ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) एक्ट-2025 की कई प्रमुख धाराओं पर स्टे लगा दिया है। उनमें वह धारा भी शामिल है, जिसमें कहा गया था कि केवल पांच वर्षों से इस्लाम का पालन कर रहे लोग ही वक्फ बना सकते हैं। साथ ही उन धाराओं पर भी स्टे लगाया, जिनके तहत सरकार को यह अधिकार दिया गया था कि विवादित वक्फ संपत्तियों (जिन्हें सरकारी भूमि पर अतिक्रमण बताया गया है) की जांच होने तक उसे वक्फ की जमीन नहीं माना जाएगा। हालांकि, अदालत ने पूरे कानून पर स्टे लगाने से इनकार कर दिया।
चीफ जस्टिस बी. आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने अंतरिम आदेश में कहा, ‘हमने हर धारा को पहली नजर में चुनौती पर विचार किया। मगर, पूरे अधिनियम पर स्टे का मामला नहीं बनता। दखल दुर्लभ मामलों में ही दी जा सकती है।’
लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेतः रिजिजू
केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत करते हुए कहा कि यह लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत है। उन्होंने कहा, ‘एक्ट के प्रावधान पूरे मुस्लिम समुदाय के लिए लाभकारी हैं। वक्फ बोर्ड के जरिए संपत्ति पर कब्जा करने सहित होने वाले दुरुपयोग पर नए कानून से रोक लगेगी।
आदेश को कांग्रेस ने बताया जीत
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि कोर्ट का यह फैसला न्याय, समानता और बंधुता के संवैधानिक मूल्यों की जीत के साथ ही जेपीसी में शामिल रहे उन सांसदों की भी जीत है जिन्होंने असहमति जताई थी। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने पूरे कानून को ही रद करने की मांग की थी।
कोर्ट ने क्या कहा
केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या चार से अधिक नहीं हो सकती।
•राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या तीन से अधिक नहीं होगी।
डीएम का हक, कई धाराओं पर ‘रोक’
सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ कानून के उस प्रावधान पर भी अंतरिम रोक (स्टे) लगाई है, जो सरकार को यह अधिकार देता था कि अतिक्रमण विवाद पर सरकारी अधिकारी के फैसले लंबित रहने के दौरान किसी वक्फ भूमि की मान्यता रद कर सके। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कलक्टर को यह विवाद तय करने देना शक्ति के बंटवारे के खिलाफ है। कोर्ट ने यह भी कहा कि जब तक विवाद का निपटारा नहीं हो जाता, तब तक ऐसी जमीनों पर किसी तीसरे पक्ष का अधिकार नहीं बनाया जाना चाहिए। कोर्ट ने उस प्रावधान पर रोक नहीं लगाई, जो गैर-मुस्लिम को राज्य वक्फ बोर्ड का सीईओ बनने की अनुमति देता है।
फैसले तक कब क्या हुआ?
3 अप्रैल ःलोकसभा ने वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 पारित किया।
4 अप्रैल ः राज्यसभा ने भी इस विधेयक को पारित किया। 5 अप्रैल राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने विधेयक को मंजूरी दी।
5 अप्रैल : आम आदमी पार्टी के नेता अमानतुल्लाह खान ने विधेयक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की शरण ली। कई अन्य लोगों ने भी शीर्ष अदालत का रुख किया।
17 अप्रैल ः सुरीम कोर्ट ने याचिकाओं पर सुनवाई की। सरकार की ओर से यह आश्वासन दिए जाने के बाद कि इस बीच ‘वक्फ बाय यूजर्स’ या ‘वक्फ बाग डीड संपत्तियों को गैर-अधिसूचित नहीं किया जाएगा, कोर्ट ने केंद्र को अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया।
25 अप्रैल : केंद्र ने याचिकाओं को खारिज करने का अनुरोध किया और कहा कि कानून पर पूर्ण रोक नाहीं लगाई जा सकती।
29 अप्रैल ः सुप्रीम कोर्ट ने कानून के खिलाफ नई याचिकाओं पर विचार करने से इनकार कर दिया।
5 मई ः तत्कालीन चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा, उनके उत्तराधिकारी जस्टिस बी. आर. गवई 15 मई को सुनवाई करेंगे।
15 मई ःमौजूदा चीफ जस्टिस गवई ने अंतरिम राहत के मुद्दे पर सुनवाई के लिए 20 मई की तारीख तय की।
20-22 मई ः शीर्ष अदालत ने याचिकाओं पर सुनवाई की और फैसला सुरक्षित रखा।
15 सितंबर ः चीफ जस्टिस की अगुआई वाली पीठ ने अंतरिम आदेश पारित किया।
फैसले की अहम बातें
5 साल की शर्तः कोर्ट ने उस प्रावधान पर रोक लगाई है, जिसके तहत वक्फ बनाने के लिए व्यक्ति को कम-से-कम पांच वर्षों तक इस्लाम का अनुयायी होना जरूरी था।
अदालत ने धारा 3 सी के उन प्रावधानों को बरकरार रखा, जिनमें सरकार के नामित अधिकारी (कलेक्टर से ऊपर रैंक का) को यह जांच करने का अधिकार दिया गया है कि वक्फ संपत्ति सरकारी जमीन पर है या नहीं।
ट्रिब्यूनल की भूमिका पर कहा कि जब तक ट्रिब्यूनल या हाई कोर्ट टाइटल विवाद का अंतिम निपटारा नहीं कर देते, संपत्ति की स्थिति वक्फ संपत्ति के रूप में बनी रहेगी।