ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली।वितुषा ओबेरॉय भारतीय पत्रकारिता की वह लौह-महिला थीं जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस के भ्रष्टाचार का अपने अखबार मिड डे में भंडाफोड़ किया था। अपने और अन्य तीन साथियों के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दर्ज होने के बाद भी वे न तो डरीं, न झुकीं और न ही किसी लालच में बिकीं।
आखिर तक जंग लड़ी और आठ साल बाद उसी सुप्रीम कोर्ट के जजों ने फैसला सुनाया कि तुम्हारी सारी खबर तथ्यों व सबूतों पर आधारित थी, लिहाजा तुम्हारे व अन्य तीन पत्रकारों के खिलाफ कोई मुकदमा नहीं बनता।
देश के इतिहास में यह इकलौता व अनूठा फैसला था,जब सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अपने ही पूर्व चीफ जस्टिस की सारी दलीलों को ठुकराते हुए प्रेस की आजादी को जिंदा रखने और लोकतंत्र को बचाये रखने की नायाब मिसाल पेश की थी। पिछले कुछ सालों से वितुषा अपने परिवार समेत कनाडा में बस गईं थीं। लेकिन वह कलम अब हमेशा के लिए टूट गई और आवाज भो खामोश हो गई है। वितुषा,इस देश का हर सच्चा-खुद्दार पत्रकार आपके जज्बे को सैल्यूट करता है….सादर नमन….।