ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। गोपीचंद हिंदुजा 2 साल पहले 2023 में कंपनी के चेयरमैन बने थे लेकिन उन्होंने नाम आज से करीब 40 साल पहले ही कमा लिया था जब उन्होंने एक मरती हुई कंपनी में जान फूंक दी थी। 1987 में जब ब्रिटिश कंपनी ‘अशोक लीलैंड’ भारत से बाहर निकलने की तैयारी कर रही थी, तब ये कंपनी लगभग डूबने के कगार पर थी। फैक्ट्री के पुराने इंजन, धीमी प्रोडक्शन स्पीड और घटती बिक्री ने कंपनी की हालत खराब कर दी थी। उस वक्त किसी ने नहीं सोचा था कि यही कंपनी एक दिन भारत की दूसरी सबसे बड़ी कमर्शियल व्हीकल निर्माता बन जाएगी लेकिन गोपीचंद हिंदुजा ने जो देखा, वो किसी और की नजर में नहीं था।
1987 में ब्रिटिश लीलैंड भारत से निकलना चाह रही थी। अशोक लीलैंड की फैक्टि्रयां में सिर्फ पुराने इंजन (1948 मॉडल) चलते थे, प्रोडक्शन सालाना मुश्किल से 3,000–4,000 गाड़ियों का था और घाटा लगातार बढ़ रहा था। मार्केट में टाटा का दबदबा था, जबकि लीलैंड सिर्फ दक्षिण भारत तक सिमटी हुई थी। इसी समय गोपीचंद हिंदुजा ने कंपनी का 26% हिस्सा खरीदकर इसकी डोर अपने हाथों में ली और यही से शुरू हुआ अशोक लीलैंड का पुनर्जन्म।
गोपीचंद की 5-स्टैप मास्टर स्ट्रैटेजी
तुरंत निवेश और बैलेंस शीट क्लीनिंग- 1987 से 1990 के बीच ₹100 करोड़ से ज्यादा का पूंजी निवेश किया गया। मशीनें बदलीं, प्लांट्स को मॉडर्नाइज किया गया (एन्नोर और होसूर) और कर्ज घटाया गया। इससे कंपनी की नींव मजबूत हुई।
टेक्नोलॉजी पार्टनरशिप- इवको के साथ- इवको (फिएट) के साथ जॉइंट वेंचर किया गया, जिससे ‘एच-सीरीज’ इंजन 1990 में लॉन्च हुआ। यह इंजन कम ईंन्धन में ज्यादा पावर देता था। 1997 में भारत की पहली सीएनजी बस भी अशोक लीलैंड ने बनाई।
प्रोडक्शन में 10 गुना बढ़ोतरी
1987 में जहां सिर्फ 4,000 गाड़ियां बनती थीं, वहीं 1995 में यह संख्या 40,000 और 2007 में 1 लाख से ज्यादा हो गई। नई फैक्टि्रयां अलवर, पंतनगर और भंडारा में खोली गईं।
भारत से दुनिया तक विस्तार
लीलैंड ने श्रीलंका, बांग्लादेश और मध्य पूर्व में गाड़ियां निर्यात करना शुरू किया। आज कंपनी 50 से ज्यादा देशों में मौजूद है। यह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी बस कंपनी और दसवीं सबसे बड़ी ट्रक कंपनी बन चुकी है।
इनोवेशन और ईवी रिवॉल्यूशन
2016 में कंपनी ने पहली इलेक्टि्रक बस (सर्किट) लॉन्च की। 2020 में एवीटीआर प्लेटफॉर्म के तहत भारत का पहला मॉड्यूलर ट्रक बनाया गया। 2024 में एलएनजी ट्रक लॉन्च हुए और 2040 तक नेट-जीरो कार्बन का लक्ष्य तय किया गया। उनका सबसे बड़ा कदम था 2007 में इवको का 30% हिस्सा खरीदकर कंपनी पर पूरा नियंत्रण लेना। इससे कंपनी का असली ट्रांसफॉर्मेशन पूरा हुआ।
आज अशोक लीलैंड भारत में टाटा के बाद दूसरी सबसे बड़ी कमर्शियल व्हीकल निर्माता है। कंपनी दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी बस निर्माता और भारत की ईवी लीडर मानी जाती है।
देश में 1,000 से ज्यादा इलेक्टि्रक बसें चल रही हैं और भारतीय सेना को अब तक 50,000 से अधिक वाहन सप्लाई किए जा चुके हैं। गोपीचंद हिंदुजा कहते थे, “अशोक लीलैंड को बचाना नहीं था, बनाना था। हमने सिर्फ पैसा नहीं, सपना भी इसमें डाला।”































