ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद से विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) भारत की विकास गाथा का अहम हिस्सा रहा है। इसने पूंजी दी, उद्योगों को आधुनिक बनाया, नई तकनीकें पहुंचाईं और भारतीय कंपनियों को वैश्विक बाजारों से जोड़ा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकसित भारत @2047 के लक्ष्य को पूरा करने में विदेशी पूंजी की भूमिका पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है।
वैश्विक चुनौतियों के बीच भारत ने वित्त वर्ष 2024–25 में 81.04 अरब डॉलर का एफडीआई आकर्षित किया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 14 प्रतिशत अधिक है। पिछले दस वर्षों में कुल एफडीआई प्रवाह 748 अरब डॉलर से ऊपर पहुंच चुका है, जो उससे पहले के दशक की तुलना में दोगुना है।
क्षेत्रवार देखें तो सेवाएं (19%), कंप्यूटर सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर (16%) और ट्रेडिंग (8%) सबसे आगे रहे। वहीं मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र ने भी अच्छा प्रदर्शन किया, जिसमें 19.04 अरब डॉलर का निवेश आया जो पिछले साल से 18 प्रतिशत अधिक है। राज्यवार तस्वीर में महाराष्ट्र और कर्नाटक सबसे बड़े निवेश केंद्र बने रहे। इन दोनों ने मिलकर 51 प्रतिशत से अधिक एफडीआई आकर्षित किया। दिल्ली तीसरे स्थान पर रही।
विदेशी स्रोतों की बात करें तो सिंगापुर लगातार सातवें साल भारत का सबसे बड़ा एफडीआई स्रोत रहा, जिसने लगभग 15 अरब डॉलर का निवेश किया। वहीं, अमेरिका ने 2025–26 की पहली तिमाही (अप्रैल–जून) में सबसे अधिक निवेश कर शीर्ष स्थान हासिल किया।
चिंताजनक गिरावट
हालांकि इन उत्साहजनक आंकड़ों के बीच एक गंभीर पहलू भी है। भारत का नेट एफडीआई 2024–25 में 96.5 प्रतिशत घटकर केवल 353 मिलियन डॉलर रह गया, जो कई दशकों में सबसे कम है। इसका कारण है—विदेशी निवेशकों का मुनाफ़ा निकालना और भारतीय कंपनियों का विदेशों में बढ़ता निवेश। यह दर्शाता है कि भारत में आ रहा बड़ा हिस्सा कम अवधि का और मुनाफा-केंद्रित है, न कि दीर्घकालीन और विकासोन्मुखी। यदि यह प्रवृत्ति जारी रही, तो एफडीआई की असली परिवर्तनकारी क्षमता प्रभावित हो सकती है।
ऊर्जा के क्षेत्रों से नई उम्मीद
फिर भी कुछ क्षेत्र भविष्य की दिशा दिखा रहे हैं। सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग तेजी से निवेश का बड़ा केंद्र बन रहे हैं। धोलेरा में टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स का 11 अरब डॉलर का प्रोजेक्ट भारत के उच्च मूल्य वाले निर्माण की महत्वाकांक्षा का प्रतीक है।
नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र ने भी तेजी पकड़ी है—सौर, पवन और ग्रीन हाइड्रोजन में अरबों डॉलर का निवेश आया है। डिजिटल अर्थव्यवस्था भी बड़ी तेजी से उभर रही है। गूगल और अमेजन जैसी कंपनियों के बहु-अरब डॉलर प्रोजेक्ट भारत को एशिया का डिजिटल हब बनाने की दिशा में ले जा रहे हैं।
एफडीआई महज आंकड़ा नहीं है—बल्कि यह इस बात का पैमाना है कि वे आंकड़े देश को क्या दे रहे हैं। यह भारत के ट्रिलियन-डॉलर इंफ्रास्ट्रक्चर अभियान को गति देता है, नई तकनीकें लाता है, लाखों रोजगार पैदा करता है और भारत को वैश्विक सप्लाई चेन से जोड़ता है।
सबसे बढ़कर, यह दुनिया को यह संदेश देता है कि भारत की अर्थव्यवस्था स्थिर, भरोसेमंद और भविष्य के लिए तैयार है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि अब भारत को संख्या से गुणवत्ता की ओर बढ़ना होगा। नियमों को सरल करना, नीतिगत स्थिरता बनाए रखना और अनुबंधों को सख्ती से लागू करना निवेशकों का भरोसा बढ़ाएगा। साथ ही, एफडीआई को राष्ट्रीय प्राथमिकताओं—जैसे उन्नत मैन्युफैक्चरिंग, क्लीन एनर्जी, सेमीकंडक्टर और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर—से जोड़ना जरूरी है। मानव पूंजी में निवेश, लाखों युवाओं को नई स्किल्स देना भी उतना ही अहम है ताकि विदेशी पूंजी स्थायी रोजगार और समावेशी विकास में तब्दील हो सके।
भारत आज एक अहम मोड़ पर खड़ा है। दुनिया के शीर्ष निवेश स्थलों में शामिल होने के बावजूद नेट एफडीआई की तेज गिरावट स्थिरता पर सवाल खड़े करती है। विकसित भारत @2047 के लक्ष्य को पूरा करने के लिए जरूरी है कि हर विदेशी डॉलर सिर्फ क्षणिक प्रवाह नहीं, बल्कि दीर्घकालीन समृद्धि की मजबूत नींव बने।