ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। भारत के पड़ोसी देशों में घट रही घटनाएं, अप्रत्याशित राजनीतिक बदलाव और वर्तमान में नेपाल में हुआ ओली सरकार का तख्तापलट, आर्थिक मंदी, व सामाजिक अशांति भारत को प्रभावित कर सकती हैं। इससे सीमा सुरक्षा, शरणार्थी संकट और क्षेत्रीय व्यापार पर भी असर पड़ सकता है।
उल्लेखनीय है कि नेपाल में भ्रष्टाचार, असरदार लोगों की विलासितापूर्ण जीवन शैली तथा इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्मों पर रोक के कारण दो दिन तक चले हिंसक आंदोलन के बाद सेना ने कमान संभाल ली है। पूरे देश में कर्फ्यू लागू है। बुधवार को राजधानी काठमांडू की सड़कों पर शांति रही। सेना की मध्यस्थता के बाद जेन-जी प्रदर्शनकारियों और राजनीतिक दलों की बैठक में नेपाल की पूर्व एवं प्रथम महिला प्रधान न्यायाधीश सुशीला कार्की को अंतिम सरकार का प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव रखा गया। इस बीच जेन-जी की वर्चुअल बैठक में नेपाल को हिंदू राष्ट्र बनाने, नेपाल की वर्तमान संसद भंग करने तथा 2 माह में नया संविधान बना कर 6 माह में संसदीय चुनाव कराने समेत अनेक प्रस्ताव पारित किए गए। वैसे जेन-जी का एक गुट काठमांडू के मेयर बालेंद्र शाह को अंतरिम सरकार का पीएम बनाने की मांग भी कर रहा है।
नेपाल में जेन-जी आंदोलन के अलावा बांग्लादेश में छात्रों का विरोध और अस्थायी सरकार, पाकिस्तान में सैन्य नियंत्रण और विद्रोह, श्रीलंका में आर्थिक संकट, अफगानिस्तान में गरीबी और तालिबान शासन, मालदीव में कर्ज और चीन का बढ़ता प्रभाव( जिसे भारत एक बार फिर रोकने में कामयाब रहा), म्यांमार में सैन्य शासन और गृहयुद्ध क्षेत्र की स्थिरता को गंभीर चुनौती दे रहे हैं।
इन घटनाओं का प्रभाव भारत के रणनीतिक, आर्थिक और सामाजिक हितों पर भी पड़ रहा है।
पिछले काफी समय से भारत के पड़ोस में कहीं न कहीं बवाल चल ही रहा है। पाकिस्तान के बारे में तो क्या ही कहना, पहले श्रीलंका, फिर बांग्लादेश और अब नेपाल सुलग रहा है। नेपाल में जारी विरोध प्रदर्शन और तनाव ने पूरे दक्षिण एशिया में राजनीतिक अस्थिरता की तस्वीर को और गंभीर बना दिया है।
इसलिए वर्तमान हालात के मद्देनजर अब भारत को अपने पड़ोसी देशों के घरेलू मामलों पर और पैनी नजर रखनी होगी। साथ ही अपनी विदेश नीति का और अधिक अनुकूलन भी करना होगा। इसके अलावा भारत को अपनी आर्थिक और सैन्य तैयारियों को भी मजबूत करते हुए भू-राजनीतिक संतुलन बनाए रखना होगा क्योंकि नेपाल से लेकर म्यांमार तक; भारत के पड़ोस में आग लगी हुई है। 7 पड़ोसी देशों में आर्थिक-सियासी हालात सामान्य नहीं हैं और दक्षिण एशिया में राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता बढ़ रही है। इसका संभावित प्रभाव भारत पर भी पड़ना तय माना जा रहा है।
आर्थिक प्रभाव : पड़ोसी देशों में अस्थिरता से क्षेत्रीय व्यापार प्रभावित हो सकता है जो भारत की आपूर्ति श्रृंखला और निर्यात को प्रभावित करेगा।
शरणार्थी संकट : पड़ोसी देशों में हिंसा या उत्पीड़न से भारत में शरणार्थियों का प्रवाह बढ़ सकता है जिससे संसाधनों पर दबाव पड़ेगा और सामाजिक तनाव पैदा हो सकता है।
सुरक्षा चिंताएं : पड़ोसी देशों में अस्थिरता से सीमा पार घुसपैठ और उग्रवादी समूहों के बढ़ने का खतरा पैदा हो सकता है जिससे भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा प्रभावित होगी।
भू-राजनीतिक प्रभाव : पड़ोसी देशों में सत्ता परिवर्तन या राजनीतिक उथल-पुथल से भारत की क्षेत्रीय प्रभावशीलता पर प्रभाव पड़ सकता है; खासकर यदि अन्य बड़ी ताकतें उस स्थिति का लाभ उठाती हैं।
भारत को क्या करना होगा
सतर्कता और निगरानी : भारत को पड़ोसी देशों में घरेलू राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक परिवर्तनों की बारीकी से निगरानी करनी चाहिए ताकि संभावित जोखिमों का अनुमान लगाया जा सके।
कूटनीतिक प्रयास : भारत को पड़ोसी देशों के साथ बातचीत और कूटनीतिक संबंधों को मजबूत करना चाहिए ताकि तनाव कम किया जा सके और शांतिपूर्ण समाधान को बढ़ावा दिया जा सके।
आर्थिक तैयारी : भारत को अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करना चाहिए और विभिन्न देशों के साथ विविध व्यापारिक संबंध बनाने चाहिए ताकि किसी भी बाहरी झटके से बचा जा सके।
रक्षा और सुरक्षा : भारत को अपनी रक्षा तैयारियों को मजबूत करना चाहिए।