश्य में अहम साबित हो सकता है।