विनोद शील
लखनऊ। यूपी सरकार ने जातिगत भेदभाव को खत्म करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। अब उत्तर प्रदेश में जाति आधारित रैलियों पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई है।
मुख्य सचिव के निर्देशों के अनुसार अब पुलिस रिकॉर्ड्स जैसे कि एफआईआर और गिरफ्तारी मेमो में किसी भी व्यक्ति की जाति का उल्लेख नहीं किया जाएगा। इसके साथ ही सरकारी और कानूनी दस्तावेजों में भी जाति से संबंधित कॉलम को हटा दिया जाएगा। यह कदम सभी के साथ समान व्यवहार सुनिश्चित करेगा। हालांकि, इस फैसले से कुछ मामलों में छूट रहेगी, जहां जाति एक महत्वपूर्ण कानूनी पहलू है।
जाति का महिमा मंडन नहीं
निर्देशों के मुताबिक, जाति आधारित रैलियां या कार्यक्रमों पर भी पूरी तरह से रोक रहेगी और सोशल मीडिया, इंटरनेट पर जाति का महिमामंडन या नफरत फैलाने वाले कंटेंट के खिलाफ आईटी एक्ट के तहत कार्रवाई की जाएगी। इस फैसले का आधार इलाहाबाद हाईकोर्ट का एक ऐतिहासिक फैसला है जिसमें जाति आधारित पहचान को राष्ट्र-विरोधी बताते हुए पुलिस दस्तावेजीकरण प्रक्रियाओं में बदलाव का आदेश दिया था।
मुख्य सचिव के निर्देश
अदालत के निर्देशों के बाद मुख्य सचिव द्वारा 21 सितंबर 2025 को आदेशों में 10 बिंदु शामिल किए गए जो जातिगत भेदभाव को जड़ से खत्म करने पर फोकस करते हैं। पुलिस रिकॉर्ड्स और एफआईआर में बदलाव
एफआईआर, गिरफ्तारी मेमो, चार्जशीट आदि दस्तावेजों से जाति का उल्लेख पूरी तरह हटाया जाएगा। आरोपी की पहचान के लिए अब पिता के साथ-साथ माता का नाम भी जरूरी रूप से लिखा जाएगा।
एनसीआरबी और सीसीटीएनएस सिस्टम
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के क्राइम क्रिमिनल ट्रैकिंग नेटवर्क एंड सिस्टम में जाति भरने वाले कॉलम को खाली छोड़ा जाए।
पुलिस विभाग एनसीआरबी को पत्र लिखकर इस कॉलम को डिलीट करने की अपील करेगा।
सार्वजनिक स्थलों से जातीय संकेत हटाना
थानों के नोटिस बोर्ड, वाहनों, साइनबोर्ड्स और अन्य सार्वजनिक स्थलों से जाति आधारित संकेत, नारे या प्रतीक हटाए जाएंगे। केंद्रीय मोटर वाहन नियमों में संशोधन कर वाहनों पर जाति-आधारित नारों पर स्पष्ट प्रतिबंध लगाया जाएगा।
सोशल मीडिया पर सख्ती
जाति आधारित रैलियों या कार्यक्रमों पर पूर्ण प्रतिबंध लगेगा। सोशल मीडिया और इंटरनेट मीडिया पर जाति का महिमामंडन या घृणा फैलाने वाले कंटेंट के खिलाफ आईटी नियमों के तहत कार्रवाई की जाएगी। विशेष छूट: एससी/एसटी एक्ट जैसे मामलों में जहां जाति का उल्लेख कानूनी रूप से आवश्यक हो, वहां छूट रहेगी।
जाति आधारित रैलियों पर रोक
जाति का महिमामंडन करने वाली रैलियों या सार्वजनिक कार्यक्रमों को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया है।
सोशल मीडिया पर कार्रवाई
सोशल मीडिया और इंटरनेट पर जाति के महिमामंडन या नफरत फैलाने वाले कंटेंट पर आईटी एक्ट के तहत कड़ी कार्रवाई होगी।
पुलिस रिकॉर्ड में बदलाव
पुलिस दस्तावेजों में अभियुक्तों, मुखबिरों और गवाहों की जाति से संबंधित सभी कॉलम और प्रविष्टियों को तत्काल प्रभाव से हटाया जाएगा।
फैसले का आधार
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संवैधानिक नैतिकता और राष्ट्र-विरोधी गतिविधि के आधार पर यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि जाति आधारित पहचान के लिए आधुनिक साधनों जैसे फिंगरप्रिंट, आधार और मोबाइल नंबर का उपयोग किया जा सकता है, जिससे जाति आधारित पहचान की कोई आवश्यकता नहीं है।
क्या था हाईकोर्ट का फैसला
दरअसल, इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की एकलपीठ ने 19 सितंबर 2025 को शराब तस्करी मामले (प्रवीण छेत्री बनाम राज्य) में सुनवाई के दौरान ये ऐतिहासिक फैसला सुनाया। याचिकाकर्ता प्रवीण छेत्री ने अपनी गिरफ्तारी के दौरान एफआईआर और जब्ती मेमो में अपनी जाति (भील) का उल्लेख करने पर आपत्ति जताई थी। कोर्ट ने इसे संवैधानिक नैतिकता के विरुद्ध बताते हुए कहा कि जाति का महिमामंडन ‘एंटी-नेशनल'(राष्ट्र-विरोधी) है।
कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को तत्काल प्रभाव से पुलिस दस्तावेजीकरण प्रक्रियाओं में बदलाव करने का आदेश दिया था जिनमें अभियुक्तों, मुखबिरों और गवाहों की जाति से संबंधित सभी कॉलम और प्रविष्टियां हटाने का स्पष्ट निर्देश शामिल है।
‘जाति आधारित पहचान की जरूरत नहीं’
कोर्ट ने डीजीपी के हलफनामे में दिए गए तर्कों (जैसे पहचान के लिए जाति आवश्यक) को खारिज करते हुए कहा कि फिंगरप्रिंट, आधार, मोबाइल नंबर और माता-पिता के विवरण जैसे आधुनिक साधनों से जाति आधारित पहचान की कोई जरूरत नहीं है।